अध्याय चवथा - श्लोक १ से २०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


उत्तम मध्यम निंदितभेदसे तीन प्रकारके गृह चौदह १४ प्रकारके कहे हैं, उनके संक्षेपसे प्रमाणको कहताहुं ॥१॥

वह गृह दो प्रकारका कहा है. शरीर भिन्न २ प्रकारका होता है, गृह नामका शरीर होता है. और शयनके चक्रमें शय्याको गृह कहते हैं ॥२॥

सुखका अभिलाषी मनुष्य शय्याका प्रमाण अपने देहके प्रमाण करै. शय्या ८१ इक्यासी अंगुलकी वा नब्बे अंगुलके प्रमाणकी होती है ॥३॥

उसके आधे प्रमाणसे उसका विस्तार होता है और उसके पादुका ( पावे ) उद्यता गुल होते हैं अर्थात आधे अंगुल उँचे होते हैं. शय्याके विस्तारके प्रमाणकाही आसन बनवाना ॥४॥

उसके विस्तारसे पाद कम उसके विस्तारको अर्थात चौडाईको करे. अपने चरणोंकी समान उपानह बनवावे ॥५॥

पादेकाभी चरणोंके समान ही बनवावे अन्यथा बनवावे तो दु:ख और शोकको देते है. आष्ठ अंगुलके मानसे शय्याका प्रमाण बनवावे ॥६॥

अथवा कामकी इच्छावाले राजाओंकी अन्यभी शय्या कही है ॥७॥

सौ अंगुलकी शय्या राजाओंकी बडी कही है ॥८॥

राजाके कुमारोंकी शय्या नब्बे अंगुलकी और मंत्रियोंकी शय्या चौरासी ८४ अंगुलकी होती है. उससे बारह १२ अंगुल कम वलय और पर्यकके ऊपर कल्पना की हुई ॥९॥

अथवा २८ अंगुल कम पुरोहितोंकी शय्या होती है. उससे आधा और ८ अंश कम विष्टंभ ( पाया ) कहा है ॥१०॥

तीस ३० अंगुलके मानका आयाम ( चौडाई ) और एक पादभर उँचाई कही है संपूर्ण वर्णोकी शय्या ८१ अंगुलकी होती है ॥११॥

सामन्तोंकी शय्या ९० वा ८१ अंगुल कही है वह शय्या न अपने देहसे लम्बी हो और न चौडी हो ॥१२॥

अपने शरीरसे हीन शय्या रोगको देती है शरीरसे लम्बी दु:खको और समान शय्या सुखको देती है. पत्थरोंसे बनाया जो घर उसे मंदिर कहते हैं ॥१३॥

पक्कीईटोंसे बनाया जो घर है उसे भवन कहते हैं वह हित और उत्तम होता है. कच्ची ईटोंसे जो बनाहो उसे सुमन और कीच वा गारेसे बनाहो उसे सुधार कहते है ॥१४॥

काष्ठोंसे जो बनाया हो उसको मानस्य. बेंतोंसे जो बनाया हो उसको चन्दन कहते है. राजाओंका वस्त्रोंसे बनाया जो शिल्पियोंकी कल्पनासे स्थान उसे विजय कहते हैं ॥१५॥

जो आठवां तृणकी जातियोंसे बनायाहुआ स्थान है उसे कालिमा कहरे हैं. गृहस्थियोंकि चार स्थान उत्तम होते हैं ॥१६॥

सुवर्णसे चांदीसे तांबेसे और लोहेसे बनेहुए वे चारों कहे है- सुवर्णसे बनेहुएको कर और चांदीसे बनेहुएको श्रीभव कहते हैं ॥१७॥

तांबेसे बनेहुएको सूर्यमंत्र और लिहेसे बनेहुएको चण्ड नाम कहते हैं. देव दानव गंधर्व यक्ष राक्षस और पन्नग ॥१८॥

ये पूर्वोक्त गृहोंसे बारह नियमसे कहै है, लाखसे बनाया जो घर उसको अनिल और जलका बन्धन जिसमें हो उसको प्रायुव कहते है ॥१९॥

इस प्रकार संपूर्ण जतियोंमे १४ प्रकारके घर होते है. चार जो पूर्वोक्त उत्तम घर हैं वे ब्राम्हण आदि वर्णोके क्रमसे होते हैं ॥२०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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