द्वितीय अध्याय
सूतजी ने कहा- हे ऋषियो! जिन्होंने पहले समय में इस व्रत को किया है, उनका इतिहास कहता हूं-आप सब ध्यान से सुनें । सुंदर काशीपुर नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था । वह ब्राह्मण भूख और प्यास से बेचैन होकर नित्य पृथ्वी पर घूमता था । ब्राह्मणों से प्रेम करने वाले श्री विष्णु भगवान ने ब्राह्मण को दुखी देखकर एक दिन बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण कर निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर आदर के साथ पूछा- हे विप्र! तुम नित्य ही दुखी होकर पृथ्वी पर क्यों घूमते हो? हे श्रेष्ठ ब्राह्मण यह सब मुझसे कहो, मैं सुनना चाहता हूं । दरिद्र ब्राह्मण ने कहा- मैं निर्धन ब्राह्मण हूं, भिक्षा के लिए पृथ्वी पर फिरता हूं । भगवन! यदि आप इससे छुटकारा पाने का कोई उपाय जानते हों तो कृपा कर मुझे बताएं । मैं आपकी शरण हूं ।
वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किए हुए श्री विष्णु भगवान ने कहा - हे ब्राह्मण! श्री सत्यनारायण भगवान मनवांछित फल देने वाले हैं, इसलिए तुम उनका पूजन करो, जिसके करने से मनुष्य सब दुखों से मुक्त हो जाता है । इसी के साथ दरिद्र ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बतलाकर बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण करने वाले श्री सत्यनारायण भगवान अंतर्धान हो गए ।
जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण ने बतलाया है, मैं उसको अवश्य करूंगा, यह निश्चय कर वह दरिद्र ब्राह्मण घर चला गया । परंतु उस रात्रि उस दरिद्र ब्राह्मण को नींद नहीं आई ।
अगले दिन वह जल्दी उठा और श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का निश्चय कर भिक्षा मांगने के लिए चल दिया । उस दिन उसको भिक्षा में बहुत धन मिला, जिससे उसने पूजा का सब सामान खरीदा और घर आकर अपने बंधु-बांधवो के साथ भगवान श्रीसत्यनारायण का व्रत किया । इसके करने से वह दरिद्र ब्राह्मण सब दुखों से छूटकर अनेक प्रकार की संपतियों से युक्त हो गया । उस समय से वह विप्र हर मास व्रत करने लगा । सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो शास्त्रविधि के अनुसार श्रद्धापूर्वक करेगा, वह सब पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा । आगे जो मनुष्य पृथ्वी पर श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत करेगा, वह सब दुखों से छूट जाएगा । इस तरह नारदजी से सत्यनारायण भगवान का कहा हुआ यह व्रत मैंने तुमसे कहा । हे विप्रो! अब आप और क्या सुनना चाहते हैं, मुझे बताएं?
ऋषियों ने कहा- हे मुनीश्वर! संसार में इस विप्र से सुनकर किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब सुनना चाहते हैं । इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा है ।
श्री सूतजी ने कहा- हे मुनियो! जिस-जिस प्राणी ने इस व्रत को किया है उन सबकी कथा सुनो । एक समय वह ब्राह्मण धन और ऐश्वर्य के अनुसार बंधु-बांधवों के साथ अपने घर पर व्रत कर रहा था । उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा व्यक्ति वहां आया । उसने सिर पर रखा लकड़ियों का गठ्ठर बाहर रख दिया और विप्र के मकान में चला गया । प्यास से दुखी लकड़्हारे ने विप्र को व्रत करते देखा । वह प्यास को भूल गया । उसने विप्र को नमस्कार किया और पूछा- हे विप्र! आप यह किसका पूजन कर रहे हैं? इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है? कृपा करके मुझे बताएं !
ब्राह्मण ने कहा- सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह श्री सत्यनारायण भगवन का व्रत है । इनकी ही कृपा से मेरे यहां धन-धान्य आदि की वृद्धि हुई है । विप्र से इस व्रत के बारे में जानकर वह लकड़्हारा बहुत प्रसन्न हुआ । भगवान का चरणामृत ले और भोजन करने के बाद वह अपने घर को चला गया ।
अगले दिन लकड़्हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज गांव में लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा, उसी से भगवान सत्यनारायण का उत्तम व्रत करूंगा । यह मन में विचार कर वह लकड़्हारा लकड़ियों का गट्ठर अपने सिर पर रखकर जिस नगर में धनवान लोक रहते थे, ऐसे सुंदर नगर में गया । उस दिन से उन लकड़ियों का दाम पहले दिनों से चौगुना मिला । तब वह बूढ़ा लकड़हारा अति प्रसन्न होकर पके केले, शक्कर, शहद घी, दूध, दही और गेहूं का चूर्ण इत्यादि श्री सत्यनारायण भगवान की व्रत के सभी सामग्री लेकर अपने घर आ गया । फिर उसने अपने बंधु-बांधवों को बुलाकर विधि-विधान के साथ भगवान का पूजन और व्रत किया । उस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन, पुत्र आदि से युक्त हुआ और संसार के समस्त सुख भोगकर बैकुंठ को चला गया ।
॥इतिश्री श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण॥