कोजागरव्रत
( कृत्यनिर्णयदि ) -
आश्विन शुक्ल निशीथव्यापिनी पूर्णिमाको ऐरावतपर आरुढ हुए इन्द्र और महालक्ष्मीका पूजन करके उपवास करे और रात्रिके समय घृतपूरित और गन्ध - पुष्पादिसे सुपूजित एक लाख, पचास हजार, दस हजार, एक हजार या केवल एक सौ दीपक प्रज्वलित करके देवमन्दिरों, बाग - बगीचों, तुलसी - अश्वत्थके वृक्षों, बस्तीके रास्ते, चौराहे, गली और वास - भवनोंकी छत आदिपर रखे और प्रातःकाल होनेपर स्त्रानादि करके इन्द्रका पूजनकर ब्राह्मणोंको घी - शक्कर मिली हुई खीरका भोजन कराकर वस्त्रादिकी दक्षिणा और स्वर्णादिके दीपक दे तो अनन्त फल होता है । इस दिन रात्रिके समय इन्द्र और लक्ष्मी पूछते हैं कि ' कौन जागता है ?' इसके उत्तरमें उनका पूजन और दीपज्योतिका प्रकाश देखनेमें आये तो अवश्य ही लक्ष्मी और प्रभुत्व प्राप्त होता है ।