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सूर्यवंश

   { sūryavaṁśa }
Script: Devanagari

सूर्यवंश     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
SŪRYAVAṀŚA   An important dynasty of ancient Bhārata. It is stated in [Devībhāgavata, Skandha 7] , as follows about the origin of this Solar dynasty. The Lord of creation Brahmā originated from the lotus in the navel of Viṣṇu. That Brahmā did penance for ten thousand years and pleased Parāśakti, the great goddess of power, and started creation. First of all he created seven mental sons. Of them Marīci became expert in creation. Prajāpati Kaśyapa the son of Marīci became a greater expert. The Sun is the son of Kaśyapa. Nine sons named Ikṣvāku, Nābhāga, Dhṛṣṭa, Śaryāti, Nariṣyanta, Prāṁśu, Nṛga, Diṣṭa, Karūṣa and Pṛṣadhra were born to the Sun. Of these Ikṣvāku became King. This line of Kings born from the Sun is called Sūryavaṁśa (Solar dynasty). (See the Genealogy).

सूर्यवंश     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
See : सूर्य वंश

सूर्यवंश     

सूर्यवंश (राजवंश) n.  (सू.)(राजवंश) जो मनु वैवस्वत के द्वारा स्थापित किया गया था । इस वंश का आद्य संस्थापक वैवस्वत मनु माना जाता है । वैवरवत मनु ने भारतवर्ष का अपना राज्य अपने नौ पुत्रों में बाँट दिया । इन नौ पुत्रों में से पाँच पुत्र एवं एक पौत्र ‘ वंशकर ’ साबित हुए, जिन्होंने अपने स्वतंत्र राजवंश स्थापित किये : - मनु राजा के उपर्युक्त पाँच पुत्र एवं एक पौत्र यद्यपि वंशकर साबित हुए, फिर भी उनमें से केवस चार पुत्र ही दीर्घजीवी राज्य स्थापित कर सके । बाकी दो पुत्रों का वंश भी अल्पावधि में ही विनष्ट हुआ । मनु के बाकी तीन पुत्र करुष, धृष्ट एवं पृषध्र क्रमशः करुष एवं धृष्ट नामक क्षत्रिय, एवं पृषध्र नामक शूद्र वर्णौं के जनक बन गये, एवं अल्पावधि में ही विनष्ट हुए । मनु के वंशकर पुत्रों के द्वारा स्थापित किये गये वंशों की जानकारी निम्नप्रकार है : -
सूर्यवंश (राजवंश) n.  मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु को मध्य देश का राज्य प्राप्त हुआ, जहाँ अयोध्या नगरी में उसने सुविख्यात इक्ष्वाकु वंश की प्रतिष्ठापन की । इक्ष्वाकु के वंशविस्तार के संबंध में पुराणों में दो विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त है । इनमें से छः पुराणों की जानकारी के अनुसार, इक्ष्वाकु को कुल सौ पुत्र थे, जिनमें विकुक्षि, निमि, दण्ड, शकुनि एवं वसाति प्रमुख थे । इसके पश्चात् विकुक्षि अयोध्या का राजा बन गया । निमि ने विदेह देश में स्वतंत्र निमिवंश की स्थापना की । बाकी पुत्रों में से शकुनि उत्तरापथ का, एवं वसाति दक्षिणापथ का राजा बन गया [वायु. ८८. ८ - ११] ;[ब्रह्मांड. ३.६३. ८ - ११] ;[ब्रह्म. ७.४५ - ४८] ;[शिव. ७.६०.३३ - ३५] । अन्य पुराणों के अनुसार, इक्ष्वाकु के सौ पुत्रों में विकुक्षि, दण्ड एवं निमि प्रमुख थे । इनमें से विकुक्षि अयोध्या का राजा बन गया, जिसके कुल १२९ पुत्र थे । उन पुत्रों में से पंद्रह पुत्र मेरु के उत्तर भाग में स्थित प्रदेश के, एवं बाकी ११४ पुत्र मेरु के दक्षिण भाग में स्थित प्रदेश के राजा बन गये [मत्स्य. १२. २६ - २८] ;[पद्म. पा. ८. १३० - १३३] ;[लिंग. १.