गुणरूपनाम - ॥ समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ॥
श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
श्रोतां ने किया अनुमान । ऐसा कैसा ब्रह्मज्ञान । रहकर भी न रहना । यह कैसे होगा ॥१॥
सभी कर के अकर्ता । सभी भोग कर अभोक्ता । सभी में अलिप्तता । आयेगी कैसे ॥२॥
तथापि आप कहते । योगी भोगकर अभोक्ता है । स्वर्ग नर्क भी अब कहें । इसी तरह ॥३॥
जन्म मृत्यु भोगा ही भोगो । परंतु वह भोगकर अभोक्ता योगी । यातना भी उसके लिये । इसी तरह ॥४॥
पिटकर भी नहीं पीटा गया । रोकर भी नहीं रोया । कराहकर भी नहीं कराहा । योगेश्वर ॥५॥
जन्म न होकर भी जन्मा । पतित न होकर भी हुआ । यातना न होकर भी पाया । नाना प्रकार से ॥६॥
ऐसा श्रोताओं का अनुमान । श्रोतां चलते टेढ़ी राह । अब इसका समाधान । करना चाहिये ॥७॥
वक्ता कहे हों सावधान । तुमने किया ठीक कथन । मगर तुम्हारे ही अनुभव के कारण । तुम्हें हुआ ॥८॥
जिसका अनुभव जैसा । वह बोलता वैसा । साहस करे जो बिना संपदा । वह निरर्थक ॥९॥
नहीं ज्ञान की संपदा । अज्ञान दरिद्र से आपदा । भोगा हुआ भोगता सदा । शब्दज्ञान से ॥१०॥
योगी को पहचाने योगेश्वर । ज्ञानी को पहचाने ज्ञानेश्वर । महाचतुर ही चतुर । को पहचानें ॥११॥
अनुभवी को अनुभवी ही जानता । अलिप्त अलिप्तता से शांत होता । विदेही का देहभाव गलता । देखते ही विदेही ॥१२॥
बद्ध सरीखा सिद्ध । और सिद्ध सरीखा बद्ध । एक माने वह अबद्ध । कहना ही न पडे ॥१३॥
झडपा हुआ देहधारी । और देहधारक पंचाक्षरी । परंतु दोनों की बराबरी । कैसे करें ॥१४॥
वैसे ही अज्ञान पतित । और ज्ञानी जीवन्मुक्त । दोनो समान माने उसे युक्त । कैसे कहें ॥१५॥
अब रहने दो ये दृष्टांत । प्रचित के लिये कहूं कुछ हेत । यहां श्रोताओं सचेत । क्षण एक हों ॥१६॥
जो ज्ञान से गुप्त हुआ । जो विवेक में लुप्त हुआ । वह अनन्यता से रहा । नहीं कुछ भी ॥१७॥
उसे पायें तो किस तरह । खोजो तो बन जायें उसकी तरह । वही हो जाने पर । न रहा कहने को कुछ भी ॥१८॥
देह में देखें तो दिखेना । तत्त्वों में खोजें तो भासेना । ब्रह्म से अलग कर पाये ना । करें कुछ भी ॥१९॥
दिखता है देहधारी । मगर भीतर कुछ भी नहीं । उसे देखें तो ऊपर उपरी । समझेगा कैसे ॥२०॥
समझने हेतु खोजें अभ्यंतर । तब वह नित्यनिरंतर । जिसे ढूंढते ही विकार । निर्विकार होते ॥२१॥
वह परमात्मा ही केवल । उसे नहीं मायामल । अखंड हेतु का स्पर्श मलिन । हुआ ही नहीं ॥२२॥
ऐसा जो कि योगीराज । वह आत्मा सहज ही सहज । पूर्णब्रह्म वेदबीज । देहाकार से ना समझे ॥२३॥
देह से देह ही दिखे । मगर अंतरंग में अलग ही होये । उसे खोजें तो ना रहे । जन्ममरण ॥२४॥
जन्ममरण होते है जिसे । वह यह नहीं ही स्वभाव से । जो है ही नहीं उसे । लायें कैसे कहां से ॥२५॥
निर्गुण का जन्म कल्पित किया । अथवा निर्गुण को उड़ा दिया । तो भी उड़ाया और जन्म लिया । हमने स्वयं ॥२६॥
मध्यान्ह में थूके सूर्य पर । वह थूक पडे अपने ही मुख पर । दूसरे का बुरा सोचा भीतर । होता वैसा ही अपना ॥२७॥
समर्थ पुरुष की महिमान । जानने पर होता समाधान । किंतु भौंकने लगा श्वान । तो भी वह श्वान ही है ॥२८॥
ज्ञानी वह सत्यस्वरूप । अज्ञानी देखे मनुष्यरूप । भाव के समान फलद्रूप । देव वैसा ॥२९॥
देव निराकार निर्गुण । लोग मानतें पाषाण । पाषाण फूटता निर्गुण । फूटेगा कैसे ॥३०॥
देव सदोदित व्याप्त हुआ । लोगों ने बनाया बहुविध । मगर वह हुआ बहुविध । यह तो होये ना ॥३१॥
वैसे साधु आत्मज्ञानी । बोध से पूर्ण समाधानी । विवेक से आत्मनिदानी । आत्मरूपी ॥३२॥
जलने पर काष्ठ का आकार । अग्नि दिखे काष्ठाकार । मगर वह काष्ठ है यह विचार । कहें ही नहीं ॥३३॥
कर्पूर है वह जलता दिखे । वैसे ज्ञानी का देह भासे । उसे जन्माया जाता कैसे । कर्दली उदर में ॥३४॥
भूजा बीज उगे ना । जला वस्त्र खुले ना । प्रवाह अलग करने से होये ना । गंगा से ॥३५॥
प्रवाह दिखे पूर्व गंगा के । गंगा एकदेशी रहे । साधु कुछ भी न भासे । और आत्मा सर्वगत ॥३६॥
स्वर्ण नहीं लोहखंड । साधु के लिये जन्म पाखंड । अज्ञानी प्राणी जड़मूढ । उसे यह समझे ही ना ॥३७॥
अंधे को कुछ भी नहीं दिखे । फिर सारे लोग अंधे कैसे । सन्निपात में बड़बड़ाये । सन्निपाती ॥३८॥
जो स्वप्न में डर गया । वह स्वप्नभय से चिल्लाया । वह भय जगा हुआ । को लगे कैसा ॥३९॥
जड़ सर्पाकार देख ली । एक डरा गया एक ने पहचान ली । दोनों की अवस्था मान ली । समान कैसे ॥४०॥
हाथ में धरें तो डसेना । यह किसी को भी भासेना । तो भी उसकी कल्पना । उसे ही बाधे ॥४१॥
बिच्छू सर्प ने डसा जिसे । वही व्यथित हुआ उससे । लोग हुये इस कारण से । व्याकुल कैसे ॥४२॥
अब जाकर टूटा अनुमान । ज्ञानियों को समझे ज्ञान । अज्ञानी को जन्ममरण । चूके ही नहीं ॥४३॥
एक को जानने के लिये । लोगो ने प्रयास किये । ना समझने से दुःख पाये । जन्ममरण के ॥४४॥
वही कथानुसंधान । आगे किया परिछिन्न । सावधान सावधान। कहे वक्ता ॥४५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे निःसंगदेहनिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥
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Last Updated : December 04, 2023
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