दशहरा - व्रत ( ब्रह्मपुराण ) -
ज्येष्ठ शुक्ला दशमीको हस्त नक्षत्रमें स्वर्गसे गड्ङाका आगमन हुआ था । अतएव इस दिन गड्ङा आदिका स्त्रान, अन्न - वस्त्रादिका दान, जप - तप - उपासना और उपवास किया जाय तो दस प्रकारके पाप ( तीन प्रकारके कायिक, चार प्रकारके वाचिक और तीन प्रकारके मानसिक ) दूर होते हैं । यदि इस दिन १ ज्येष्ठ, २ शुक्ल, ३ दशमी, ४ बुध, ५ हस्त, ६ व्यतीपात, ७ गर, ८ आनन्द, ९ वृषस्थ रवि और १० कन्याका चन्द्र हो तो यह अपूर्वयोग महाफलदायक होता है । इसमें योगविशेषका बाहुल्य होनेसे पूर्वा या पराका विचार समयपर करके जिस दिन उपर्युक्त योग आधिक हों उस दिन स्त्रान, दान, जप, तप, व्रत और उपवास आदि करने चाहिये । यदि ज्येष्ठ आधिक मास हो तो ये काम शुद्धकी अपेक्षा मलमासमें करनेसे ही अधिक फल होता है । दशहराके दिन दशाश्वमेधमें दस प्रकार स्त्रान करके शिवलिङ्गका दस संख्याके गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल अदिसे पूजन करके रात्रिको जागरण करे तो अनन्त फल होता है ।
१. ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता ।
हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता ॥ ( ब्रह्मपुराणे )
२. अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानतः ।
परदारोपसेवा च शारीरं त्रिविधं स्मृतम् ॥
पारुष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः ।
असम्बद्धप्रलापश्च वाङ्ममयं स्याच्चतुर्विधम् ॥
परद्रव्येष्वाभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम् ।
वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम् ॥ ( मनुः)
३. ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशभ्यां बुधहस्तयोः ।
व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे वृषे रवौ ।
दशयोगे नरः स्त्रात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ( स्कान्दे )