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उपमन्यु

   { upamanyu }
Script: Devanagari

उपमन्यु     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
In the Kṛtayuga, there lived a hermit named Vyāghrapāda who had two sons. They were called Upamanyu and Dhaumya. Some learned men are of opinion that Upamanyu the son of Vyāghrapāda and Upamanyu the disciple of Ayodhadhaumya, were one and the same. Once Upamanyu visited another hermitage along with his father. He happened to drink the milk of the cow there. After that they returned to their own hermitage, Upamanyu went to his mother and asked her to make milk pudding for him. But the mother felt very sorry because there was no milk. At last she mixed flour in water and made pudding and gave it to him. Upamanyu did not accept it. His mother told him that there was no way to get milk and that men could get wealth, crops etc. only by the grace of Śiva. Upamanyu who was of a wilful nature did penance with meditation and contemplation on Śiva. Finally Śiva appeared before him in the shape of Indra and told him to ask for his boon. Upamanyu boldly replied that he wanted no boon from anybody else except Śiva. Śiva made his appearance in his own form and made Upamanyu a deva (God). Upamanyu said all these things when he talked with Śrī Kṛṣṇa. [M.B. Anuśāsana Parva, Chapter 14] . In the Book “Our hermits,” written by Rāmasvāmi Śāstrī in Tamil, it is mentioned that Upamanyu had written a book “Śiva bhaktavilāsa” in which biographies of devotees of Śiva of great attainments are given.
UPAMANYU I   A dutiful disciple of the teacher Ayodhadhaumya. This teacher had three disciples of prominence. They were Āruṇi, Upamanyu and Veda. To know how Upamanyu was put to test by the teacher see under Ayodhadhaumya.
UPAMANYU III   In the [Brahmāṇḍa Purāṇa] we come across another Upamanyu as the son of a hermit named Sutapas. Upamanyu reached the hermitage of Kaśyapa, with the idea of marrying Sumati, the daughter of Kaśyapa and the elder sister of Garuḍa. Nobody liked the idea of giving Sumati in marriage to that old man. The hermit got angry at this and cursed Kaśyapa that if he gave his daughter in marriage to any Brāhmaṇa his head would break into a hundred pieces. [Brahmāṇḍa Purāṇa, Chapter 18] .

उपमन्यु     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक गुरु भक्त ऋषि   Ex. उपमन्यु अश्वनिकुमारों के आशीर्वाद से बिन पढ़े ही सभी विद्याओं के ज्ञाता हो गए थे ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
उपमन्यु ऋषि
Wordnet:
benউপমন্যু ঋষি
gujઉપમન્યુ
kasاُپمنٛیو , اُپمنٛیو ریش
kokउपमन्यु
marउपमन्यु
oriଉପମନ୍ୟୁ ଋଷି
panਉਪਮੰਨਿਊ
sanउपमन्युः
urdاپمنیو , اُپمنیورشی