६५.३१ - ३२] । इक्ष्वाकुवंश में कुल कितने राजा उत्पन्न हुए इस संबंध में एकवाक्यता नहीं है । यह संख्या विभिन्न पुराणों में निम्नप्रकार दी गयी है : - १. भागवत - ८८; २. वायु - ९१; ३. विष्णु - ९३; ४. मत्स्य - ६७ । इनमें से मत्स्य में प्राप्त नामावलि संपूर्ण न हो कर केवल कई प्रमुख राजाओं की है, जिसका स्पष्ट निर्देश इस नामावलि के अंत में प्राप्त है [मत्स्य. १२.५७] । पुराणों में प्राप्त इक्ष्वाकुवंश की वंशावलियों में भागवत में प्राप्त वंशावलि सर्वाधिक परिपूर्ण प्रतीत होती है, जो आगे दी गयी ‘ पौराणिक राजाओं की तालिका ’ में उदधृत की गयी है । ब्रह्म, हरिवंश, एवं मत्स्य में प्राप्त इक्ष्वाकुवंश की नामावलि अपूर्ण सी प्रतीत होता है, जो क्रमशः नल, मरु एवं खगण राजाओं तक ही दी गयी है ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  इस वंश में निम्नलिखित राजा विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं : - १. पुरंजय (ककुत्स्थ); २. श्रावस्त; ३. कुवलाश्व ‘ धुंधुमार ’ ४. युवनाश्व (द्वितीय) ‘ सौद्युम्नि ’; ५. मांधातृ ‘ यौवनाश्व ’ ६. पुरुकुत्स; ७. त्रसदस्यु; ८. त्रैय्यारुण; ९. सत्यव्रत ‘ त्रिशंकु ’ १०. हरिश्चंद्र; ११. सगर (बाहु); १२. भगीरथ; १३. सुदास; १४. मित्रसह कल्माषपाद सौदास; १५. दिलीप (द्वितीय) खट्वांग; १६. रघु; १७. राम दाशरथि; १८. हिरण्यनाभ कौसल्य; १९. बृहद्वल ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  भागवत में प्राप्त दृढाश्व एवं हर्यश्व राजाओं के बीच प्रमोद नामक एक राजा का निर्देश मत्स्य में प्राप्त है । कल्माषपाद सौदास से लेकर, दिलीप खट्वांग तक के राजाओं के नाम ब्रह्म, हरिवंश, एवं मत्स्य में भागवत में प्राप्त नामावलि से अलग प्रकार से दिये गये है, जिसमें सर्वकर्मन्, अनरण्य, निघ्न, अनमित्र, दुलीदुह आदि राजाओं के नाम प्राप्त हैं । पौराणिक साहित्य में कई राजा ऐसे भी पाये जाते हैं, जो इक्ष्वाकुवंशीय नाम से सुविख्यात हैं, किन्तु जिनके नाम इक्ष्वाकुवंश के वंशावलि में अप्राप्य हैं : - १. असमाति ऐक्ष्वाक; २. क्षेमदर्शिन्; ३. सुवीर द्यौतिमत । कई अभ्यासकों के अनुसार, क्षेमधन्वन् से ले कर बृहद्रथ राजाओं तक की प्राप्त नामावलि एक ही वंश के लोगों की वंशावलि न होकर, उसमें दो विभिन्न वंश मिलाये गये हैं । इनमें से क्षेमधन्वन् से लेकर हिरण्यनाभ कौसल्य तक की वंशशाखा पुष्य से ले कर बृहद्रथ तक के शाखा से संपूर्णतः विभिन्न प्रतीत होती है । प्रश्नोपनिषद में निर्दिष्ट हिरण्यनाभ कौसल्य व्यास की सामशिष्यपरंपरा में याज्ञवल्क्य नामक आचार्य का गुरु था । प्रश्नोपनिषद में निर्दिष्ट हिरण्यनाभ कौसल्य, एवं पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट हिरण्यनाभ कौसल्य ये दोनों एक ही व्यक्ति थे । इस अवस्था में इक्ष्वाकुवंशीय वंशावलि में हिरण्यनाभकौसल्य को दिया गया विशिष्टस्थान कालदृष्टि से असंगत प्रतीत होता है । स्कंद में इक्ष्वाकुवंशीय राजा विधृति एवं पूरुवंशीय