गङ्गा - पूजन -
ज्येष्ठ शुक्ला दशमी ( यदि ज्येष्ठ अधिक मास हो तो अधिक ज्येष्ठकी शुक्ल दशमी ) को गङगतटवर्ती प्रदेशमें अथवा सामर्थ्य न हो तो समीपके किसी भी जलाशय या घरके शुद्ध जलसे स्त्रान करके सुवर्णादिके पात्रमें त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावयवभूषित, रत्नकुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रादिसे सुशोभित तथा वर और अभयमुद्रासे युक्त श्रीगङ्गाजीकी प्रशान्त मूर्ति अङ्कित करे । अथवा किसी साक्षात मूर्तिके समीप बैठ जाय । फिर ' ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गयै नमः ।' से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे तथा इन्हीं नामोंसे ' नमः ' के स्थानमें स्वाहायुक्त करके हवन करे । तत्पश्चात् ' ॐ नमो भगवति ऐं ह्लीं श्रीं ( वाक् - काम - मायामयि ) हिलि हिलि मिलि गङ्गे मां पावय पावय स्वाहा ।' इस मन्त्नसे पाँच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके गङ्गको भूतलपर लानेवाले भगीरथका और जहाँसे वे आयी हैं, उस हिमालयका नाम - मन्त्रसे पूजन करे । फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल - इनका ' गङागयै नमः ।' कहकर दस करे । साथ ही घी मिले हुए सत्तूके और गुड़के पिण्ड जलमें डाले । सामर्थ्य हो तो सोनेके कच्छय, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जलमें डाल दे । इसके अतिरिक्त १० सेर तिल, १० सेर जौ और १० सेर गेहूँ १० ब्राह्मणोंको दे । परदार और परद्रव्यादिसे दूर रहे तथा ज्येष्ठ शुक्ला प्रतिपदमें प्रारम्भ करके दशमीतक एकोत्तर - वृद्धिसे दशहरास्तोत्रका पाठ करे, तो सब प्रकारके पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है ।
चतुर्भुजां त्रिनेत्रां च सर्वावयवशोभिताम् ।
रत्नकुम्भसिताम्भोजवरदाभसत्कराम् ॥ ( जयसिंहकल्पद्रुमे गङ्गपूजनविधौ )