संज्ञाप्रकरणम् - श्लोक १ ते १८


अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


श्रीगणेशाय नम : ॥ प्रणम्य विश्वेश्वरमिष्टदेवं द्दष्ट्वा वसिष्ठादिताश्व संहिता : । बालप्रबोधाय करोमि ग्रन्थं मुहूर्तकाशं सुगमं सप्रासत : ॥१॥
तावत्संवत्सरपरिज्ञानम्‌ । विक्रमादित्यशाकस्य पञ्चत्रिंशाधिके शते । शोधिते जायते शाकश्वैत्रशुक्लादित : क्रमात्‌ ॥२॥
अथ प्रभवादिसं - वत्सरज्ञानम्‌ । सकेन्द्रकाल : पृथगाकृति २२ घ्न : शशांकनंदाश्वि - युगै : ४२९१ समेत : । शराद्रिवस्विंदु १८७५ हृत : मलब्ध : षष्टयाबशिष्टा : प्रभवादयोऽब्दा : ॥३॥
अथायनसंज्ञा । मकराद्राशिषट्‌केऽकें प्रोक्तं चैवोत्तरायणम्‌ । षट्‌सु कर्कादिति ज्ञेयं दक्षिणं ह्ययन रवे : ॥४॥
अथ ऋतुसंज्ञा । मीनमेषगते सुर्ये वसन्त : परिकीर्तित : । वृषभे मिथुने ग्रीष्मी वर्षासिंहेऽथ कर्कटे ॥५॥
कन्यायां च तुलायां च शरद्दतुरुदाहृत : । हेमन्तो वृश्विकद्वन्द्वे शिशिरो मृगकुम्भयो : ॥६॥
अथ भाषाभावार्थो लिख्यते । प्रथम ग्रंथकर्ता शिष्टाचारको अंगीकार करके ग्रंथके निर्विघ्नतापूर्वक समाप्तिके अर्थ नमस्करात्मक मंगलाचरण करता है , ( प्रणम्य इति ) विश्वका ईश्वर और हमारा इष्टदेव विश्वेश्वर है , उनको नमस्कार करके तथा वशिष्ठ - नारद - गर्ग - पराशर - भृगु आदि महर्षिकृत संहिताओंको देख करके यह ज्योतिषका " मुहूर्त्तप्रकाश " नाम ग्रंथ अतिसुगम और संक्षेपसे बालकोंके बोधके अर्थ करता हूं ॥१॥
( तत्रादौ संवत्सरज्ञानम्‌ ) विक्रमादित्यके वर्त्तमान संवत्‌मेंसे १३५ निकाल ले तो शालिवाहनक शक निकल आता है । यह शक चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे जानना चाहिये ॥२॥
( प्रभवादिसंवत्सरज्ञानम्‌ ) वर्तमान शकको बाईस २२ से गुणा करे फिर ४२९१ करके संयुक्त करे और १८७५ से भाग दे , फिर जो लब्ध हो उसे अंकके साथ वर्तमान शकको जोडे , फिर ६० का भाग दे , जो शेष रहे हुए अंक हैं उनको प्रभवादि गत संवत्सर जानना ॥३॥
( अयनसंज्ञा ) मकरसे लेके छ : राशियोंमें सूर्य होनेसे उत्तरायण कहलाता है और कर्कादि छ : राशियोंपर सूर्य होनेसे दक्षिणायण जानना चाहिये ॥४॥
( ऋतुसंज्ञा ) मीन १२ मेष १ का सूर्य होनेसे वसंतऋतु . वृष २ मिथुन ३ के सूर्यसे ग्रीष्मऋतु और कर्क ४ सिंह ५ के सूर्यसे वर्षाऋतु होती है ॥५॥
कन्या ६ तुला ७ के सूर्यसे शरद्‌ऋतु , वृश्चिक ८ धन ९ के सूर्यमें हेमंत और मकर १० कुंभ ११ में सूर्य होनेसे शिशिरऋतु कहते हैं ॥६॥
अथ माससंज्ञा । मासश्वैत्रोऽथे वैशाखो ज्येष्ठ आषाढसंज्ञक : ततस्तु श्रावणो भाद्रपदाथोऽश्विनसंज्ञक : ॥७॥
कार्त्तिको मार्गशीर्षश्व पौषो माघोऽथ फाल्गुन : । मासो दर्शावधिश्वांद्र : सौर : संक्रमणाद्रवे : ॥८॥
त्रिंशद्दिन : सावनिको नाक्षत्रो विधुसंश्वमात्‌ । चांद्रस्तु द्विविधो मासो दर्शोत : पौर्णिमांतिम : ॥९॥
अथ तिथिसंज्ञा ॥ प्रतिपच्च द्वितीया च तृतीया तदनन्तरम्‌ । चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी सप्तमी चाष्टमी तथा ॥१०॥
नवमी दशमी चैवकादशी द्वादशी तत : । त्रयोदशी त तो ज्ञेया तत : प्रोक्ता चर्तुदशी ॥ पूर्णिमा शुक्लपक्षेऽन्त्या कृष्णपक्षे त्वमा स्मृता ॥११॥

