हस्त
आकर्षण , स्तंभन , शांति , पौष्टिक , मारण , विद्वेषण और उच्चाटन कर्म में दक्षिणहस्त तथा वशीकरण में वामहस्त का प्रयोग विहित है ।
दीपक व धूप
साधक को दायीं ओर दीपक और बायीं ओर धूप रखनी चाहिए ।
दीपन आदि प्रकार
दीपन से शांति कर्म , पल्लव से विद्वेषण कर्म , सम्पुट से वशीकरण कर्म , रोधन से बंधन , ग्रंथन से आकर्षण कर्म , विदर्भण से स्तंभन कर्म होता है । ये छह भेद प्रत्येक मंत्र में लागू होते हैं । उदाहरण के लिए -
मंत्र के प्रारंभ में नाम की स्थापना करें तो '' दीपन '' कहा जाता है ।
मंत्र के अंत में नाम की स्थापना करें तो '' पल्लव '' कहा जाता है ।
मंत्र के मध्य भाग में नामोल्लेख करें तो '' रोधन '' कहा जाता है ।
एक मंत्राक्षर दूसरा नामाक्षर , तीसरा मंत्राक्षर चौथा नामाक्षर ; इस प्रकार संकलित करें तो '' ग्रंथन '' कहा जाता है ।
मंत्र के दो अक्षरों के बाद एकेक नामाक्षर रखें तो उसे '' संकलित '' कहते हैं ।