१०१.
कैसी जादू डारी । अब तूने कैशी जादु ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडलकी छबि न्यारी ॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों । लुटी गवालन सारी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहारी ॥३॥
१०२.
कान्हा कानरीया पेहरीरे ॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । खेल खेलकी गत न्यारीरे ॥१॥
खेल खेलते अकेले रहता । भक्तनकी भीड भारीरे ॥२॥
बीखको प्यालो पीयो हमने । तुह्मारो बीख लहरीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल बलिहारीरे ॥४॥
१०३.
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो । राणाजी मारो नही ॥ध्रु०॥
तुम नारी अहल्या तारी । कुंटण कीर उद्धारो ॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो । नरसिंगको काज सुदारो ॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको । तिनोपार तनमन वारो ॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी । जीवन प्राण हमारो ॥४॥
१०४.
गोपाल राधे कृष्ण गोविंद ॥ गोविंद ॥ध्रु०॥
बाजत झांजरी और मृंदग । और बाजे करताल ॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गलां बैजयंती माल ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके प्रतिपाल ॥३॥
१०५.
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे ॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर । पागट जटा शीरीरे ॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें । भस्म दीगांबरधारीरे ॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर । विष हें प्राशन करीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर । चरण कमलकी प्यारीरे ॥४॥
१०६.
चालो ढाकोरमा जइ वसिये । मनेले हे लगाडी रंग रसिये ॥ध्रु०॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे । अने दर्शन करवा जईये ॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो । काने कुंडल सोईये ॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो । मोतन माळाभी मोहिये ॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो । मुखडुं सुंदर सोईये ॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे । मन मोह्यु मारूं मुरलिये ॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । अंगो अंग जई मळीयेरे ॥६॥
१०७.
चालो सखी मारो देखाडूं । बृंदावनमां फरतोरे ॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती । नव नव शृंगार धरतोरे ॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे । शिरपर मुगुट धरतोरे ॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे । मन माराने हरतोरे ॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु । जीव राग छोडमां गमतोरे ॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । सामळियो कुब्जाने वरतोरे ॥५॥
१०८.
आयी देखत मनमोहनकू । मोरे मनमों छबी छाय रही ॥ध्रु०॥
मुख परका आचला दूर कियो । तब ज्योतमों ज्योत समाय रही ॥२॥
सोच करे अब होत कंहा है । प्रेमके फुंदमों आय रही ॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर । बुंदमों बुंद समाय रही ॥४॥
१०९.
हृदय तुमकी करवायो । हूं आलबेली बेल रही कान्हा ॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । मुरली क्यौं बजावे कान्हा ॥२॥
ब्रिंदाबनमों कुंजगलनमों । गड उनकी चरन धुलाई ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । घर घर लेऊं बलाई ॥४॥
११०.
मनमोहन गिरिवरधारी ॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबरधारी । मुरली बजावे कुंजबिहारी ॥१॥
हात लियो गोवर्धन धारी । लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी ॥२॥
ग्वाल बाल सब देखन आयो । संग लिनी राधा प्यारी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । आजी आईजी हमारी फेरी ॥४॥
१११.
बालपनमों बैरागन करी गयोरे ॥ध्रु०॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया । जमुनाके पार उतारगयोरे ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत । बनसीकी टेक सुनागयोरे ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सावली सुरत दरशन दे गयोरे ॥३॥
११२.
लटपटी पेचा बांधा राज ॥ध्रु०॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली । तुमसे आठे कियो काज ॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है । बनसीनें सार्यो काज ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर । चरन कमल सिरताज ॥३॥
११३.
राजा थारे कुबजाही मन मानी । म्हांसु आ बोलना ॥ध्रु०॥
रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया ।
भुलगई सुद सारी ॥१॥
तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो । कछु नही चूक हमारी ॥२॥
मिराके प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल उरधारी ॥३॥
११४.
हमे कैशी घोर उतारो । द्रग आंजन सबही धोडावे ।
माथे तिलक बनावे पेहरो चोलावे ॥१॥
हमारो कह्यो सुनो बिष लाग्यो । उनके जाय भवन रस चाख्यो ।
उवासे हिलमिल रहना हासना बोलना ॥२॥
जमुनाके तट धेनु चरावे । बन्सीमें कछु आचरज गावे ।
मीठी राग सुनावे बोले बोलना ॥३॥
हामारी प्रीत तुम संग लागी । लोकलाज कुलकी सब त्यागी ।
मीराके प्रभु गिरिधारी बन बन डोलना ॥४॥
११५.
