७६.
पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे ॥ध्रु०॥
कलम धरत मेरा कर कांपत । नयनमों रड छायो ॥१॥
हमारी बीपत उद्धव देखी जात है । हरीसो कहूं वो जानत है ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल रहो छाये ॥३॥
७७.
कीत गयो जादु करके नो पीया ॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो । नीकल गयो छल करके ॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कबु ना मीले आंग भरके ॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई । चरणकमल चित्त धरके ॥३॥
७८.
हरी तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई परम दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥१॥
गोकुल छांड मथुरेकु जाये । वामें कोन बराई ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । तुमकू नंद दुवाई ॥३॥
७९.
ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी । जैसी राम हमारी ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट श्रीछत्र बिराजे । कुंडलकी छब न्यारी ॥१॥
हारी हारी पगया केशरी जामा । उपर फुल हाजारी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥
८०.
तैं मेरी गेंद चुराई । ग्वालनारे ॥ध्रु०॥
आबहि आणपेरे तोरे आंगणा । आंगया बीच छुपाई ॥१॥
ग्वाल बाल सब मिलकर जाये । जगरथ झोंका आई ॥२॥
साच कन्हैया झूठ मत बोले । घट रही चतुराई ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलजाई ॥४॥
८१.
कोई देखोरे मैया । शामसुंदर मुरलीवाला ॥ध्रु०॥
जमुनाके तीर धेनु चरावत । दधी घट चोर चुरैया ॥१॥
ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों । हमकू देत झुकैया ॥२॥
ईत गोकुल उत मथुरा नगरी । पकरत मोरी भय्या ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बजैया ॥४॥
८२.
जल कैशी भरुं जमुना भयेरी ॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है । बैठ भरुं तो भीजे चुनडी ॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे । छुम छुम बाजत मुरली ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चणरकमलकी मैं जेरी ॥३॥
८३.
भज मन शंकर भोलानाथ भज मन ॥ध्रु०॥
अंग विभूत सबही शोभा । ऊपर फुलनकी बास ॥१॥
एकहि लोटाभर जल चावल । चाहत ऊपर बेलकी पात ॥२॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । पूजा करले समजे आपहि आप ॥३॥
८४.
मदन गोपाल नंदजीको लाल प्रभुजी ॥ध्रु०॥
बालपनकी प्रीत बिखायो । नवनीत धरियो नंदलाल ॥१॥
कुब्जा हीनकी तुम पत राखो । हम ब्रीज नारी भई बेहाल ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हम जपे यही जपमाल ॥३॥
८५.
मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम ॥ध्रु०॥
बडे बडे भूपती सुलतान उनके । डेरे भय मैदान ॥१॥
लंकाके रावण कालने खाया । तूं क्या है कंगाल ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर लाल । भज गोपाल त्यज जंजाल ॥३॥
८६.
मन केरो जेवो चंद्र छे । रास रमे नंद लालो रे ॥ध्रु०॥
नटवर बेश धर्यो नंद लाले । सौ ओघाने चालोरे ॥१॥
गानतान वाजिंत्र बाजे । नाचे जशोदानो काळोरे ॥२॥
सोळा सहस्त्र अष्ट पटराणी । बच्चे रह्यो मारो बहालोरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । रणछोडे दिसे छोगळोरे ॥४॥
८७.
मथुराके कान मोही मोही मोही ॥ध्रु०॥
खांदे कामरीया हातमों लकरीया । सीर पाग लाल लोई लोई ॥१॥
पाउपें पैंजण आण वट बीचवे । चाल चलत ताता थै थै थै ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हृदय बसत प्रभू तुही तुही तुही तुही ॥३॥
८८.
मोरी लागी लटक गुरु चरणकी ॥ध्रु०॥
चरन बिना मुज कछु नही भावे । झूंठ माया सब सपनकी ॥१॥
भवसागर सब सुख गयी है । फिकीर नही मुज तरुणोनकी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । उलट भयी मोरे नयननकी ॥३॥
८९.
राधे तोरे नयनमों जदुबीर ॥ध्रु०॥
आदी आदी रातमों बाल चमके । झीरमीर बरसत नीर ॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडल झलकत हीर ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल शीर ॥३॥
९०.
राधे देवो बांसरी मोरी । मुरली हमारी ॥ध्रु०॥
पान पात सब ब्रिंदावन धुंडयो । कुंजगलीनमों सब हेरी ॥१॥
बांसरी बिन मोहे कल न परहे । पया लागत तोरी ॥२॥
काहेसुं गावूं काहेंसुं बजाऊं । काहेसुं लाऊं गवा घहेरी ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकी मैं तो चित्त चोरी ॥४॥
९१.
रंगेलो राणो कई करसो मारो राज्य ।
हूं तो छांडी छांडी कुलनी लाज ॥ध्रु०॥
पग बांधीनें घुंगरा हातमों छीनी सतार ।
आपने ठाकूरजीके मंदिर नाचुं वो हरी जागे दिनानाथ
॥ रंगेलो० ॥१॥
बिखको प्यालो राणाजीने भेजो कैं दिजे मिराबाई हात ।
कर चरणामृत पीगई मीराबाई ठाकुरको प्रसाद ॥ रंगेलो० ॥२॥
सापरो पेटारो राणाजीनें भेजों दासाजीने हात ।
सापरो उपाडीनें गलामों डारयो हो गयो चंदन हार ।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तूं मारो भरतार ॥ रंगेलो० ॥३॥
९२.
