मीराबाई भजन - भाग ५

मीराबाई कृष्ण भक्तीमे लीन होनेवाली भारतकी प्रमुख कवयित्री हैं।

Mirabai was a female Hindu poetess whose compositions are popular throughout India.


१०१.

कैसी जादू डारी । अब तूने कैशी जादु ॥ध्रु०॥

मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडलकी छबि न्यारी ॥१॥

वृंदाबन कुंजगलीनमों । लुटी गवालन सारी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहारी ॥३॥

१०२.

कान्हा कानरीया पेहरीरे ॥ध्रु०॥

जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । खेल खेलकी गत न्यारीरे ॥१॥

खेल खेलते अकेले रहता । भक्तनकी भीड भारीरे ॥२॥

बीखको प्यालो पीयो हमने । तुह्मारो बीख लहरीरे ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल बलिहारीरे ॥४॥

१०३.

कीसनजी नहीं कंसन घर जावो । राणाजी मारो नही ॥ध्रु०॥

तुम नारी अहल्या तारी । कुंटण कीर उद्धारो ॥१॥

कुबेरके द्वार बालद लायो । नरसिंगको काज सुदारो ॥२॥

तुम आये पति मारो दहीको । तिनोपार तनमन वारो ॥३॥

जब मीरा शरण गिरधरकी । जीवन प्राण हमारो ॥४॥

१०४.

गोपाल राधे कृष्ण गोविंद ॥ गोविंद ॥ध्रु०॥

बाजत झांजरी और मृंदग । और बाजे करताल ॥१॥

मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गलां बैजयंती माल ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके प्रतिपाल ॥३॥

१०५.

गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे ॥ध्रु०॥

स्मशानावासी भूषणें भयंकर । पागट जटा शीरीरे ॥१॥

व्याघ्रकडासन आसन जयाचें । भस्म दीगांबरधारीरे ॥२॥

त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर । विष हें प्राशन करीरे ॥३॥

मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर । चरण कमलकी प्यारीरे ॥४॥

१०६.

चालो ढाकोरमा ज‍इ वसिये । मनेले हे लगाडी रंग रसिये ॥ध्रु०॥

प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे । अने दर्शन करवा जईये ॥१॥

अटपटी पाघ केशरीयो वाघो । काने कुंडल सोईये ॥२॥

पिवळा पितांबर जर कशी जामो । मोतन माळाभी मोहिये ॥३॥

चंद्रबदन आणियाळी आंखो । मुखडुं सुंदर सोईये ॥४॥

रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे । मन मोह्यु मारूं मुरलिये ॥५॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । अंगो अंग जई मळीयेरे ॥६॥

१०७.

चालो सखी मारो देखाडूं । बृंदावनमां फरतोरे ॥ध्रु०॥

नखशीखसुधी हीरानें मोती । नव नव शृंगार धरतोरे ॥१॥

पांपण पाध कलंकी तोरे । शिरपर मुगुट धरतोरे ॥२॥

धेनु चरावे ने वेणू बजावे । मन माराने हरतोरे ॥३॥

रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु । जीव राग छोडमां गमतोरे ॥४॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । सामळियो कुब्जाने वरतोरे ॥५॥

१०८.

आयी देखत मनमोहनकू । मोरे मनमों छबी छाय रही ॥ध्रु०॥

मुख परका आचला दूर कियो । तब ज्योतमों ज्योत समाय रही ॥२॥

सोच करे अब होत कंहा है । प्रेमके फुंदमों आय रही ॥३॥

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर । बुंदमों बुंद समाय रही ॥४॥

१०९.

हृदय तुमकी करवायो । हूं आलबेली बेल रही कान्हा ॥१॥

मोर मुकुट पीतांबर शोभे । मुरली क्यौं बजावे कान्हा ॥२॥

ब्रिंदाबनमों कुंजगलनमों । गड उनकी चरन धुलाई ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । घर घर लेऊं बलाई ॥४॥

११०.

मनमोहन गिरिवरधारी ॥ध्रु०॥

मोर मुकुट पीतांबरधारी । मुरली बजावे कुंजबिहारी ॥१॥

हात लियो गोवर्धन धारी । लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी ॥२॥

ग्वाल बाल सब देखन आयो । संग लिनी राधा प्यारी ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । आजी आईजी हमारी फेरी ॥४॥

१११.

बालपनमों बैरागन करी गयोरे ॥ध्रु०॥

खांदा कमलीया तो हात लकरीया । जमुनाके पार उतारगयोरे ॥१॥

जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत । बनसीकी टेक सुनागयोरे ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सावली सुरत दरशन दे गयोरे ॥३॥

११२.

लटपटी पेचा बांधा राज ॥ध्रु०॥

सास बुरी घर ननंद हाटेली । तुमसे आठे कियो काज ॥१॥

निसीदन मोहिके कलन परत है । बनसीनें सार्‍यो काज ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधन नागर । चरन कमल सिरताज ॥३॥

११३.

राजा थारे कुबजाही मन मानी । म्हांसु आ बोलना ॥ध्रु०॥

रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया ।

भुलगई सुद सारी ॥१॥

तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो । कछु नही चूक हमारी ॥२॥

मिराके प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल उरधारी ॥३॥

११४.

