मन्त्र पठण

इस सृष्टि में उत्पन्न किसी वस्तु को, मनुष्य प्राणी भी, उत्तम स्थिती में लाने का वा करने का अर्थ ’संस्कार’ है।


विवाहादि संस्कारो में ईश्वरोपासना सम्बन्धी तथा यजमान (संस्कारकर्ता ) की प्रतिज्ञा से सम्बन्धित वेदमन्त्र तथा सूत्रमत्रं वस्तुतः संस्कारकर्ता (यजमान) को ही बोलने चाहिये । फिर भी वे मन्त्र यथोचित रीति से शुद्ध तथा क्रम से बोलने में उसकी ओर से असावधानी प्रमाद अथवा आलस्य न हो, अतः पुरोहित को भी यजमान के साथ मन्त्र बोलना चाहिये । यदि कोई यजमान जड़, मतिमन्द, अपढ़. शुद्ध अक्षर उच्चारण करने में असमर्थ हो, तो ईश्वरोपासना तथा आहुति के सभी मन्त्र पुरोहित बोले । प्रतिज्ञा के मन्त्र यजमान से ही पढ़वाने चाहिये । उत्तम भोजन, उत्तम वस्त्रालंकार, रंग मंडप इत्यादि शोभा सम्बन्धी बातो की तैयारी की ओर यजमान पहले ही जितना ध्यान देता है, उससे भी अधिक उसे मन्त्र पठन की तैयारी की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये

N/A

References : N/A
Last Updated : May 24, 2018

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP