इसके बाद निम्नलिखित विनियोगको पढ़कर अञ्जलिसे अँगूठेको अलग हटाकर गायत्री मन्त्रसे सूर्य भगवानको जलसे अर्घ्य दे । अर्घ्यमे चन्दन और फूल मिला ले । सबेरे और दोपहरको एक एड़ी उठाये हुए खड़े होकर अर्घ्य देना चाहिये । सबेरे कुछ झुककर खड़ा होवे और दोपहरको सीधे खड़ा होकर और शामको बैठकर । सबेरे और शामको तीन-तीन अञ्जलि दे और दोपहरको एक अञ्जलि । सुबह और दोपहरको जलमें अञ्जलि उछाले और शामको धोकर स्वच्छ किये स्थलपर धीरेसे अञ्जलि दे । ऐसा नदीतटपर करे । अन्य जगहोमे पवित्र स्थलपर अर्घ्य दे, जहाँ पैर न लगे । अच्छा है कि बर्तनमें अर्घ्य देकर उसे वृक्षके मूलमें डाल दिया जाय ।
सूर्यार्घ्यका विनियोग - सूर्यको अर्घ्य देनेके पूर्व निम्नलिखित विनियोग पढ़े -
(क) 'ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः परमात्मा देवता अर्घ्यदाने विनियोगः ।'
(ख) ॐ भूर्भुवः स्वरिति महाव्याह्रतीनां परमेष्ठी प्रजापतिऋषिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्यादेवताः अर्घ्यदाने विनियोगः ।'
(ग) ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता सूर्यार्घ्यदाने विनियोगः ।'
इस प्रकार विनियोग कर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर अर्घ्य दे -
'ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।' (शुक्लयजु० ३६।३)
इस मन्त्रको पढ़कर
'ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय नमः'
कहकर अर्घ्य दे ।
विशेष - यदि समय (प्रातः सूर्योदयसे तथा सूर्यास्तसे तीन घड़ी बाद) का अतिक्रमण हो जाय तो प्रायश्चित्तस्वरूप नीचे लिखे मन्त्रसे एक अर्घ्य पहले देकर तब उक्त अर्घ्य दे -
ॐ भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमाहि । धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ।
उपस्थान - सूर्यके उपस्थानके लिये प्रथम नीचे लिखे विनियोगोंको पढ़े-
(क) उद्वयमित्यस्य प्रस्कण्व ऋशिरनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
(ख) उदु त्यमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिर्निचृद्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
(ग) चित्रमित्यस्य कौत्स ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
(घ) तच्चक्षुरित्यस्य दध्यङ्डथर्वण ऋषिरक्षरातीतपुरउष्णिक्छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
इसके बाद प्रातः चित्रानुसार खड़े होकर तथा दोपहरमें दोनो हाथोंको उठाकर और सायंकाल बैठकर हाथ जोड़कर नीचे लिखे मन्त्रोको पढ़ते हुए सूर्योपस्थान करे ।
सूर्योपस्थानके मन्त्र -
(क) ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् ।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ॥
(यजु० २०।२१)
(ख) ॐ उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः ।
दृशे विश्वाय सूर्यम् (यजु० ७।४१)
(ग) ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः ।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ॥
(यजु० ७।४२)
(घ) ॐ तच्चक्षुर्देवहित पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ।
(यजु० ३६।२४)
गायत्री-जपका विधान
षडङ्गन्यास - गायत्री मन्त्रके जपके पूर्व षडङ्गन्यास करनेका विधान है । अतः आगे लिखे एक-एक मन्त्रको बोलते हुए चित्रके अनुसार उन-उन अङ्गोका स्पर्श करे -
१. ॐ ह्रदयाय नमः
(दाहिने हाथकी पाँचो अँगुलियोंसे ह्रदयका स्पर्श करे ।)
२. ॐ भूः शिरसे स्वाहा
(मस्तकका स्पर्श करे) ।
३. ॐ भुवः शिखायै वषट्
(शिखाका अँगूठेसे स्पर्श करे ) ।
४. ॐ स्वः कवचाय हुम्
(दाहिने हाथकी अँगुलियोंसे बाये कंधेका और बाये हाथकी अँगुलियोंसे दाये कंधेका स्पर्श करे) ।
५. ॐ भूर्भुवः स्वः नेत्राभ्यां वौषट्
(नेत्रोंका स्पर्श करे) ।
६. ॐ भुर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्
(बाये हाथकी हथेलीपर दाये हाथको सिरसे घुमाकर मध्यमा और तर्जनीसे ताली बजाये) ।