( माससंज्ञा ) चैत्र १ , वैशाख २ , ज्येष्ठ ३ , आषाढ ४ , श्रावण , ५ , भाद्रपद ६ , आश्विन ७ , कार्त्तिक ८ , मार्गशिर ९ , पौष १० , माघ ११ और फाल्गुन १२ यह बारह मास हैं । अमावास्या अन्तमें होनेसे चांद्रमास और सूर्यकी संक्रातिसे सौर मास कहा है ॥७॥८॥
तीस दिनके मासकी सावनिक संज्ञा है और चन्द्रमासे नाक्षत्रसंज्ञा होती है । चांद्रमास भी दो प्रकारके हैं - एक तो अमावास्या अंतका , दूसरा पूर्णिमाके अंतका ॥९॥
( तिथिसंज्ञा ) प्रतिपदा १ , द्वितीया २ , तृतीया ३ , चतुर्थी ४ , पंचमी ५ , षष्ठी ६ , सप्तमी ७ , अष्टमी ८ , नवमी ९ , दशमी १० , एकादशी ११ , द्वादशी १२ , त्रयोदशी १३ , चतुर्दशी १४ , शुक्लपक्षके अंतमें पूर्णिमा १५ , और कृष्णपक्षके अन्तमें अमावास्या ३० , होती है ॥१०॥११॥
अथ तिथीशा : । तिथीशा वह्निकौ गौरी गणेशोऽहिर्गुहो रवि : ॥१२॥
शिवी दुर्गाऽन्तको विश्वे हिर : काम : शिव : शशी । अमावास्यातिथेरीशा : पितर : संपकीर्तिता : ॥१३॥
अथ नन्दादिसंज्ञा । नन्दामद्राजयारि - क्तापूणाश्व तिथय : क्रमात्‌ । वारत्रयं समावर्त्य तिथय : प्रतिपन्मुखा : ॥१४॥
अथ वारसंज्ञा । आदित्यश्वन्द्रमा भौमो बुधश्वाथ बृहस्पति : । शुक्रश्शनैश्वरश्वैते वामरा : परिकीर्तिता : ॥१५॥
शिवो दुर्गा गुहो विष्णु - ब्रह्नेन्द्र : कालसंज्ञक : । सूर्यादीनां क्रमादेते स्वामिन : परिकीर्तिता : ॥१६॥
अथ शुभाशुभसंज्ञा । गुरुश्वन्द्रो बुध : शुक्र : शुभा वारा : शुभे स्मृता : । क्रूरास्तु क्रूरकृत्येषु ग्राह्या भौमार्कसूर्यजा : ॥१७॥
अथ स्थिरचरसंज्ञा । स्थिर : सूर्यश्वरश्वन्द्रो भौमश्वोग्रो बुध : सम : । लघुर्जीवो मृदु : शुक्र : शनिस्तीक्ष्ण : समोरित : ॥१८॥

( तिथीनामधिपतय : ) प्रतिपदासे लेके सोलह तिथियोंके क्रमसे अधिपति जानना । प्रतिपदाके अग्नि स्वामी १ , द्वितीयाके ब्रह्मा २ , तृतीयाके गौरी ३ , चतुर्थीके गणेश ४ , पंचमीके सर्प ५ , षष्ठीके स्वामिकार्तिक ६ , सप्तमीके सूर्य ७ ॥१२॥
अष्टमीके शिव ८ , नवमीके दुर्गा ९ , दशमीके काल १० , एकादशीके विश्वेदेव ११ , द्वादशीके विष्णु १२ , त्रयोदशीके कामदेव १३ , चतुर्दशीके शिव १४ , पूर्णिमाके चन्द्रमा १५ , और अमावस्याके पितर अधिपति जानना ॥१३॥
( नंदादिसंज्ञा ) प्रतिपदासे लेके तीन बेर गिननेसे नन्दा आदि बिथियोंकी संज्ञा होती जैसे १ । ६ । ११ नन्दा , २ । ७ । १२ मद्रा , ३ । ८ । १३ जया , ४ । ९ । १४ रिक्ता , ५ । १० । १५ । पूर्णा जानना ॥१४॥
( वारसंज्ञा आदित्यवार १ , सोम २ , मंगल ३ , बुध ४ , बृहस्पति ५ , शुक्र ६ , शनैश्वर ७ यह सात वार हैं ॥१५॥
आदित्यवारके शिव अधिपति , सोमके दुर्गा , भौमके स्वामिकार्तिक , बुधके विष्णु , गुरुके ब्रह्मा , शुक्रके इंद्र , शनिके काल स्वामी हैं ॥१६॥
( शुभाशुभसंज्ञा ) गुरु , शुक्र , बुध , चन्द्र यह शुभ कर्मके योग्य शुभवार है और भौम , आदित्य , शनि क्रूरकामके योग्य कूर वार जानना ॥१७॥
( स्थिरचरसंज्ञा ) सूर्य स्थिरसंज्ञक है , चद्रमा चर मंगल उग्र , बुध सम , गुरु लघुसंज्ञक , शुक्र मृदु , शनि तीक्ष्ण संज्ञावाले हैं ॥१८॥

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Last Updated : November 11, 2016

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