राजा परिक्षित् को समकालीन माना गया है । भागवत के वंशावलि के अनुसार, इन दो राजाओं में अठारह पीढियों का अन्तर था । यह असंगति भी उपर्युक्त तर्क को पुष्टि प्रदान करती है । इसके विरुद्ध इस वंशावलि को पुष्टि देनेवाली एक जानकारी भी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है । कलियुग के अन्त में जिन दो राजाओं के द्वारा क्षत्रियकुल का पुनरुद्धार होनेवाला है, उनके नाम पौराणिक साहित्य में मेरु ऐक्ष्वाक, एवं देवापि पौरव दिये गये हैं । भागवत के वंशावलि में इन दोनों राजाओं को समकालीन दर्शा गया है, जो संभवतः उसकी ऐतिहासिकता का प्रमाण हो सकता है । राम दशरथि के पश्चात् उसके पुत्र लव ने श्रावस्ती में स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की । लव के काल से अयोध्या के इक्ष्वाकुवंश का महत्त्व कम हो कर, उसका स्थान ‘ श्रावस्ती उपशाखा ’ ने ले लिया । इसी शाखा में आगे चल कर प्रसेनजित् नामक राजा उत्पन्न हुआ, जो गौतम बुद्ध का समकालीन था । गौतम बुद्ध के चरित्र में श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित् का निर्देश बार - बार आता है, किन्तु उस समय अयोध्या के राजगद्दी पर कौन राजा था, इसका निर्देश कहीं भी प्राप्त नहीं है ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश का अंतिम राजा क्षेमक माना जाता है, जो मगध देश के महापद्म नंद राजा का समकालीन माना जाता है ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  इस वंश के संस्थापक का नाम नामानेदिष्ट अथवा नेदिष्ट था, जो मनु के नौ पुत्रों में से एक था । कई पुराणों में उसका नाम दिष्ट दिया है, एवं उसे मनु राजा का पौत्र एवं मनुपुत्र धृष्ट राजा का पुत्र कहा गया है । पौराणिक साहित्य में से सात पुराणों में, एवं महाभारत रामायण में, इस राजवंश का निर्देश प्राप्त है, जहाँ कई बार इसे ‘ वैशाल राजवंश ’ कहा गया है [ब्रह्मांड. ३.६१.३१८] ;[वायु. ८६.३ - २२] ;[लिंग. १.६६.५३] ;[मार्क. ११० - १३३] ;[विष्णु. ४.१.१६] ;[गरुड. १३८.५ - १३] ;[भा. ९.२.२३] ;[वा. रा. बा. ४७.११] ;[म. आश्व. ४.४] । पौराणिक साहित्य में प्राप्त दिष्ट वंश की जानकारी प्रमति (सुमति) राजा से समाप्त होती है, जो अयोध्या के दशरथ राजा का समकालीन था । प्रमति तक का संपूर्ण वंश भी केवल वायु, विष्णु, गरुड एवं भागवतपुराण में ही पाया जाता है । बाकी सारे पुराणों में प्राप्त नामवलियाँ किसी न किसी रुप में अपूर्ण हैं । इस वंश में उत्पन्न प्रथम दो राजाओं के नाम भलंदन एवं वत्सप्री थे । इनमें से भलंदन आगे चल कर वैश्य बन गया । इसी वंश में उत्पन्न हुए संकील, वत्सप्री एवं वत्स नामक आचार्यौं के साथ, भलंदन का निर्देश एक वैश्य सूक्तद्रष्टा के नाते प्राप्त है [ब्रह्मांड. २.३२.१२१ - १२२] ;[मत्स्य. १४५.११६ - ११७] । किंतु ऋग्वेद में, इनमें से केवल वत्सप्रि भालंदन के ही सूत्र प्राप्त हैं [ऋ. ९.६८] ; १०. ४५ -४६ । इन्हीं सूक्तों की रचना करने के कारण भलंदन पुनः एक बार ब्राह्मण बन गया [ब्रह्म. ७.