अध्याय दसवाँ - श्लोक १ से २०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


अब नवीनमन्दिरके प्रवेशका वर्णंन कर्ते हैं -उत्तरायण सूर्य, बृहस्पति और शुक्रके बलवान होने पर ज्येष्ठ माघ फ़ाल्गुन वैशाख मार्गशिरमें गृहका प्रवेश श्रेष्ठ होती है और आषढमें मध्यमफ़लको देता है माघमें प्रथम प्रवेश होय तो धनका लाभ होता है फ़ाल्गुनमें पुत्र और धनका लाभ ॥१॥

चैत्रमें धनकी हानि और वैशाखमें धन धान्य परुपुत्रका लाभ होता है ज्येष्ठ मार्गशिर आषाढ मासोमें प्रथमप्रवेश मध्यम कहा है राजओंकी यात्रा-निवृत्ति होनेपर प्रथम वास्तुपूजा भूतबलिको करे ॥२॥

वह बलि प्रवेशके दिनसे प्रथम दिन करे फ़िर दिशाओंके क्रमसे मांस घृत्सहित असृकूकी बलि चारों कोनोंमें दे और ‘ये भूतानि’ इस मंत्रसे चारों दिशाओंमें बलि दे ॥३॥

घरके मूलमें और घरके ऊपर बलि दे और पहिले दिन दीपदान करे फ़िर वास्तुपूजा करे ॥४॥

घी दूध मांस लड्डू और सहत इनकी बलि पूर्वआदि दिशाओंके क्रमसे दे ॥५॥

स्कन्धधर आदि यक्षोंको ईशानाआदि क्रमसे चकोर आदिकी बलिको विदिशाओंमें दे ॥६॥

विष्णोरराट० इस मन्त्रसे वास्तुपुरुषका पूजन करे. नमोस्तु सर्पेभ्य:० इस मन्त्रसे सर्पराजका पूजन करे ॥७॥

अन्यदेवताओंकाभी गायत्री मन्त्र कहा है अपूर्वनामके घरमें यह विधि मैंने कही ॥८॥

शुभका अभिलाषी मनुष्य इसमें कालशुध्दिके विचारको करे कुम्भके सूर्य और फ़ाल्गुनमास मार्गशिर कार्तिक और आषाढमें ॥९॥

नवीन घरके प्रवेशको सर्वथा वर्ज दे । द्वन्द्व ( दो मनुष्योंका ) और पुराना जो घरहो उसमें मासका दोष नहीं है ॥१०॥

चिरकालतक परदेशके वासमें. राजाके दर्शनमें और घरके प्रवेशमें सूर्यको शुध्द देखना और चंद्रमाके मासमें प्रवेश करना ॥११॥

यात्राके समयसे नववें वर्ष और नवम मास और नवम दिनमें प्रवेशको न करे और प्रवेशके समयसे निगम ( यात्रा ) कोभी कदाचित न करे ॥१२॥

यदि एकही दिनमें राजाका प्रवेश और गमन होय तौ प्रवेशके समयकी शुध्दिको न विचारै यात्राकी शुध्दिको विचारे ॥१३॥

गृहके प्रारम्भके जो दिन मास नक्षत्र वार हैं उनमें ही गृहप्रवेश करे. गृहमें उत्तरायणके विषे प्रवेश करे और तृणके घरमें तो सदैव प्रवेश करे ॥१४॥

कुलीर ( कर्क ) कन्या कुम्भ इनके सूर्यमें घर ग्राम नगर और पत्तन ( शहर वा जिला ) इनमें प्रवेश न करे ॥१५॥

मृदु ध्रुव ( मृग चित्रा अनु० रे० उ० ३ रो० ) संज्ञक नक्षत्रोंमें नवीन घरका प्रवेश शुभदायी होता है और पुष्य स्वाती और घनिष्ठा शतभिषासे युक्त पूर्वोक्त नक्षत्रोंमें जीर्ण ( पुराने ) घरमें प्रवेश होता है ॥१६॥

क्षिप्रसंज्ञक और पुनर्वसु स्वाती श्रवण घनिष्ठा भरणी पूर्वाषाढा पूर्वाभाद्रपदा और दारुण संज्ञक नक्षत्रोंमें नवीन गृहमें प्रवेशको कदाचित न करे ॥१७॥

उग्र नाम नक्षत्र घरके स्वामीको और दारुण नक्षत्र बालकको और विशाखा नक्षत्र स्त्रीके नाशको करता है, कृत्तिका नक्षत्रमें प्रवेश करे तो अग्निसे भय होता है ॥१८॥

द्वारके जो नक्षत्र हैं उनमें ही प्रवेश होता है अन्य दिशामें स्थित नक्षत्रोंमें प्रवेश कदापि न करे और रिक्तातिथि भौमवार और शनिवारको प्रवेश न करे कोई आचार्य शनैश्वरकी प्रशंसा करते हैं परंतु उसमें चौरोंका भय होता है ॥१९॥

कुयोग पाप लग्न और चरलग्न और चरलग्नका नवांशक और शुभ कर्ममें जो वर्जित हैं वे इस प्रवेशमेंभी वर्जित हैं और नन्दातिथिको दक्षिणद्वारमें और भद्रातिथिको पश्चिमके द्वारमें प्रवेश करे ॥२०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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