उपमन्यु     

उपमन्यु (वासिष्ठ) n.  मंत्रदृष्टा [ऋ.९.९७.१३-१५] । वसिष्ठकुलोत्पन्न व्याघ्रपाद का पुत्र । इसका कनिष्ठ बंधु धौम्य । इसका आश्रम हिमालय पर्वत पर था । इसकी माता का नाम अंबा था । उपमन्यु आपोद (आयोद) धौम्य ऋषि का शिष्य । धौम्य ने उपमन्यु के उदर्निर्वाह के साधन भिक्षा, दूध, फेन आदि बंद किया । अंत में प्राण के अत्यंत व्याकुल होने पर इसने अरकवृक्ष के पत्तों का भक्षण किया । जिसके कारण वह अंधा हुआ तथा कुएँ में गिर पडा । गुरुजी शिष्य को ढूंढने के लिये निकले, तथा वन में आकर उपमन्यु को कई बार पुकारा । गुरुजी के शब्द पहचान कर उपमन्यु ने अपना सारा वृत्तांत कहा । तब गुरुजी ने इसे अश्विनीकुमारों की स्तुति करने को कहा । स्तुति करते ही अश्विनीकुमारों ने प्रसन्न हो कर इसे एक अपूप भक्षण करने दिया । परंतु इसने गुरु को प्रथम अर्पण किये बिना उसे भक्षण करना अस्वीकार कर दिया । उपमन्यु को किसी भी प्रकार के मोह के वश न होते देख, वे उस पर बहुत संतुष्ट हुए । अश्विनीकुमारों ने उसे उत्तम दृष्टि दी । गुरु भीं उस पर प्रसन्न हुए [म.आ.३.३२-८४] । बचपन में एक बार उपमन्यु दूसरे मुनि के आश्रम में खेलने गया । वहा इसने गाय का दूध निकालते हुए देखा । बचपन में एक बार इसके पिता एक यज्ञ में उसे ले गये, जहॉं इसे दुग्धप्राशन करने मिला था । इस कारण इसे दूध का गुण तथा उसकी मिठास मालूम थी [म. अनु. .१४. ११७-१२०] । लिंग एवं शिव पुराण में ऐसा दिया है कि, जब वह मामा के घर गय था, तब इसे दुग्धप्राशन करने मिला था [लिंग. १.१०७] ;[शिव. वाय. १.३४.३५] । घर आ कर उपमन्यु माता से दूध मांगने लगा । मां ने आटा पानी में घोल कर दिया जिस कारण उसे बहुत खराब लगा । मां ने स्नेहपूर्वक उपमन्यु पर हात फेरते हुए कहा कि, पूर्वजन्म में शंकर की आराधना न करने के कारण, दूध मिलने इतना दैव अपने अनुकूल नहीं है । शंकर कैसा है, उसका ध्यान किस तरह करना चाहिये, इत्यादि जानकारी उसने माता से पूछी । माता को प्रणाम कर वह तपस्या करने चला गया । वहां दुस्तर तपस्या कर शंकर को उसने प्रसन्न किया । प्रथम शंकर ने इंद्र के स्वरुप में आ कर कहा कि, मेरी आराधना करो; परंतु उसे शंकर के अभाव में देहत्याग की तैयारी करते देख शंकर ने प्रगट हो उसे अनेक वर दिये । क्षीरसागर, दिया तथा गणों का अधिपति नियुक्त किया । उसने शंकर पर अनेक स्तोत्र रचे । उसने आठ ईटों का मंदिर बना कर मिट्टी के शिवलिंग की आराधना की, तथा पिशाचों द्वारा लाये गये विघ्नों पर भी उसने तप को भंग नहीं होने दिया [शिव. वाय. १.३४] । यह शैव था । इसने कृष्ण को शिवसहस्त्रनाम बताया [म. अनु. १७] । तथा पुत्रप्राप्ति के लिये तप करने जब कृष्ण आया, तब उसे शैवी दीक्षा दी । हिमवान् पर्वत के आश्रम में अंत में यह अत्यंत जीर्णवस्त्र ओढ कर रहता था । इसने जटा भी धारण की थी । यह कुतयुग में हुआ था [म. अनु. १४-१७] ;[शिव. उमा.१] । शंकर के बताये अत्यंत विस्तृत शैवसिद्धांत को इसने ऊरु, दधीच तथा अगस्त्य इनके साथ संक्षेप में कर समाज में प्रसिद्ध किया [शिव. वाय. ३२]
उपमन्यु (वासिष्ठ) II. n.  नंदिकेश्वरकृत काशिका ग्रंथ पर व्याघ्रपद के पुत्र उपमन्यु की टीका है । इस टीकाकार ने अपनी अपनी टीका में इस काशिका के बारे में यह विवरण दिया है कि, शिव ने अपने डमरु के मिष (बहाने) सनक, सनंदन, पतंजलि, व्याघ्रपाद आदि भक्तों के लिये चौदह सूत्रों के द्वारा ज्ञान प्रगट किया । परंतु उन में से केवल एक नंदिकेश्वर को इन सूत्रों का तत्त्वार्थ समझा, तथा उसने इन छ्ब्बीस श्लोकों की काशिका रची (शिवदत्त-महाभाष्य पृष्ठ ९२ देखिये) । व्याकरण संबंधी माहेश्वर के चौदह वर्णसूत्र प्रसिद्ध है, जो महेश्वर ने डमरु बजा कर पाणिनि को दिये ऐसी प्रसिद्धि है । इन सूत्रों का कुछ गूढार्थ है, ऐसा नंदिकेश्वरकाशिका से पता चलता है ।शेखर के रचयिता नागंशभट्ट ने नंदिकेश्वर काशिका को प्रमाण माना है । इस बात से पता चल जायेगा कि उपमन्यु, पाणिनि तथा पतंजलि के पश्चात् का रहा होगा । व्याघ्रपाद (उपमन्यु का पिता), नंदिकेश्वर तथा पतंजलि समकालीन थे, ऐसा प्रतीत होता है । परंतु काल की दृष्टि से सारे उपमन्यु एक है यह कहना असंभव लगता है । इसके द्वारा लिखे ग्रन्थ, १. अर्धनारीश्वराष्टक, २. तत्त्वविभर्षिणी, ३. शिवाष्टक, ४. शिवस्तोत्र (बृहत्‌स्तोत्र रत्नाकर में छपा है), ५. उपमन्युनिरुक्त (C.C.) इसनें एक स्मृति की भी रचना की थी, ऐसा स्थान पर आये वचनों से पता चलता है ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) III. n.  वेद ऋषि का शिष्य ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) IV. n.  कृष्णद्वपायन व्यास का पुत्र, शुक्राचार्य का बंधु ।
उपमन्यु (वासिष्ठ) V. n.  इंद्रप्रमतिपुत्र वसु का पुत्र [ब्रह्मांड. ३.९.१०] । यह ऋग्वेदी श्रुतर्षि मध्यमाध्वर्यु भी था ।

