मीरबाई भजन - भाग ४

मीराबाई कृष्ण भक्तीमे लीन होनेवाली भारतकी प्रमुख कवयित्री हैं।

Mirabai was a female Hindu poetess whose compositions are popular throughout India.


७६.

पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे ॥ध्रु०॥

कलम धरत मेरा कर कांपत । नयनमों रड छायो ॥१॥

हमारी बीपत उद्धव देखी जात है । हरीसो कहूं वो जानत है ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल रहो छाये ॥३॥

७७.

कीत गयो जादु करके नो पीया ॥ध्रु०॥

नंदनंदन पीया कपट जो कीनो । नीकल गयो छल करके ॥१॥

मोर मुगुट पितांबर शोभे । कबु ना मीले आंग भरके ॥२॥

मीरा दासी शरण जो आई । चरणकमल चित्त धरके ॥३॥

७८.

हरी तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥

प्रीत लगाई परम दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥१॥

गोकुल छांड मथुरेकु जाये । वामें कोन बराई ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । तुमकू नंद दुवाई ॥३॥

७९.

ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी । जैसी राम हमारी ॥ध्रु०॥

मोर मुगुट श्रीछत्र बिराजे । कुंडलकी छब न्यारी ॥१॥

हारी हारी पगया केशरी जामा । उपर फुल हाजारी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥

८०.

तैं मेरी गेंद चुराई । ग्वालनारे ॥ध्रु०॥

आबहि आणपेरे तोरे आंगणा । आंगया बीच छुपाई ॥१॥

ग्वाल बाल सब मिलकर जाये । जगरथ झोंका आई ॥२॥

साच कन्हैया झूठ मत बोले । घट रही चतुराई ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलजाई ॥४॥

८१.

कोई देखोरे मैया । शामसुंदर मुरलीवाला ॥ध्रु०॥

जमुनाके तीर धेनु चरावत । दधी घट चोर चुरैया ॥१॥

ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों । हमकू देत झुकैया ॥२॥

ईत गोकुल उत मथुरा नगरी । पकरत मोरी भय्या ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बजैया ॥४॥

८२.

जल कैशी भरुं जमुना भयेरी ॥ध्रु०॥

खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है । बैठ भरुं तो भीजे चुनडी ॥१॥

मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे । छुम छुम बाजत मुरली ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चणरकमलकी मैं जेरी ॥३॥

८३.

भज मन शंकर भोलानाथ भज मन ॥ध्रु०॥

अंग विभूत सबही शोभा । ऊपर फुलनकी बास ॥१॥

एकहि लोटाभर जल चावल । चाहत ऊपर बेलकी पात ॥२॥

मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । पूजा करले समजे आपहि आप ॥३॥

८४.

मदन गोपाल नंदजीको लाल प्रभुजी ॥ध्रु०॥

बालपनकी प्रीत बिखायो । नवनीत धरियो नंदलाल ॥१॥

कुब्जा हीनकी तुम पत राखो । हम ब्रीज नारी भई बेहाल ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हम जपे यही जपमाल ॥३॥

८५.

मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम ॥ध्रु०॥

बडे बडे भूपती सुलतान उनके । डेरे भय मैदान ॥१॥

लंकाके रावण कालने खाया । तूं क्या है कंगाल ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर लाल । भज गोपाल त्यज जंजाल ॥३॥

८६.

मन केरो जेवो चंद्र छे । रास रमे नंद लालो रे ॥ध्रु०॥

नटवर बेश धर्यो नंद लाले । सौ ओघाने चालोरे ॥१॥

गानतान वाजिंत्र बाजे । नाचे जशोदानो काळोरे ॥२॥

सोळा सहस्त्र अष्ट पटराणी । बच्चे रह्यो मारो बहालोरे ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । रणछोडे दिसे छोगळोरे ॥४॥

८७.

मथुराके कान मोही मोही मोही ॥ध्रु०॥

खांदे कामरीया हातमों लकरीया । सीर पाग लाल लोई लोई ॥१॥

पाउपें पैंजण आण वट बीचवे । चाल चलत ताता थै थै थै ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हृदय बसत प्रभू तुही तुही तुही तुही ॥३॥

८८.

मोरी लागी लटक गुरु चरणकी ॥ध्रु०॥

चरन बिना मुज कछु नही भावे । झूंठ माया सब सपनकी ॥१॥

भवसागर सब सुख गयी है । फिकीर नही मुज तरुणोनकी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । उलट भयी मोरे नयननकी ॥३॥

८९.

राधे तोरे नयनमों जदुबीर ॥ध्रु०॥

आदी आदी रातमों बाल चमके । झीरमीर बरसत नीर ॥१॥

मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडल झलकत हीर ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल शीर ॥३॥

९०.

राधे देवो बांसरी मोरी । मुरली हमारी ॥ध्रु०॥

पान पात सब ब्रिंदावन धुंडयो । कुंजगलीनमों सब हेरी ॥१॥

बांसरी बिन मोहे कल न परहे । पया लागत तोरी ॥२॥

काहेसुं गावूं काहेंसुं बजाऊं । काहेसुं लाऊं गवा घहेरी ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकी मैं तो चित्त चोरी ॥४॥

९१.