माई मेरो मोहनमें मन हारूं ॥ध्रु०॥
कांह करुं कीत जाऊं सजनी । प्रान पुरससु बरयो ॥१॥
हूं जल भरने जातथी सजनी । कलस माथे धरयो ॥२॥
सावरीसी कीसोर मूरत । मुरलीमें कछु टोनो करयो ॥३॥
लोकलाज बिसार डारी । तबही कारज सरयो ॥४॥
दास मीरा लाल गिरिधर । छान ये बर बरयो ॥५॥
११६.
हारि आवदे खोसरी । बुंद न भीजे मो सारी ॥ध्रु०॥
येक बरसत दुजी पवन चलत है । तिजी जमुना गहरी ॥१॥
एक जोबन दुजी दहीकी मथीनया । तिजी हरि दे छे गारी ॥२॥
ब्रज जशोदा राणी आपने लालकू । इन सुबहूमें हारी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । प्रभु चरणा परवारी ॥४॥
११७.
राम बिन निंद न आवे । बिरह सतावे प्रेमकी आच ठुरावे ॥ध्रु०॥
पियाकी जोतबिन मो दर आंधारो दीपक कदायन आवे ।
पियाजीबिना मो सेज न आलुनी जाननरे ए बिहावे ।
कबु घर आवे घर आवे ॥१॥
दादर मोर पपीया बोले कोयल सबद सुनावे ।
गुमट घटा ओल रहगई दमक चमक दुरावे । नैन भर आवें ॥२॥
काहां करूं कितना उसखेरू बदन कोई न बनवे ।
बिरह नाग मेरि काया डसी हो । लहर लहर जीव जावे जडी घस लावे ॥३॥
कहोरी सखी सहली सजनी पियाजीनें आने मिलावे ।
मीराके प्रभु कबरी मिलेगे मोहनमो मन भावे । कबहूं हस हस बतलावे ॥४॥
११८.
दरद जाने कोय हेली । मैं दरद दिवानी ॥ध्रु०॥
घायलकी गत घायल ज्याने । लागी हिये ॥१॥
सुली उपर सेजहमारी । किसबीद रहीये सोय ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । वदे सामलीया होय ॥३॥
११९.
सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू ॥ध्रु०॥
कुबजा दासी कंस रायकी । दराय कोठोडो ॥१॥
आपन जाय दुबारका छाय । कागद हूं कोठोडो ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कुबजा बडी हरी छोडो ॥३॥
१२०.
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस ॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो । एकबार दरसन दे जारे ॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे । कृपादृष्टि करी जारे ॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो । एक हाम पैन सहजीरे ।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो । ले गयो काळ कलेजारे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सबही बोल सजारे ॥४॥
१२१
अपनी गरज हो मिटी सावरे हाम देखी तुमरी प्रीत ॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत ॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत ॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत ।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित ॥३॥
१२२.
मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ ॥ध्रु०॥
कीया कीजो प्रसन्न दिजावे ।
खबर लीजो आये तुम साधनमें तुम संतनसे ।
तुम गउवनके रखवाल ॥२॥
आपन जाय दुवारकामें हामकू देई विसार ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहार ॥४॥
१२३.
हरी सखी देख्योरी नंद किशोर ॥ध्रु०॥
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल । पीतांबर झलक हरोल ॥१॥
ग्वाल बाल सब संग जुलीने । गोवर्धनकी और ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरि भये माखन चोर ॥३॥
१२४.
तुम लाल नंद सदाके कपटी ॥ध्रु०॥
सबकी नैया पार उतर गयी । हमारी नैया भवर बिच अटकी ॥१॥
नैया भीतर करत मस्करी । दे सय्यां अरदन पर पटकी ॥२॥
ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी । घगरीया जतनसे पटकी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । राधे तूं या बन बन भटकी ॥४॥
१२५.
प्रगट भयो भगवान ॥ध्रु०॥
नंदाजीके घर नौबद बाजे । टाळ मृदंग और तान ॥१॥
सबही राजे मिलन आवे । छांड दिये अभिमान ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । निशिदिनीं धरिजे ध्यान ॥३॥