विशेष बातें
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
विशेष बातें
(१) पात्रापात्रका विचार न करना केवल अतिथिके लिये है-वैश्वदेवके लिये है । अन्यत्र पात्रापात्रका विचार बहुत ही अपेक्षित है । दान तो खूब विचारकर सत्पात्रको ही देना चाहिये । यदि बिना विचारे किसी अपात्रको खिला दिया जाय तो वह जो कुछ पाप करेगा, उसका हिस्सेदार खिलानेवाला भी होगा और खोजकर यदि किसी भगवत्प्राप्त संतको भोजन करा दिया जाय तो अन्नदाताको लाखों ब्राह्मणोंके भोजन करानेका फल प्राप्त हो जायगा । साथ ही दया-परवश होकर दीन-दुखियोंको यदि कुछ दिया जाय तो वह भी फलप्रद होता है । लूले-लँगडे आदिका भी भरण-पोषण किया जाना चाहिये, किंतु उन्हें दान न दे ।
(२) वैश्वदेव नित्यकर्म है । इसके करनेसे प्रत्यवायके शमनके साथ-साथ फलकी भी प्राप्ति होती है, किंतु अशौचमें इसे न करे ।
(३) नित्यकर्ममें नित्य-श्राद्ध भी आता है । यहाँ आगे उसका भी उल्लेख किया गया है । परंतु जो लोग नित्य-श्राद्ध नहीं कर सकें, उनके लिये निम्नलिखित रुपसे भी नित्य-श्राद्धकी पूर्ति हो जाती है -
(क)-नित्यतर्पण करनेसे-‘अपि वाऽऽपस्तत् पितृयज्ञ: संतिष्ठेत् ।’
(ख)-वैश्वदेवमें पितृयज्ञ करनेसे-‘वैश्वदेवान्त: पाति स्वधा पितृभ्य:’ इति पैत्र्यबलिनैव वा नित्यश्राद्धसिद्धि: ।’
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Last Updated : December 02, 2018
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