भजन - बलि -बलि श्रीराधे -नँदनँ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


बलि-बलि श्रीराधे-नँदनँदना ।

मेरे मनकी अमित अघटनी को जानै तुम बिना ॥

भलेई चारु चरन दरसाये ढूँढ़त फिरिहौं बृंदाबना ।

जै श्रीभट स्यामा स्यामरुप पै निवछावर तन-मना ॥

राधे, तेरे प्रेमकी कापै कहि आवै ।

तेरीसी गोपकी तोपै बनि आवै ॥

मन-बच-क्रम दुरगम सदा तापै चरन छुवावै ।

जै श्रीभट मति बृषभानु तेज प्रताप जनावै ॥

बसौ मेरे नैननिमें दोउ चंद ।

गौरबदनि बृषभानुनंदिनी, स्यामबरन नँदनंद ॥१॥

गोकुल रहे लुभाय रुपमें निरखत आनँदकंद ।

जै श्रीभट्ट प्रेमरस-बंधन, क्यों छूटै दृढ़ फंद ॥२॥

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Last Updated : December 21, 2007

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