अथैषां प्रयोजनम् । यस्मिन्नृक्षे हि यत्कर्म्म कथितं निखिलं च यत् । तद्दैवत्ये तन्मुहूर्त्ते कार्य्ये यात्रादिकं सदा ॥६४॥
दिनमध्येऽभिजित्संज्ञे दोषमध्येषु सत्स्वपि । सर्वं कुर्याच्छुभं कर्म्म याम्यदिग्गमनं विना ॥६५॥
अथ ख्यादिवारेषु त्याज्यमुहूर्त्ता : । अर्थ्यमाभानुमद्वारे चन्द्रेऽह्नि विधिराक्षसौ । पित्र्याग्नी कुजवारे तु चन्द्रपुत्रे तथाऽभिजित् ॥६६॥
पित्र्यब्राह्यौ भृगोर्वारे रक्षरसापौं गुरोर्दिने । रौद्रसापौं शनेरह्नि त्याज्याश्वैते मुहूर्त्तका : ॥६७॥
अथ पौराणिकमुहूर्त्ता : । पौराणिका रौद्रचैत्रसितमैत्रभवाक्षणा : । सावित्रवैराजिकाख्यौ गन्धर्वश्वाष्टमोऽभिजित् ॥६८॥
रौहिणो बलसंज्ञ्श्व विजयो नैऋतस्तथा । इन्द्रो जलेश्वर : पंचदशमी भगसंज्ञक : । अष्टमो योऽभिजित्संज्ञ : स एव कुतुप : स्मृत : ॥६९॥
रौद्रगन्धर्वयक्षेशाश्चारुणो मारुतोऽनजल : । रक्षो धाता तथा सौम्य : पद्मजो वाक्पति : स्मृत : । पूषा हरिर्वायुनिऋन्मुहूर्त्ता रात्रिंसज्ञिता : ॥७०॥
सितवैराजविजयमैत्राणि चित्रसंज्ञका : । अभिजिद्वलयुक्तास्ते सर्वकार्येषु सिदिदा : ॥७१॥
( मुहूर्त्तप्रयोजन ) जिस नक्षत्रमें जो कार्य करना लिखा है सोही समग्र कर्म उसी नक्षत्रके स्वामीके मुहूर्त्तमें यात्रा आदि शुभकार्य करना चाहिये ॥६४॥
और दिनके ११॥ बजे अभिजित् नाम मुहुर्त्त सदैव आता है सो इस मुहूर्त्तमें अशुभ दिन होवे तो भी यात्रा आदि कार्य करना शुभदायक है परंतु दक्षिण दिशाके गमनमें त्याज्य है ॥६५॥
( वारमें त्याज्य मुहूर्त्त ) अर्यमा नाम मुहूर्त्त आदित्यवारको त्याज्य है और विधि राक्षस सोमवारको , पितृ अग्नि मंगलको , अभिजित् बुधको ॥६६॥
पितृ ब्राह्म शुक्रको , राक्षस सर्प गुरुवारको , रौद्रा शनिवारको शुभकार्यमें त्याग देना चाहिये ॥६७॥
( पुराणोक्त मुहूर्त्त ) रौद्र १ , चैत्र २ , सित ३ , मैत्र ४ , सावित्र ५ , वैराजिक ६ , गांधर्व ७ , अभिजित् ८ , रौहिण ९ , बल १० , विजय ११ , निऋति १२ , माहेंद्र १३ , जलेश्वर १४ , भग १५ यह १५ मुहुर्त्त दिनमें पुराणोंके मतसे जानना और इनमें आठवां अभिजित् मुहूर्त्त है उसका कुतुप भी नाम है ॥६८॥६९॥
रौद्र १ , गंधर्व २ , यक्षेश ३ , अरुण ४ , मारूत . ५ , अनल ६ , राक्षस ७ , धाता ८ , सौम्य . ९ , पद्मज १० , वाक्पति ११ , पूवा १२ , हरि १३ , वायु १४ , निऋति १५ यह रात्रिके मुहूर्त्त हैं ॥७०॥
इन मुहूत्तोंमेंसे सित . वैराज . विजय . मैत्र . चित्र , अभिजित् यह छ : मुहूर्त्त संपूर्ण कार्योंकी सिद्धि करनेवाले हैं ॥७१॥
अथ आनन्दादियोगा : । आनन्द : कालदण्डश्च धूम्राक्षोऽथ प्रजापति : । सौम्यो ध्वांक्षो ध्वजश्चैव श्रीवत्सो वज्रमुद्ररौ ॥७२॥
