गुणरूपनाम - ॥ समास पहला - आशकानाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
निराकार याने क्या । निराधार याने क्या । निर्विकल्प याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥१॥
निराकार याने आकार नहीं । निराधार याने आधार नहीं । निर्विकल्प याने कल्पना नहीं । परब्रह्म के लिये ॥२॥
निरामय याने क्या । निराभास याने क्या । निरावयव याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥३॥
निरामय याने जलमय नहीं । निराभास याने भास ही नहीं । निरावयव याने अवयव नहीं । परब्रह्म को ॥४॥
निःप्रपंच याने क्या । निःकलंक याने क्या । निरूपाधि याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥५॥
निःप्रपंच याने प्रपंच नहीं । निःकलंक याने कलंक नहीं । निरूपाधि याने उपाधि नहीं । परब्रह्म को ॥६॥
निरूपम्य याने क्या । निरालंब याने क्या । निरापेक्षा याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥७॥
निरूपम्य याने उपमा नहीं । निरालंब याने अवलंबन नहीं । निरापेक्षा याने अपेक्षा नहीं । परब्रह्म को ॥८॥
निरंजन याने क्या । निरंतर याने क्या । निर्गुण याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥९॥
निरंजन याने अंजन ही नहीं । निरंतर याने अंतर नहीं । निर्गुण याने गुण ही नहीं । परब्रह्म को ॥१०॥
निःसंग याने क्या । निर्मल याने क्या । निश्चल याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥११॥
निःसंग याने संग ही नहीं । निर्मल याने मल ही नहीं । निश्चल याने चलन ही नहीं । परब्रह्म को ॥१२॥
निःशब्द याने क्या । निर्दोष याने क्या । निवृत्ति याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥१३॥
निःशब्द याने शब्द ही नहीं । निर्दोष याने दोष ही नहीं। निवृत्ति याने वृत्ति ही नहीं । परब्रह्म को ॥१४॥
निःकाम याने क्या । निर्लेप याने क्या । निःकर्म याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥१५॥
निःकाम याने काम ही नहीं । निर्लेप याने लेप ही नहीं । निःकर्म याने कर्म ही नहीं । परब्रह्म को ॥१६॥
अनाम्य याने क्या । अजन्मा याने क्या । अप्रत्यक्ष याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥१७॥
अनाम्य याने नाम ही नहीं । अजन्मा याने जन्म ही नहीं । अप्रत्यक्ष याने प्रत्यक्ष नहीं । परब्रह्म वह ॥१८॥
अगणित याने क्या । अकर्तव्य याने क्या । अक्षय याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥१९॥
अगणित याने गणित नहीं । अकर्तव्य याने कर्तव्यता नहीं । अक्षय याने क्षय ही नहीं । परब्रह्म को ॥२०॥
अरूप याने क्या । अलक्ष्य याने क्या । अनंत याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥२१॥
अरूप याने रूप ही नहीं । अलक्ष्य याने लक्ष्यता नहीं । अनंत याने अंत ही नहीं। परब्रह्म को ॥२२॥
अपार याने क्या । अढल याने क्या । अतर्क्स याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥२३॥
अपार याने पार ही नहीं । अढल याने ढलता ही नहीं । अतर्क्स याने न होता तर्क में भी । परब्रह्म वह ॥२४॥
अद्वैत याने क्या । अदृश्य याने क्या । अच्युत याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥२५॥
अद्वैत याने द्वैत ही नहीं । अदृश्य याने दृश्य ही नहीं । अच्युत याने च्युत ना हो पद से कभी । परब्रह्म वह ॥२६॥
अछेद याने क्या । अदाह्य याने क्या । अक्लेद याने क्या । मुझे निरूपित करें ॥२७॥
अछेद याने छेदा न जायें । अदाह्य याने जले ना । अक्लेद याने भीगे भिगे ना । परब्रह्म वह ॥२८॥
परब्रह्म याने सबसे परे । उसे देखो तो स्वयं ही वे। यह समझे अनुभव मत से । सद्गुरू करने पर ॥२९॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आशंकानाम समास पहला ॥१॥

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Last Updated : December 04, 2023

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