पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है ।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है ॥१॥
हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है ।
मन मोलै है, बागोंमें मोर सुहावणो बोलै है ॥२॥
आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है ।
रितु राजै है, स्यामकी सुंदर मुरली बाजै है ॥३॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है ।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है ॥४॥