( राग - खमाज; ताल - त्रिताल. )
बावरि भई तन मेरी । बावरी ॥ध्रु.॥
जित देखूं तित ठाडे निरंजन । चमकत भूलि रहि ॥१॥
निरखत निरखत देखत मनमों । तनकी शुद्धि गई ॥२॥
दासके पास दयालकी मूरत । सबघट एक सही ॥३॥


( राग - खमाज; ताल - त्रिताल. )
तनमन मोहन ले गयो री ॥ध्रु.॥
भली न सुचे बुरी न सुचे ॥ मै तों भई बावरी ॥१॥
घटघट मेरा साहीया ॥ ताकूं देखत भूली परी ॥२॥
अंतरजामी अंतर जाने ॥ भगतनकू मुगत घरीं ॥३॥


( राग - संकीर्ण पिलू; ताल - पंजाबी. )
पीरत लागी रे माधो पीरत लागी रे ।
और पीरतसे मनसा भागी । रामचरण चित्त लागी ॥ध्रु.॥
तेरो नाम उच्चारे संसारमय । माकु शुद्धि नहि मेरे तनकी ॥
गृह दारा धन छोरि दियो । आस पुरावे मेरे मनकी ॥१॥
खाना पीना मोकुं कछु नहि भावे । भावत नही घरचार ॥
न धनजोबनसो कछु नहि पावे । बेग दिखाव दीदार ॥२॥
रामदासको पीरतको प्यारे । पीरत पीरत चढावे ॥
रूप देखनकी आस लागी । मानलिये बेगी आवे ॥३॥


( राग - पहाडि; ताल - दीपचंदी )
रे मोकु सुरज्जनहार दिखाव ॥ध्रु.॥
धुंडत धुंडत भूलि परी रे । कैसा है सो बताव ॥१॥
दुनियामें सब करते बजाव । घरिं एक सोहि मिलाव ॥२॥
दास हरिजन धुंडीत ताकू । तुज हि धुंडत जाव ॥३॥


( राग - वसंत; ताल - दीपचंदी )
खेलत है नंदलाल बसंत ॥ध्रु.॥
अबीर सिलारस मृगमद केशर । डारत लाल गुलाल ॥१॥
तेल फुलेल गुलाल कुसुंबा । छिरकत मदनगुपाल ॥२॥
केतकि चंपक मालति माला । मारते गंध रसाल ॥३॥
आपे रंग भिने गोपि भिनाई । तनमन दीजे हो ॥४॥

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Last Updated : December 09, 2016

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