सगुणपरीक्षा - ॥ समास नववा - मृत्युनिरुपणनाम ॥
श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
संसार याने नित्य सवार । नहीं होती मृत्यु उधार । काल नापता शरीर । घडी हर घडी ॥१॥
नित्य काल की संगति । न समझे होनी की गति । कर्मानुसार प्राणी जाते । नाना देश विदेश में ॥२॥
खत्म होते ही संचितों का शेष । नहीं क्षण का अवकाश । आते ही जाने का निमिष । जाना पडता ॥३॥
अकस्मात् काल के दूत । मारने लगते एक साथ । ले जाते तत्पश्चात् । मृत्युपथ पर ॥४॥
होते ही मृत्यु के वार । कोई न बन सकता रक्षणहार । होता सभी पर प्रहार । आगे पीछे ॥५॥
मृत्युकाल की नेमक लाठी । बलवान के सिर पर पड़ती । महाराजा बलशाली लोग भी। ना रह पाते ॥६॥
मृत्य न कहे कि यह क्रूर । मृत्य न कहे कि यह धुरंधर । मृत्य ना कहे कि यह संग्रामशूर । समरांगण में ॥७॥
मृत्य न कहे कि यह कोपी । मृत्य न कहे यह प्रतापी । मृत्य न कहे उग्ररूपी। महाखल ॥८॥
मृत्य न कहे यह बलवान । मृत्य न कहे धनवान । मृत्य न कहे संपन्न । सर्वगुणों में ॥९॥
मृत्य न कहे यह विख्यात । मृत्य न कहे यह श्रीमंत । मृत्य न कहे यह अद्भुत । पराक्रमी ॥१०॥
मृत्य न कहे यह भूपति । मृत्यु न कहे यह चक्रवर्ती । मृत्य न कहे यह करामाती । युक्ति जाने ॥११॥
मृत्य न कहे अश्वपति । मृत्य न कहे गजपति । मृत्य न कहे नरपति । राजा विख्यात ॥१२॥
मृत्य न कहे जनों में वरिष्ठ । मृत्य न कहे यह राजकारणी । मृत्य न कहे यह वेतनी । वेतन धर्ता ॥१३॥
मृत्य न कहे देसाई । मृत्य न कहे व्यवसायी । मृत्य न कहे ठायीं ठायीं । विद्रोही राजा ॥१४॥
मृत्य न कहे मुद्राधारी । मृत्य न कहे व्यापारी । मृत्य न कहे परनारी । राजकन्या ॥१५॥
मृत्य न कहे कार्याकरण । मृत्य न कहे वर्णावर्ण । मृत्य न कहे यह ब्राह्मण । कर्मनिष्ठ ॥१६॥
मृत्य न कहे व्युत्पन्न । मृत्य न कहे संपन्न । मृत्य न कहे विद्वज्जन । समुदाई ॥१७॥
मृत्य न कहे यह धूर्त । मृत्य न कहे बहुश्रुत । मृत्य न कहे यह पंडित । महाभला ॥१८॥
मृत्य न कहे पुराणिक । मृत्य न कहे यह वैदिक । मृत्य न कहे यह याज्ञिक । अथवा जोशी ॥१९॥
मृत्य न कहे अग्निहोत्री । मृत्य न कहे यह श्रोती। मृत्य न कहे मंत्र यंत्री । पूर्णागमी ॥२०॥
मृत्य न कहे शास्त्रज्ञ । मृत्य न कहे वेदज्ञ । मृत्य न कहे सर्वज्ञ । सर्वज्ञाता ॥२१॥
मृत्य न कहे ब्रह्महत्या । मृत्य न कहे गोहत्या । मृत्य न कहे नाना हत्या । स्त्री बालक आदि ॥२२॥
मृत्य न कहे रागज्ञानी । मृत्य न कहे तालज्ञानी । मृत्य न कहे तत्त्वज्ञानी । तत्त्ववेत्ता ॥२३॥
मृत्य न कहे योगाभ्यासी । मृत्य न कहे संन्यासी। मृत्य न कहे काल से । बचाने वाला ॥२४॥
मृत्य न कहे यह सावध । मृत्य न कहे यह सिद्ध । मृत्य न कहे वैद्य प्रसिद्ध । पंचाक्षरी ॥२५॥
मृत्य न कहे यह गोसावी । मृत्य न कहे यह तपस्वी । मृत्य न कहे यह मनस्वी । उदासीन ॥२६॥
मृत्य न कहे ऋषेश्वर । मृत्य न कहे कवीश्वर । मृत्य न कहे दिगंबर । समाधिस्थ ॥२७॥
मृत्य न कहे हठयोगी । मृत्य न कहे राजयोगी । मृत्य न कहे वीतरागी । निरंतर ॥२८॥
मृत्य न कहे ब्रह्मचारी । मृत्य न कहे जटाधारी । मृत्य न कहे निराहारी । योगेश्वर ॥२९॥
