रामज्ञा प्रश्न - पंचम सर्ग - सप्तक ३

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


सुरुख जानकी जानि कपि कहे सकल संकेत ।

दीन्हि मुद्रिका लीन्ही सिय प्रीति प्रतीति समेत ॥१॥

श्रीजानकीजीको प्रसन्न समझकर हनुमान्‌जीने सब संकेत ( श्रीरामका गुप्त सन्देश ) कहा और मुद्रिका दी, उसे श्रीजानकीजीने प्रेम तथा विश्र्वासपूर्वक लिया ॥१॥

( दुःखके समय आश्वासन प्राप्त होगा । )

पाइ नाथ कर मुद्रिका सिय हियँ हरषु बिषादु ।

प्राननाथ प्रिय सेवकहि दीन्ह सुआसिरबादु ॥२॥

स्वामीके हाथकी अँगूठी पाकर श्रीजानकीजीके चित्तमें प्रसन्नता तथा शोक दोनों हुए, प्राणनाथके प्रिय सेवक ( श्रीहनुमान्‌जी ) को उन्होंने शुभ अशीर्वाद दिया ॥२॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

नाथ सपथ पन रोपि कपि कहत चरन सिरु नाइ ।

नाहिं बिलंब जगदंब अब आइ गए दो‍उ भाइ ॥३॥

स्वामी श्रीरामकी शपथ करके प्रतिज्ञापूर्वक हनुमान्‌जी ( श्रीजानकीजीके ) चरणोमें मस्तक झुकाकर कहते हैं-जगन्माता ! अब देर नहीं है, दोनों भाई आ ही नये ( ऐसा मानो ) ॥३॥

( प्रश्‍न-फल उत्तम है । )

समाचार कहि सुनत प्रभु सानुज सहित सहाय ।

आए अब रघुबंस मनि, सोचु परिहरिय माय ॥४॥

( मैं लौटकर ) समाचार कहूँगा, उसे सुनते ही प्रभु श्रीरघुनाथजी छोटे भाई तथा सहायकों ( वानरी सेना ) के साथ यह पहुँच ही गये ( ऐसा मानकर ) माता! चिन्ता त्याग दो ॥४॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

गए सोच संकट सकल, भए सुदिन जियँ जानु ।

कौतुक सागर सेतु करि आए कृपा निधानु ॥५॥

सभी चिन्ता और विपत्तियाँ दूर गो गयीं, अच्छे दिन आ गये - ऐसा चित्तमें समझो । खेलमें ही समुद्रपर सेतु बाँधकर कृपानिधान श्रीराम आ गये ॥५॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

सकुल सदन जमराजपूर चलन चहत दसकंधु ।

काल न देखत काल बस बीस बिलोचन अंधु ॥६॥

रावण अपने पूरे कुल और सारी सेनाके साथ यमलोक जाना चाहता है। बीस नेत्र होनेपर भी ऐसा अन्धा हो गया है कि अपना काल ( मृत्यु ) देख नहीं पाता ॥६॥

( प्रश्‍न-फल निकृष्ट है । )

आसिष आयसु पाय कपि सीय चरनु सिर नाइ ।

तुलसी रावन बाग फल खात बराइ बराइ ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं-आशीर्वाद और आज्ञा पाकर, श्रीजानकीजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर हनुमान्‌जी रावणके बगीचेमें छाँट - छाँटकर फल खा रहे हैं ॥७॥

( प्रश्‍न - फल उत्तम है । )

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Last Updated : January 22, 2014

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