दीपावली के पर्व पर सभी भक्तजन माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए अनेक प्रकार के जतन करते हैं । कुछ लोग इस दिन विशिष्ट साधनाएँ करते हैं , लेकिन सामान्य पूजन सभी करते हैं । इस दिन सायंकाल में शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी की विविध उपचारों से पूजा -अर्चना की जाती है । एक विशेष समस्या इस पूजा -अर्चना में प्रायः देखी जाती है कि महालक्ष्मी पूजन में प्रयुक्त मन्त्र संस्कृत भाषा में लिखी होने के कारण थोड़े क्लिष्ट होते हैं और इसी कारण आमजन इनका प्रयोग नहीं कर पाते हैं । पाठकगणों की इस समस्या का अनुभव करते हुए हिन्दी मन्त्रों से महालक्ष्मी का पूजन -अर्चना किया जा रहा है । हालॉंकि संस्कृत मन्त्रों का अपना महत्त्व है , लेकिन माँ तो भाव को ही प्रधानता देती है । यदि आप अपनी भाषा में अपने भाव माँ के समक्ष अच्छे से व्यक्त कर सकते हैं , तो वही भाषा आपके लिए सर्वश्रेष्ठ है । आइए , इस दीपावली पर हम अपनी भाषा में अपने भाव व्यक्त करके माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं ।
पूजन हेतु सामग्री
रोली , मौली , लौंग , पान , सुपारी , धूप , कर्पूर , अगरबत्ती , अक्षत (साबुत चावल ), गुड़ , धनिया , ऋतुफल , जौ , गेहूँ , टूब , पुष्प , पुष्पमाला , चन्दन , सिन्दूर , दीपक , रूई , प्रसाद , नारियल , सर्वोषधि , पंचरत्न , यज्ञोपवीत , पंचामृत , शुद्ध जल , खील , मजीठ , सफेद वस्त्र , लाल वस्त्र , फुलेल , लक्ष्मी जीव एवं गणेश जी का चित्र या पाना , चौकी (बाजौट ), कलश , घी , कमलपुष्प , इलायची , माचिस , दक्षिणा हेतु नकदी , चॉंदी के सिक्के , बहीखाता , कलम तथा दवात । आदि ।
पूजा विधान एवं नियम
दीपावली के दिन सायंकाल पूजन करने से पूर्व शुद्ध जल से स्नान करके स्वच्छ एवं सुन्दर वस्त्र धारण कर सकुटुम्ब पूजन करने के लिए तैयार हों । लक्ष्मी जी के पूजन हेतु जो स्थान आपने निश्चित किया है , उसको स्वच्छ जल से धोकर उस पर बैठने हेतु आसन लगाएँ । आपको पूजन करते समय यह अवश्य ही ध्यान रखना है कि आपका मुँह पूर्व दिशा की ओर हो अर्थात् लक्ष्मी जी का चित्र अथवा पाना पूर्व दिशा की दीवार पर लगाना चाहिए । यदि पूर्व दिशा की ओर जगह नही बन पा रही हो , तो आप पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजन कर सकते हैं ।
लक्ष्मी पूजन हेतु उपर्युक्त साम्रगी पहले ही एक स्थान पर एकत्र करके एक थाल में तैयार कर लेनी चाहिए । पाटा (चौकी ) पर आसन बिछाकर उस पर श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी का चित्र स्थापित कर दें । उसके बायीं ओर दूसरे पाटे पर आधे में सफेद वस्त्र एवं आधे में लाल वस्त्र बिछाकर सफेद वस्त्र पर चावल की नौ ढेरी नवग्रह की एवं गेहूँ की सोलह ढेरी षोडशमातृका की बना लें । एक मिट्टी के कलश अथवा तॉंबे के कलश पर स्वस्तिक बनाकर उसके गले में मौली बॉंधकर उसके नीचे गेहूँ अथवा चावल डालकर रखें । उसके ऊपर नारियल पर मौली बॉंधकर रख दें । पूजन प्रारम्भ करने के लिए घी का एक दीपक बनाकर तैयार करके और उसे गणेश जी एवं लक्ष्मी जी के चित्र के समान थोड़े गेहूँ डालकर उस पर रखकर प्रज्वलित कर दें । तत्पश्चात् दीपक पर रोली , चावल , पुष्प चढ़ाएँ एवं निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करे।
‘ हे दीपक ! तुम देव हो , कर्म साक्षी महाराज ।
जब तक पूजन पूर्ण हो , रहो हमारे साथ॥ ’
दीपक पूजन के उपरान्त एक जलपात्र में पूजा के निमित्त जल भरकर अपने सामने रखकर उसके नीचे अक्षत , पुष्प डालकर गंगा , यमुना आदि नदियों का निम्नलिखित मन्त्र से आवाहन करे।