हमे कैशी घोर उतारो । द्रग आंजन सबही धोडावे ।

माथे तिलक बनावे पेहरो चोलावे ॥१॥

हमारो कह्यो सुनो बिष लाग्यो । उनके जाय भवन रस चाख्यो ।

उवासे हिलमिल रहना हासना बोलना ॥२॥

जमुनाके तट धेनु चरावे । बन्सीमें कछु आचरज गावे ।

मीठी राग सुनावे बोले बोलना ॥३॥

हामारी प्रीत तुम संग लागी । लोकलाज कुलकी सब त्यागी ।

मीराके प्रभु गिरिधारी बन बन डोलना ॥४॥

११५.

माई मेरो मोहनमें मन हारूं ॥ध्रु०॥

कांह करुं कीत जाऊं सजनी । प्रान पुरससु बरयो ॥१॥

हूं जल भरने जातथी सजनी । कलस माथे धरयो ॥२॥

सावरीसी कीसोर मूरत । मुरलीमें कछु टोनो करयो ॥३॥

लोकलाज बिसार डारी । तबही कारज सरयो ॥४॥

दास मीरा लाल गिरिधर । छान ये बर बरयो ॥५॥

११६.

हारि आवदे खोसरी । बुंद न भीजे मो सारी ॥ध्रु०॥

येक बरसत दुजी पवन चलत है । तिजी जमुना गहरी ॥१॥

एक जोबन दुजी दहीकी मथीनया । तिजी हरि दे छे गारी ॥२॥

ब्रज जशोदा राणी आपने लालकू । इन सुबहूमें हारी ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । प्रभु चरणा परवारी ॥४॥

११७.

राम बिन निंद न आवे । बिरह सतावे प्रेमकी आच ठुरावे ॥ध्रु०॥

पियाकी जोतबिन मो दर आंधारो दीपक कदायन आवे ।

पियाजीबिना मो सेज न आलुनी जाननरे ए बिहावे ।

कबु घर आवे घर आवे ॥१॥

दादर मोर पपीया बोले कोयल सबद सुनावे ।

गुमट घटा ओल रहगई दमक चमक दुरावे । नैन भर आवें ॥२॥

काहां करूं कितना उसखेरू बदन कोई न बनवे ।

बिरह नाग मेरि काया डसी हो । लहर लहर जीव जावे जडी घस लावे ॥३॥

कहोरी सखी सहली सजनी पियाजीनें आने मिलावे ।

मीराके प्रभु कबरी मिलेगे मोहनमो मन भावे । कबहूं हस हस बतलावे ॥४॥

११८.

दरद जाने कोय हेली । मैं दरद दिवानी ॥ध्रु०॥

घायलकी गत घायल ज्याने । लागी हिये ॥१॥

सुली उपर सेजहमारी । किसबीद रहीये सोय ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । वदे सामलीया होय ॥३॥

११९.

सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू ॥ध्रु०॥

कुबजा दासी कंस रायकी । दराय कोठोडो ॥१॥

आपन जाय दुबारका छाय । कागद हूं कोठोडो ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कुबजा बडी हरी छोडो ॥३॥

१२०.

खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस ॥ध्रु०॥

हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो । एकबार दरसन दे जारे ॥१॥

आप बिहारे दरसन तिहारे । कृपादृष्टि करी जारे ॥२॥

नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो । एक हाम पैन सहजीरे ।

जो दिन ते सखी मधुबन छांडो । ले गयो काळ कलेजारे ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सबही बोल सजारे ॥४॥

१२१

अपनी गरज हो मिटी सावरे हाम देखी तुमरी प्रीत ॥ध्रु०॥

आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत ॥ ठोर०॥१॥

ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत ॥२॥

बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत ।

मीराके प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित ॥३॥

१२२.

मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ ॥ध्रु०॥

कीया कीजो प्रसन्न दिजावे ।

खबर लीजो आये तुम साधनमें तुम संतनसे ।

तुम ग‍उवनके रखवाल ॥२॥

आपन जाय दुवारकामें हामकू देई विसार ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहार ॥४॥

१२३.

हरी सखी देख्योरी नंद किशोर ॥ध्रु०॥

मोर मुकुट मकराकृत कुंडल । पीतांबर झलक हरोल ॥१॥

ग्वाल बाल सब संग जुलीने । गोवर्धनकी और ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरि भये माखन चोर ॥३॥

१२४.

तुम लाल नंद सदाके कपटी ॥ध्रु०॥

सबकी नैया पार उतर गयी । हमारी नैया भवर बिच अटकी ॥१॥

नैया भीतर करत मस्करी । दे सय्यां अरदन पर पटकी ॥२॥

ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी । घगरीया जतनसे पटकी ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । राधे तूं या बन बन भटकी ॥४॥

१२५.

प्रगट भयो भगवान ॥ध्रु०॥

नंदाजीके घर नौबद बाजे । टाळ मृदंग और तान ॥१॥

सबही राजे मिलन आवे । छांड दिये अभिमान ॥२॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । निशिदिनीं धरिजे ध्यान ॥३॥

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Last Updated : December 23, 2007

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