छत्रं मित्रं मानसं च पद्माख्यो लुम्बकस्तथा । उत्पातमृत्युकाणाश्च सिद्धिश्चाथ शुभोऽमृति : ॥७३॥
मुसलो गदमातंगौ राक्षप्तश्च चर : स्थिर : ॥ प्रवर्द्धमाना विज्ञेया अष्टाविंशतिरित्यमी ॥ फले स्वनामसद्दश योगा दैवज्ञभाषिता : ॥७४॥
( आनन्दादि योगनाम ) आनन्द १ , कालदंड २ , धूम्राक्ष ३ , प्रजापति ४ , सौम्य ५ , ध्वांक्ष ६ , ध्वज ७ , श्रीवत्स ८ , वज्व्र ९ , मुदर १० , छत्र ११ , मित्र १२ , मानस १३ , पद्म १४ , लुम्बक १५ , उत्पात १६ , मृत्यु . १७ , काण १८ , सिद्धि १९ , शुभ २० , अमृत २१ , मुसल २२ , गद २३ , मांतग २४ , राक्षस २५ , चर २६ , स्थिर २७ , प्रवर्द्धमान २८ , यह अद्दाईस योग हैं और इन योगोंके नामसद्दश फल जानना चाहिये ॥७२॥७३॥७४॥
अथानन्दादिसंज्ञा । अश्विनी रविवारे च योगो ह्यानन्दसंज्ञक : ॥७५॥
मृगशीर्षं शीतरश्मावाश्लेषा क्षितिनन्दने । बुधे हस्तोऽनुराधा च देवराज - पुरोहिते ॥७६॥
भार्गवे चोत्तराषाढा शनौ शुतभिषा यदि । तदाऽऽनंदाख्ययोग : स्यात्कालदण्डादय : क्रमात् ॥७७॥
अथामृतसिद्धियोग : । हस्त : सूर्ये मृग : सोमे वारे भौमे तथाऽश्विनी । बुधे मैत्रं गुरौ पुष्यो रेवती भृगृनन्दने ॥७८॥
रोहिणी सूर्यपुत्रे च सवसिद्धिप्रदायक : । असावमृतसिद्धिश्व योग : प्रोक्त : पुरातनै : ॥७९॥
अथ उत्पातमृत्युकाणसिद्धियोगा : । विशाखादिचतुष्के च सूर्यरवार क्रमेण च । उत्पातमृत्युकाणश्व सिद्धिश्राथ शुभ भवेत ॥८०॥
अथ क्रकचयोग : । तिथ्यकेन समायुक्तो वारां को यदि जायते । त्रयोदशांक : क्रकचो योगो निंद्यस्तदा शुभे ॥८१॥
( आनन्द ) योग आदित्यवारको अश्विनी नक्षत्र होवे तव आनन्दयोग होता है ॥७५॥
और सोमवारको मृगशिरा हो , मंगलवारको आश्लेषा हो , बुधको हस्त हो गुरुको अनुराधा हो तो आनन्द योग जानना ॥७६॥
शुक्रवारको उत्तराषाढा हो और शनिवारको शतभिषा होवे तब आनन्दयोग होता है और इसीतरह क्रमसे काल दण्डादि योग जानना ॥७७॥
( अमृतसिद्धि योग ) आदित्यवारको हस्त नक्षत्र होवे . सोमवारको मृगशिर हो , मंगलवारको अश्विनी हो , बुधवारको अनुराधा हो , गुरुवारको पुष्य हो , शुक्रवारको रेवती हो , शनिवारको रोहिणी होवे तव सर्वसिद्धि देनेवाला अमृतसिद्धि योग होता है ॥७८॥७९॥
( उत्पात मृत्यु काण सिद्धियोग ) आदित्यवारको विशाखा नक्षत्र होवे तो उत्पातयोग होता है और अनुराधा होवे तो मृत्युयोग , ज्येष्ठा होवे तो काण योग और मूल होवे तो सिद्धि योग जानना ॥८०॥
( क्रकच योग ) तिथिकी संख्याके साथ वारकी संख्या मिलाके तेरह १३ हो जावें तब क्रकच योग शुभकार्यमें निंदित होता है ॥८१॥