भजन - राम-कृष्ण कहिये उठि भोर ।...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


राम-कृष्ण कहिये उठि भोर ।

अवध-ईस वे धनुष धरे हैं, यह ब्रज-माखनचोर ॥

उनके छत्र चँवर सिंहासन, भरत सत्रुहन लछमन जोर ।

इनके लकुट मुकुट पीताम्बर, नित गायन सँग नंद-किसोर ॥

उन सागरमें सिला तराई, इन राख्यौ गिरि नखकी कोर ।

’नंददास’ प्रभु सब तजि भजिये, जैसे निरखत चंद चकोर ॥

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Last Updated : December 21, 2007

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