भजन - जुगुलकिसोर हमारे ठाकुर ...

स्यामा स्याम पद पावैं सोई ।

मन-बच-क्रम करि सदा नित्य जेहि हरि गुरु पदपंकज रति होई ॥१॥

नंदसुवन वृषभानुसुता पद भजै तजै मन आनै जोई ।

श्रीभट अटकि रहे स्वामीपन आन ब्रतै मानै सब छोई ॥२॥


जुगुलकिसोर हमारे ठाकुर ।

सदा सरबदा हम जिनके हैं, जनम जनम घरजाये चाकर ॥१॥

चूक परै परिहरैं न कबहूँ, सबही भाँति दयाके आकर ।

जे श्रीभट्ट प्रगट त्रिभुवनमें, प्रनतनि पोषत परम सुधाकर ॥२॥

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Last Updated : December 21, 2007

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