अंगद n. वालि को तारा से उत्पन्न हुआ । यह रामचन्द्र की सहायतार्थ, बृहस्पति के अंश से निर्माण हुआ था अतएव भाषण कला में अत्यंत चतुर था । युद्ध में, राम के बाण से आहत हो कर धराशायी होने पर, अपने पुत्र अंगद की रक्षा करने की प्रार्थना वालि ने राम से की
[वा.रा.कि.१८.४९-५३] । रामचन्द्र ने सुग्रीव को किष्किंध की राजगद्दी पर अभिषिक्त कर तत्काल अंगद को यौवराज्यभिषेक किया
[वा.रा.कि.२६] । वानराधिपति सुग्रीव ने, दक्षिण दिशा की ओर जिन वानरों को सीता खोज की हेतु से भेजा, उनका अंगद नायक था
[वा.रा.कि.४१.५-६] । सीता की खोज करते समय, पर्वत पर एक बडे असुर से इस की मुलाकात हुई, तथा उसने अंगद पर आक्रमण किया । उस समय उसे ही रावण समझकर, अंगद ने एक मुक्का उसके मुँह पर मारते ही वह रक्त की उलटी करने लगा तथा भूमी पर निश्चेष्ट गिर गया
[वा.रा.कि४८.१६-२१] । सीता की खोज में असफल होने के कारण, सब वानरों ने प्रायोपवेशन करने का निश्चय किया । इतने में संपाति ने सीता का पता बताया
[वा.रा.कि.५५-५८] । उसी समय समुद्रोल्लंघन कर, कौन कितने समय में पार जा सकता है, इसकी पूछताछ अंगद ने की । अंगद ने कहा कि, एक उडान में वह १०० यौजन का अंतर पार कर सकता है
[वा.रा.कि.६५] । अन्त में यह काम हनुमान ने किया । रावण के साथ युद्ध करने के पूर्व, साम की भाषा करने के लिये राम ने अंगद को वकील के नाते भेजा था परंतु उससे कुछ लाभ नहीं हुआ
[म.व.१६८] ;
[वा.रा.यु.४१] । इसने इन्द्रजित के साथ युद्ध कर के उसे जर्जर किया
[वा.रा.यु.४३] । कंपन के साथ युद्ध कर के उसका वध किया
[वा.रा.यु.७६] । नरांतक का
[वा.रा.यु.६९-७०] , महापार्श्व का
[वा.रा.यु.९८] तथा वज्रदंष्ट का वध किया
[वा.रा.यु.५४] । कुंभकर्ण के साथ युद्ध करते समये, सब वानर उसका शरीर देख कर भयभीत हो गय ए। उस समयपर, वीररसयुक्त भाषण करके, सब वीरों को इसने युद्ध में प्रवृत्ति किया
[वा.रा.यु.६६] । यह सारा कर्तृत्व ध्यान में रख कर, राज्याभिषेक के समय राम ने इसको बाहुभूषण अर्पण किये
[वा.रा.यु.१२८] । सुग्रीव के बाद इसने किष्किंधा पर राज्य किया ।
अंगद II. n. दशरथपुत्र लक्ष्मण को उर्मिला से दो पुत्र प्राप्त हुए । उनमें से यह ज्येष्ठ पुत्र है । इसके द्वारा स्थापित नगरी को अंगदीया कहते है । वहीं यह राज्य करता था
[वा.रा.उ.१०२] ।
अंगद III. n. भारतीय युद्ध में पांडवों के विरुद्ध कौरवों को इसने सहायता की थी
[म.द्रो.२४.३६] ।