गंगा यमुना , गोदावरी नदियन की सिरताज ।
सिंधु , नर्मदा , कावेरी , सरस्वती सब साथ ॥
लक्ष्मी पूजन लक्ष्य है , आज हमारे द्वार ।
सब मिल हम आवाहन करें , आओ बारम्बार ॥
तत्पश्चात् जलपात्र से बायें हाथ में थोड़ासा जल लेकर दाहिने हाथ से अपने शरीर पर छीटें देते हुए बोले ।
वरुण विष्णु सबसे बड़े , देवन में सिरताज ।
बाहर -भीतर देह मम , करो शुद्ध महाराज ॥
फिर तीन बार आचमन करें और उच्चारण करे ।
श्रीगोविन्द को नमस्कार ।
श्री माधव को नमस्कार ।
श्री केशव को नमस्कार ॥
अब दाहिने हाथ में अक्षत , पुष्प , चन्दन , जल तथा दक्षिणा लेकर निम्नलिखित संकल्प बोलें ।
‘ श्रीगणेश जी को नमस्कार । श्री विष्णु जी को नमस्कार । मैं .....( अपने नाम का उच्चारण करें ) जाति .....( आपनी जाति का उच्चारण करें ) गोत्र .....( अपने गोत्र का उच्चारण करें ) आज ब्रह्मा की आयु के द्वितीय परार्द्ध में , श्री श्वेतवाराह कल्प में , वैवस्वत मन्वन्तर में , २८वें कलियुग के प्रथम चरण में , बौद्धावतार में , पृथ्वी लोक के जम्बू द्वीप में , भरत खण्ड नामक भारतवर्ष के .....( अपने क्षेत्र का नाम लें )..... नगर में ( अपने नगर का नाम लें )..... स्थान में ( अपने निवास स्थान का नाम लें ) संवत् २०६७ , कार्तिक मास , कृष्ण पक्ष , अमावस्या तिथि , शुक्रवार को सभी कर्मों की शुद्धि के लिए वेद , स्मृति , पुराणों में कहे गए फलों की प्राप्ति के लिए , धन - धान्य , ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए , अनिष्ट के निवारा तथा अभीष्ट की प्राप्ति के लिए परिवार सहित महालक्ष्मी पूजन निमित्त तथा माँ लक्ष्मी की विशेष अनुकम्पा हेतु गणेश पूजनादि का संकल्प कर रहा हूँ । ’
अब ऐसा कहते हुए गणेश जी की मूर्ति पर अथवा थाल में स्वस्तिक बनाकर सुपारी पर मोली लगाकर रखें । उसके उपरान्त गणेश जी का आवाहन निम्नलिखित मन्त्र से करें ।
सिद्धि सदन गज वदन वर , प्रथम पूज्य गणराज ।
प्रथम वन्दना आपको , सकल सुधारो काज ॥
जय गणपति गिरिजा सुवन रिद्धि -सिद्धि दातार ।
कष्ट हरो मंगल करो , नमस्कार सत बार ॥
रिद्धि -सिद्धि के साथ में , राजमान गणराज ।
यहॉं पधारो मूर्ति में , आओ आप बिराज ॥
शोभित षोडशमातृका , आओ यहॉं पधार ।
गिरिजा सुत के साथ में , करके कृपा अपार ॥
सूर्य आदि ग्रह भी , करो आगमन आज ।
लक्ष्मी पूजा पूर्ण हो , सुखी हो समाज ॥
आवाहन के पश्चात् हाथ में अक्षत लेकर सुपारी रूपी गणेश जी पर छोड़ते हुए श्रीगणेश जी को आसन दें ।
इसके उपरान्त गणेश जी का पूजन निम्नलिखित प्रकार से करें । तीन बार जल के छीटें देकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करे ।
पाद्य अर्घ्य वा आचमन , का जल यह तैयार ।
उसको भी प्रेमये , कर लो तुम स्वीकार ॥
पाद्य स्वीकार करें । अर्घ्य स्वीकार करें । आचमन हेतु जल स्वीकार करें ।
यह बोलकर जल के छीटें दें ।
स्नान हेतु जल स्वीकार करें । जल के छीटें दें ।
वस्त्र स्वीकार करें । बोलकर मोली चढ़ाएँ ।
गन्ध स्वीकार करें । रोली चढ़ाएँ ।
अक्षत स्वीकार करें । चावल चढ़ाएँ ।
पुष्प स्वीकार करें । पुष्प चढ़ाएँ ।
धूप स्वीकार करें । धूप करें ।
दीपक के दर्शन करें । दीपक दिखाएँ ।
मिष्टान्न स्वीकार करें । प्रसाद चढ़ाएँ ।
आचमन हेतु जल स्वीकार करें । कहकर जल के छीटें दें ।
ऋतुफल स्वीकार करें । ऋतुफल चढ़ाएँ ।
मुखशुद्धि के लिए पान स्वीकार करें । पान , सुपारी चढ़ाएँ ।
दक्षिणा स्वीकार करें । कहते हुए नकदी चढ़ाएँ ।
नमस्कार स्वीकार करें । नमस्कार करें ।
अब करबद्ध होकर गणेशजी को निम्नलिखित मन्त्र से नमस्कार करे ।
विघ्न हरण मंगल करण , गौरी सुत गणराज ।
मैं लियो आसरो आपको , पूरण करजो काज ॥