रंगेलो राणो कई करसो मारो राज्य ।

हूं तो छांडी छांडी कुलनी लाज ॥ध्रु०॥

पग बांधीनें घुंगरा हातमों छीनी सतार ।

आपने ठाकूरजीके मंदिर नाचुं वो हरी जागे दिनानाथ

॥ रंगेलो० ॥१॥

बिखको प्यालो राणाजीने भेजो कैं दिजे मिराबाई हात ।

कर चरणामृत पीगई मीराबाई ठाकुरको प्रसाद ॥ रंगेलो० ॥२॥

सापरो पेटारो राणाजीनें भेजों दासाजीने हात ।

सापरो उपाडीनें गलामों डारयो हो गयो चंदन हार ।

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तूं मारो भरतार ॥ रंगेलो० ॥३॥

९२.

बारी होके जाने बंदना । पठीयो कछु नारी है ॥ध्रु०॥

बुटीसे बुडी भई साची तो भारी हो बिचारी रही ।

तुम घर जावो बदना मेरो प्यारा भारी हो ॥१॥

नारी होके द्वारकामें बाजे बासुरी । बासु मुस वारी हो ।

वोही खूब लाला वणीर जोए । मारी सारी हो ॥२॥

पान जैसी पिरी भई पर गोपवर रही ।

मेरा गिरिधर पिया प्रभुजी मीरा वारी डारी हो ॥३॥

९३.

लेता लेता श्रीरामजीनुं नाम । लोकडिवा तो लाजे मरे छे ॥ध्रु०॥

हरी मंदिर जाता पाव लिया दुखे । फरा आवे सारूं गाम ॥१॥

झगडो थाय त्यां दोडीनें जाया । मुक्तीनें बरना काम ॥२॥

भांड भवैया गुणका नृत्य करता । बेशी रहे चारे ठाम ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर गुण गाऊं । चरणकमल चित्त काम ॥४॥

९४.

साधुकी संगत पाईवो । ज्याकी पुरन कमाई वो ॥ध्रु०॥

पिया नामदेव और कबीरा । चौथी मिराबाई वो ॥१॥

केवल कुवा नामक दासा । सेना जातका नाई वो ॥२॥

धनाभगत रोहिदास चह्यारा । सजना जात कसाईवो ॥३॥

त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया । कर्मा खिचडी खाईवो ॥४॥

भिल्लणीके बोर सुदामाके चावल । रुची रुची भोग लगाईरे ॥५॥

रंका बंका सूरदास भाईं । बिदुरकी भाजी खाईरे ॥६॥

ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण । उनकी क्या भलाईवो ॥७॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । ज्योतीमें ज्योती लगाईवो ॥८॥

९५.

हैडा मामूनें हरीवर पालारे । जाऊछूं जमनी तेमनीरे ।

मुजे मारी कट्यारी । प्रेमनी प्रेमनीरे ॥ध्रु०॥

जल भरवासु गरवा गमाया । माथा घागरडी हमनारे ॥१॥

बाजुबंद गोंडा बरखा बिराजे । हाथे बिटी छे हेमनीरे ॥२॥

सांकडी शेरीमां वालोजी मी ज्याथी । खबर पुछुछुं खेमनीरे ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्ति करुछुं नित नेमनीरे ॥४॥

९६.

हारे मारे शाम काले मळजो । पेलां कह्या बचन पाळजो ॥ध्रु०॥

जळ जमुना जळ पाणी जातां । मार्ग बच्चे वेहेला वळजो ॥१॥

बाळपननी वाहिली दासी । प्रीत करी परवर जो ॥२॥

वाटे आळ न करिये वाहला । वचन कह्युं तें सुनजो ॥३॥

घणोज स्नेह थयाथी गिरिधर । लोललज्जाथी बळजो ॥४॥

मीरा कहे गिरिधर नागर । प्रीत करी ते पाळजो ॥५॥

९७.

हूं जाऊं रे जमुना पाणीडा । एक पंथ दो काज सरे ॥ध्रु०॥

जळ भरवुं बीजुं हरीने मळवुं । दुनियां मोटी दंभेरे ॥१॥

अजाणपणमां कांइरे नव सुझ्यूं । जशोदाजी आगळ राड करे ॥२॥

मोरली बजाडे बालो मोह उपजावे । तल वल मारो जीव फफडे ॥३॥

वृंदावनमें मारगे जातां । जन्म जन्मनी प्रीत मळे ॥४॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भवसागरनो फेरो टळे ॥५॥

९८.

हारे जावो जावोरे जीवन जुठडां । हारे बात करतां हमे दीठडां ॥ध्रु०॥

सौ देखतां वालो आळ करेछे । मारे मन छो मीठडारे ॥१॥

वृंदावननी कुंजगलीनमें । कुब्जा संगें दीठ डारे ॥२॥

चंदन पुष्पने माथे पटको । बली माथे घाल्याता पछिडारे ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । मारे मनछो नीठडारे ॥४॥

९९.

कृष्णमंदिरमों मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी ।

पावमों घुंगरू झुमझुम वाजे । तो ताल राखो घुंगटकी ॥१॥

नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी ॥ध्रु०॥

ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको ।

सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टबकी ॥२॥

बीख कटोरा राजाजीने भेजो तो संटसंग मीरा हटकी ।

ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृतकी ॥३॥

घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी ।

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जैसी डेरी तटवरकी ॥४॥

१००.

कौन भरे जल जमुना । सखीको०॥ध्रु०॥

बन्सी बजावे मोहे लीनी । हरीसंग चली मन मोहना ॥१॥

शाम हटेले बडे कवटाले । हर लाई सब ग्वालना ॥२॥

कहे मीरा तुम रूप निहारो । तीन लोक प्रतिपालना ॥३॥

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Last Updated : December 23, 2007

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