अतिथि (मनुष्य)-यज्ञ

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


अतिथि (मनुष्य)-यज्ञ
बलिवैश्वदेवके बाद सबसे पहले अतिथियोंको ससम्मान भोजन कराये । इसके पहले मनुष्य-यज्ञमें जो हन्तकार अन्न दिया गया है, उससे भिन्न अन्न श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको जो दिया जाता है, वह मनुष्य-यज्ञ कहलाता है । यह भी देखना होता है कि नियमित भोजन करनेवाले जो भृत्य हैं, उनका उपरोध किसी तरह न हो । अभावकी स्थितिमें मीठी बातोंसे अतिथियोंको संतुष्ट करे । चटाई बिछाकर ससम्मान बिठाये, जल ही दे दे । इन तीनोंसे भी अतिथियोंका जो सत्कार होता है, वह ज्योतिष्टोमसे भी अधिक फलप्रद होता है ।
अतिथियोंको लौटाना नहीं चाहिये, ऐसा करनेसे पाप लगता है । मध्याह्नमें आये अतिथिकी अपेक्षा सूर्यास्तके समय आये अतिथिका आठ गुना अधिक महत्त्व है । सूर्यास्तके समय आये अतिथिको ‘सूर्योढ’ कहा जाता है । ‘सूर्योढ’ अतिथि यदि असमयमें भी आ जाय तो उसे बिना भोजन कराये न रहे ।
वैश्वदेवके समय प्राप्त अतिथिको नारयणका स्वरुप मानते हुए उसके कुल, शील, आचार, गुण-दोष, विद्या आदिपर विचार नहीं करना चाहिये ।

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Last Updated : December 02, 2018

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