राहु मातु माया मलिन मारी मरुत पूत ।
समय सगुन मारग मिलहिं, छल मलीन खल धूत ॥१॥
माया करनेवाली मलिन ( कपटसे भरी ) राहुकी माता सिंहिकाको श्रीपवनकुमारने मार दिया । यह शकुन कहता है कि यात्राके समय मार्गमें कपटी, पापी दुष्ट और धूर्त मिलेंगे ( उसने सावधान रहना चाहिये । ) ॥१॥
पूजा पाइ मिनाक पहिं सुरसा कपि संबादु ।
मारग अगम सहाय सुभ होइहि राम प्रसादु ॥२॥
मैनाक पर्वतसे सत्कार पाकर आगे जाते हुए हनुमान्जीसे ( नागमाता ) सुरसाकी बातचीत हुई । ( शकुन फल यह है कि ) श्रीरामकी कृपासे विकट मार्गमें भी शुभ सहायता प्रात्प होगी ॥२॥
लंकाँ लोलुप लंकिनी काली काल कराल ।
काल करालहि कीन्हि बलि कालरूप कपि काल ॥३॥
कालके समान भयकर एवं काली, लोभमूर्ति लंकिनी राक्षसी लंकामें ( प्रवेश करते ही ) मिली, उसे कालरूप बनकर स्वयं भी कालरूप ( भयंकर वेश ) धारी हनुमान्जीने भयकर काल ( मृत्यु ) के बलि अर्पण कर दिया ( मार डाला ) ॥३॥
( कार्यमें आयी बाधा नष्ट होगी ।)
मसक रूप दसकंध पुर निसि कपि घर घर देखि ।
सीय बिलोकि असोक तर हरष बिसाद बिसेषि ॥४॥
मच्छरके समान ( छोटा ) रूप धारण करके हनुमान्जीने रात्रिमें रावणकी पुरी लंकाका एक-एक घर छान डाला । ( अन्तमें ) श्रीजानकीजीको अशोकवृक्षके नीचे देखकर उन्हें प्रसन्नता और अत्यधिक दुःख दोनों हुए ॥४॥
( प्रश्न-फल मध्यम है, हर्ष-शोक दोनोंका सूचक है । )
फरकत मंगल अंग सिय बाम बिलोचन बाहु ।
त्रिजटा सुनि कह सगुन फल, प्रिय सँदेस बड़ लाहु ॥५॥
श्रीजानकीजीके मंगलसूचक अंग बायीं आँख और भुजा फड़क रही है । इसे सुनकर त्रिजटा शकुनका फल बतलाती है कि 'प्रियतमके सन्देशकी प्रात्पिरूपी बड़ा लाभ होगा ॥५॥
( प्रियजनका समाचार मिलेगा ।)
सगुन समुझि त्रिजटा कहति , सुनु अबहीं आजु ।
मिलिहि राम सेवक कहिहि कुसल लखनु रघुराजु ॥६॥
शकुनको समझकर त्रिजटा कहती है-'जानकीजी! सुनो । आज ( अभी) श्रीरामका सेवक मिलेगा और लक्ष्मण तथा रघुनाथजीकी कुशल कहेगा ॥६॥
( प्रियजनका कुशल समाचार प्रात्प होगा । )
तुलसी प्रभु गुन गन बरनि आपनि बात जनाइ ।
कुसल खेम सुग्रीव पुर रामु लखनु दोउ भाइ ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि ( हनुमान्जीने श्रीजानकीजीसे ) प्रभु श्रीरामके गुणोंका वर्णन करके अपनी बात जनायी ( अपना परिचय दिया और कहा-) सुग्रीवकी नगरी ( किष्किन्धा ) में श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाई कुशलपूर्वक है' ॥७॥
( प्रियजनका समाचार मिलेगा । )