४२] । इसी वंश में उत्पन्न हुए विशाल राजा ने वैशालि नामक नगरी की स्थापना की । उसी काल से इस वंश को ‘ वैशाल ’ नाम प्राप्त हुआ ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  इस वंश की स्थापना मनु राजा के पौत्र एवं इक्ष्वाकु राजा के पुत्र निमि ‘ विदेह ’ राजा ने की । निमि के पुत्र का नाम मिथि जनक था, जिस कारण इस राजवंश को जनक नामान्तर भी प्राप्त था । इस राजवंश के राजधानी का नाम भी ‘ मिथिला ’ ही था, जो विदेह राजा ने अपने पुत्र मिथि के नाम से स्थापित की थी । इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है [ब्रह्मांड. ३.६४.१ - २४] ;[वायु. ८९.१ - २३] ;[विष्णु. ४.५.११ - १४] ;[गरुड. १.१३८.४४ - ५८] ;[भा. ९. १३] । वाल्मीकि रामायण में भी इस वंश की जानकारी प्राप्त है, किन्तु वहाँ इस वंश की जानकारी सीरध्वज तक ही दी गयी है । इस वंश के राजाओं के संबंध में पौराणिक साहित्य में काफी एकवाक्यता है । किन्तु विष्णु, गरुड एवं भागवत में शकुनि राजा के पश्चात् अंजन, उपगुप्त आदि बारह राजा दिये गये हैं, जो वायु एवं ब्रह्मांड में अप्राप्य हैं । इन दो नामावलियों में से विष्णु, भागवत आदि पुराणों की नामावलि ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक सुयोग्य होती है । किन्तु कई अभ्यासकों के अनुसार, शकुनि एवं स्वागत के बीच में प्राप्त बारह राजा निमिवंश से कुछ अलग शाखा के थे, एवं इसी कारण इस शाखा को आद्य निमिवंश से अलग माना जाता हैं [ब्रह्मांड. ३.६४] ;[वायु. ८९] ;[भा. ९.१३] । इस वंश का सब से अधिक सुविख्यात राजा सीरध्वज जनक था, जिसके भाई का नाम कुशध्वज था [ब्रह्मांड. ३.६४.१८ - १९] ;[वायु. ८९.१८] ;[वा. रा. बा. ७०.२ - ३] । कुशध्वज सांकाश्या पुरी का राजा था । किन्तु भागवत में सीरध्वज राजा का पुत्र माना गया है, एवं उसका वंशक्रम निम्न प्रकार दिया गया है - उपर्युक्त जनक राजाओं में से केशिध्वज एक बडा तत्त्वज्ञानी राजा था, एवं उसका चचेरा भाई खांडिक्य एक सुविख्यात यज्ञकर्ता था । केशिध्वज जनक एवं खांडिक्य की एक कथा विष्णु में दी गयी है, जिससे इस वंशावलि की ऐतिहासिकता पर प्रकाश पडता है [विष्णु. ६.६.७ - १०४] । महाभारत में देवरात जनक राजा को याज्ञवल्क्य का समकालीन कहा गया है, किन्तु वंशावलियों का संदर्भ अच्छी प्रकार से देखने से प्रतीत होता है कि, याज्ञवल्क्य के समकालीन जनक का नाम देवराति न हो कर जनदेव अथवा उग्रसेन था । पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को जनक कहा गया है : - १. सीरध्वज २. धर्मध्वज [विष्णु. ४.२४.५४] ; ३. जनदेव, जो याज्ञवल्क्य का समकालीन था; ४. दैवराति; ५. खांडिक्य; ६. बहुलाश्व, जो श्रीकृष्ण से आ मिला था; ७. कृति, जो भारतीय युद्ध में उपस्थित था । ये सारे राजा ‘ विदेह ’ , ‘ जनक ’ , ‘ निमि ’ आदि बहुविध नामों से सुविख्यात थे, किन्तु उनका ‘ सू. निमि. ’ वर्णन ही ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक उचित प्रतीत होता है । ये सारे राजा आत्मज्ञान में प्रवीण थे [विष्णु. ६.६.