मृत्य न कहे यह सत । मृत्य न कहे यह महंत । मृत्य न कहे यह गुप्त । होता है ॥३०॥
मृत्य न कहे स्वाधीन । मृत्य न कहे पराधीन । समस्त जीवों को प्राशन । मृत्य ही करे ॥३१॥
किसी ने पकड़ा मृत्य पथ । कोई चला आधा पथ । कोई गये अंत तक । वृद्धावस्था में ॥३२॥
मृत्य न कहे बाल तारुण्य । मृत्य न कहे सुलक्षण । मृत्य न कहे विचक्षण । बहुत बोलने वाला ॥३३॥
मृत्य न कहे यह आधार । मृत्य न कहे उदार । मृत्य न कहे यह सुंदर । चतुरांग जानता ॥३४॥
मृत्य न कहे पुण्य पुरुष । मृत्य न कहे हरिदास । मृत्य न कहे विशेष । सुकृति नर ॥३५॥
अस्तु अब रहने दो यह कथन । मृत्य से छूटा कौन । आगे पीछे विश्व को जान । मृत्युपंथ है ॥३६॥
चारही खानी चारही वाणी । चौरासी लक्ष जीवयोनि । जन्म लिये जितने प्राणी । पाते मृत्य ॥३७॥
मृत्यु भय से भागता । फिर भी मृत्य न छोडे सर्वथा । मृत्यु न टल सकता । किसी भी प्रकार ॥३८॥
मृत्य न कहे यह स्वदेशी । मृत्य न कहे यह विदेशी । मृत्य न कहे यह उपवासी । निरंतर ॥३९॥
मृत्य न कहे महत्तर । मृत्य न कहे हरिहर । मृत्य न कहे अवतार । भगवान के ॥४०॥
कुपित न हों श्रोतां । यह मृत्यलोक सबको है पता । आया प्राणी निश्चित जाता । मृत्युपथ पर ॥४१॥
यहां न घरे किंत । मृत्यलोक विख्यात । प्रकट जानते समस्त । छोटे बडे ॥४२॥
तथापि अगर मानते संदेह । फिर भी रहेगा मृत्युलोक ही यह । इस कारण नष्ट होगा यहां । जन्मा हुआ प्राणी ॥४३॥
जीव ने जानकर ये । इसका सार्थक ही करें । जनों में मरकर रहे । कीर्तिरूप में ॥४४॥
अन्यथा प्राणी छोटे बडे । मृत्य पाते निर्धार से । जो बोला विपरीत इसके । मानें ही नहीं ॥४५॥
गये बहुत वैभव के । गये बहुत आयु के । गये अगाध महिमा के । मृत्यपथ पर ॥४६॥
गये बहुत पराक्रमी । गये बहुत कपटकर्मी । गये बहुत संग्रामी । संग्रामशूर ॥४७॥
गये बहुत बलों के । गये बहुत कालों के । गये बहुत कुलों के । कुलवंत राजा ॥४८॥
गये बहुतों के पालक । गये बुद्धि के चालक । गये युक्ति के तार्किक । तर्कवादी ॥४९॥
गये विद्या के सागर । गये बल के गिरिवर । गये धन के कुबेर । मृत्यपंथ पर ॥५०॥
गये बहुत पुरुषार्थों के । गये बहुत विक्रमों के । गये बहुत प्रदर्शनों के । कार्यकर्ता ॥५१॥
गये बहुत शस्त्रधारी । गये बहुत परोपकारी । गये बहुत नाना प्रकारी । धर्मरक्षक ॥५२॥
गये बहुत प्रताप के । गये बहुत सत्कीर्ति के । गये बहुत नीति के । नीतिवान राजा ॥५३॥
गये बहुत मतवादी । गये बहुत कार्यवादी । गये बहुत विवादी । अनेक प्रकार के ॥५४॥
गये समूह पंडितों के । गये संघर्षक शब्दों के गये विवादी नाना मतों के । भयानक ॥५५॥
गये तपस्वियों के भार । गये संन्यासी अपार । गये विचारकर्ता सार । मृत्यपथ पर ॥५६॥
गये बहुत संसारी । गये बहुत वेषधारी । गये बहुत नानापरी । छंद करके ॥५७॥
गये ब्राह्मणसमुदाय । गये बहुत आचार्य । गये बहुत कहें क्या । कितने सारे ॥५८॥
अस्तु ऐसे सकल ही गये । परंतु एक ही रहे । जो स्वरूपाकार हुये । आत्मज्ञानी ॥५९॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मृत्यनिरुपणनाम समास नववा ॥९॥
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Last Updated : November 30, 2023
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