बारी होके जाने बंदना । पठीयो कछु नारी है ॥ध्रु०॥
बुटीसे बुडी भई साची तो भारी हो बिचारी रही ।
तुम घर जावो बदना मेरो प्यारा भारी हो ॥१॥
नारी होके द्वारकामें बाजे बासुरी । बासु मुस वारी हो ।
वोही खूब लाला वणीर जोए । मारी सारी हो ॥२॥
पान जैसी पिरी भई पर गोपवर रही ।
मेरा गिरिधर पिया प्रभुजी मीरा वारी डारी हो ॥३॥
९३.
लेता लेता श्रीरामजीनुं नाम । लोकडिवा तो लाजे मरे छे ॥ध्रु०॥
हरी मंदिर जाता पाव लिया दुखे । फरा आवे सारूं गाम ॥१॥
झगडो थाय त्यां दोडीनें जाया । मुक्तीनें बरना काम ॥२॥
भांड भवैया गुणका नृत्य करता । बेशी रहे चारे ठाम ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर गुण गाऊं । चरणकमल चित्त काम ॥४॥
९४.
साधुकी संगत पाईवो । ज्याकी पुरन कमाई वो ॥ध्रु०॥
पिया नामदेव और कबीरा । चौथी मिराबाई वो ॥१॥
केवल कुवा नामक दासा । सेना जातका नाई वो ॥२॥
धनाभगत रोहिदास चह्यारा । सजना जात कसाईवो ॥३॥
त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया । कर्मा खिचडी खाईवो ॥४॥
भिल्लणीके बोर सुदामाके चावल । रुची रुची भोग लगाईरे ॥५॥
रंका बंका सूरदास भाईं । बिदुरकी भाजी खाईरे ॥६॥
ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण । उनकी क्या भलाईवो ॥७॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । ज्योतीमें ज्योती लगाईवो ॥८॥
९५.
हैडा मामूनें हरीवर पालारे । जाऊछूं जमनी तेमनीरे ।
मुजे मारी कट्यारी । प्रेमनी प्रेमनीरे ॥ध्रु०॥
जल भरवासु गरवा गमाया । माथा घागरडी हमनारे ॥१॥
बाजुबंद गोंडा बरखा बिराजे । हाथे बिटी छे हेमनीरे ॥२॥
सांकडी शेरीमां वालोजी मी ज्याथी । खबर पुछुछुं खेमनीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्ति करुछुं नित नेमनीरे ॥४॥
९६.
हारे मारे शाम काले मळजो । पेलां कह्या बचन पाळजो ॥ध्रु०॥
जळ जमुना जळ पाणी जातां । मार्ग बच्चे वेहेला वळजो ॥१॥
बाळपननी वाहिली दासी । प्रीत करी परवर जो ॥२॥
वाटे आळ न करिये वाहला । वचन कह्युं तें सुनजो ॥३॥
घणोज स्नेह थयाथी गिरिधर । लोललज्जाथी बळजो ॥४॥
मीरा कहे गिरिधर नागर । प्रीत करी ते पाळजो ॥५॥
९७.
हूं जाऊं रे जमुना पाणीडा । एक पंथ दो काज सरे ॥ध्रु०॥
जळ भरवुं बीजुं हरीने मळवुं । दुनियां मोटी दंभेरे ॥१॥
अजाणपणमां कांइरे नव सुझ्यूं । जशोदाजी आगळ राड करे ॥२॥
मोरली बजाडे बालो मोह उपजावे । तल वल मारो जीव फफडे ॥३॥
वृंदावनमें मारगे जातां । जन्म जन्मनी प्रीत मळे ॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भवसागरनो फेरो टळे ॥५॥
९८.
हारे जावो जावोरे जीवन जुठडां । हारे बात करतां हमे दीठडां ॥ध्रु०॥
सौ देखतां वालो आळ करेछे । मारे मन छो मीठडारे ॥१॥
वृंदावननी कुंजगलीनमें । कुब्जा संगें दीठ डारे ॥२॥
चंदन पुष्पने माथे पटको । बली माथे घाल्याता पछिडारे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । मारे मनछो नीठडारे ॥४॥
९९.
कृष्णमंदिरमों मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी ।
पावमों घुंगरू झुमझुम वाजे । तो ताल राखो घुंगटकी ॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी ॥ध्रु०॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको ।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टबकी ॥२॥
बीख कटोरा राजाजीने भेजो तो संटसंग मीरा हटकी ।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृतकी ॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी ।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जैसी डेरी तटवरकी ॥४॥
१००.
कौन भरे जल जमुना । सखीको०॥ध्रु०॥
बन्सी बजावे मोहे लीनी । हरीसंग चली मन मोहना ॥१॥
शाम हटेले बडे कवटाले । हर लाई सब ग्वालना ॥२॥
कहे मीरा तुम रूप निहारो । तीन लोक प्रतिपालना ॥३॥