७ - ९] । पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को निमिवंशीय कहा गया है, किन्तु उनके नाम निमि वंश की वंशावलि में अप्राप्य है : - १. कराल; २. ऐंद्रद्युम्नि; ३. उग्र; ४. जनदेव; ५. पुष्करमालिन्; ६. माधव ७. शिखिध्वज । वैदिक साहित्य में निम्नलिखित निमिवंशीय राजाओं का निर्देश प्राप्त है : - १. कुणि (शकुनि) २. रंजन (अंजन); ३. उग्रदेव; ४. क्रतुजित् । ये सारे राजा वैदिक यज्ञकर्म में अत्यंत प्रवीण थे । वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट उपर्युक्त बहुत सारे राजाओं के नाम पौराणिक साहित्य में प्राप्त वंशावलियों में अप्राप्य हैं । संभव है कि, इन सारे राजाओं ने क्षत्रिय धर्म का त्याग कर ब्राह्मण धर्म स्वीकार लिया होगा । इस वर्णांन्तर के कारण उनका राजकीय महत्त्व कम होता गया, जिसके ही परिणाम स्वरुप पौराणिक राजवंशों में से उनके नाम हटा दिये गये होंगे ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  मनु के पुत्र नभग के द्वारा प्रस्थापित किये गये वंश का निर्देश पुराणों में अनेक स्थान पर प्राप्त है [ब्रह्मांड. ३.६३.५ - ६] ;[भा. ९.४ - ६] ;[ब्रह्म. ७.२४] ;[वायु. ८८.५ - ७] । इनका राज्य गंगानदी के दोआब में कहीं बसा हुआ था । इस वंश में नाभाग, अंबरीष, विरुप, पृषदश्व, रथीतर आदि राजा उत्पन्न हुए । किंन्तु आगे चल कर सोमवंशीय ऐल राजाओं के आक्रमण के कारण इनका राज्य आदि सारा वैभव चला गया, एवं ये लोग वर्णान्तर कर के अंगिरसगोत्रीय रथीतर ब्राह्मण बन गये ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  मनु के पुत्र नरिष्यन्त के द्वारा प्रस्थापित किये गये इस वंश का निर्देश पुराणों में अनेक स्थान पर प्राप्त है [भा. ९.२.१९ - २२] ;[वायु. ८६.१२ - २१] । इस वंश में उत्पन्न राजाओं में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - १. चित्रसेन; २. दक्ष; ३. मीढवस; ४. कूर्च; ५. इंद्रसेन; ६. वीतिहोत्र; ७. सत्यश्रवस; ८. उरुश्रवस्; ९. देवदत्त; १०. कालीन जातुकर्ण्य; ११. अग्निवेश्य । आगे चल कर, ये लोग क्षत्रियधर्म छोड कर ब्राह्मण बन गये, एवं आग्निवेश्यायान नाम से सुविख्यात हुए । दिष्ट राजवंश में भी नरिष्यंत नामक एक उपशाखा का निर्देश पाया जाता है, किन्तु वे लोग आद्य नरिष्यंत शाखा से बिलकुल विभिन्न थे ।
सूर्यवंश (राजवंश) n.  मनु के इस पुत्र के वंश का निर्देश भागवत में पाया जाता है, जिसमें सुमति, वसु, ओघवत् नामक राजा प्रमुख थे [भा. ९.२.१७ -१८]
सूर्यवंश (राजवंश) n.  मनु के शर्याति नामक पुत्र ने गुजरात देश में आकार इस स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की । शर्याति राजा के पुत्र का नाम आनर्त था, जिसके ही कारण, प्राचीन गुजरात देश को आनर्त नाम प्राप्त हुआ था । गुजरात में स्थित हैहय राजवंशीय राजाओं से इन लोगों का अत्यंत घनिष्ठ संबंध था । शर्याति राजवंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त है [भा. ९.३] ;[ह. वं. १.१०.३१ - ३३] ;[वायु. ८६.२३ - ३०] ;[ब्रह्मांड. ३.६१.१८ - २०] ; ६३.१; ४;[ब्रह्म. ७.२७ - २९] । इस वंश में निम्नलिखित राजा उत्पन्न हुए थे - १. आनर्त; २. रोचमान रेवत; ३. ककुद्मत् । इन में से ककुद्मत् राजा की कन्या रेवती बलराम को विवाह में दी गयी थी । इनकी राजधानी कुशस्थली (द्वारका) नगरी में थी । इस वंश के आद्य संस्थापक शर्याति राजा की कन्या का नाम सुकन्या था, जिसका विवाह च्यवन ऋषि से हुआ था । शर्यातिकन्या सुकन्या एवं च्यवन ऋषि की कथा वैदिक साहित्य में प्राप्त है ।

