अशोकव्रत
( भविष्योत्तर ) -
आश्विन शुक्ल प्रतिपदाको नवीन पल्लवोंवाले अशोकवृक्षके समीप सप्तधान्य, गेहूँके गुणे, मोदक, अनार आदि ऋतुफल और पुष्पादि चढ़ाकर यथाविधि पूजन करे और
' अशोक शोकशमनो भव सर्वत्र नः कुले '
से अर्घ्य देकर उसे उत्तम वस्त्रोंसे ढककर पताकादि लगाये तो व्रतवती स्त्रीके सब शोक नष्ट हो जाते हैं । जिस समय जनकनन्दिनी सीताने लंकाकी अशोकवाटिकामें यह व्रत किया था, उस समय उनके सब शोक दूर हो गये थे ।