सूर्यवंश     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  जाची उत्पत्ती सुर्या पसूनची मानतात असो क्षत्रियांच्या दोन प्रसिद्ध आनी मूळ वंश वा कूळ हांचे भितरलो एक   Ex. राम सुर्यवंशांत जल्माक आयिल्लो
ONTOLOGY:
समूह (Group)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benসূর্য বংশ
gujસૂર્યવંશ
hinसूर्य वंश
kanಸೂರ್ಯವಂಶ
kasسوٗریہٕ نسٕل
malസൂര്യവംശം
marसूर्यवंश
oriସୂର୍ଯ୍ୟ ବଂଶ
panਸੂਰਜ ਵੰਸ਼
sanसूर्यवंशः
tamசூரிய வம்சம்
telసూర్యవంశం
urdسورج کا خاندان , آفتابی خاندان , آفتانی نسل , سوریہ ونش

सूर्यवंश     

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English
A race of kings descended from the sun. Their history is recorded in the Purán̤s.

सूर्यवंश     

Aryabhushan School Dictionary | Marathi  English
A race of kings descended from the sun.

सूर्यवंश     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  सूर्यापासून उत्पन्न झालेले, क्षत्रियांच्या दोन प्रसिद्ध कुळांपैकी एक कूळ   Ex. रामाचा जन्म सूर्यवंशात झाला होता
ONTOLOGY:
समूह (Group)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
सूर्यकूळ
Wordnet:
benসূর্য বংশ
gujસૂર્યવંશ
hinसूर्य वंश
kanಸೂರ್ಯವಂಶ
kasسوٗریہٕ نسٕل
kokसूर्यवंश
malസൂര്യവംശം
oriସୂର୍ଯ୍ୟ ବଂଶ
panਸੂਰਜ ਵੰਸ਼
sanसूर्यवंशः
tamசூரிய வம்சம்
telసూర్యవంశం
urdسورج کا خاندان , آفتابی خاندان , آفتانی نسل , سوریہ ونش

सूर्यवंश     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
सूर्य—वंश  m. m. the solar race of kings (i.e. the royal dynasty of राम-चन्द्र, king of अयोध्या, hero of the रामायण, who was descended from इक्ष्वाकु son of वैवस्वतमनु, son of the Sun ; many Rājput tribes still claim to belong to this race; it is one of the two great lines of kings, the other being called ‘lunar’ See चन्द्र-व्°), [Kṣitîś.] ; [Buddh.]
ROOTS:
सूर्य वंश

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