उपमन्यु     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  एक गुरु भक्त रुशी   Ex. उपमन्यु अश्वनिकुमारांच्या आशिर्वादान शिकनासतना सगल्या विद्यांचो ज्ञाता जाल्लो
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
उपमन्यु रुशी
Wordnet:
benউপমন্যু ঋষি
gujઉપમન્યુ
hinउपमन्यु
kasاُپمنٛیو , اُپمنٛیو ریش
marउपमन्यु
oriଉପମନ୍ୟୁ ଋଷି
panਉਪਮੰਨਿਊ
sanउपमन्युः
urdاپمنیو , اُپمنیورشی

उपमन्यु     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक गुरूभक्त ऋषी   Ex. उपमन्यु हे अश्वनिकुमारांच्या आशीर्वादाने न शिकताच सर्व विद्यांचे ज्ञानी झाले होते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
उपमन्यु ऋषी उपमन्यू उपमन्यू ऋषी
Wordnet:
benউপমন্যু ঋষি
gujઉપમન્યુ
hinउपमन्यु
kasاُپمنٛیو , اُپمنٛیو ریش
kokउपमन्यु
oriଉପମନ୍ୟୁ ଋଷି
panਉਪਮੰਨਿਊ
sanउपमन्युः
urdاپمنیو , اُپمنیورشی

उपमन्यु     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
उप-मन्यु  mfn. mfn. striving after, zealous ([[BRD.] ]), [RV. i, 102, 9]
ROOTS:
उप मन्यु
(knowing, understanding, intelligent, [Sāy.] )
उप-मन्यु  m. m.N. of a ऋषि (pupil of आयोद-धौम्य, who aided शिव in the propagation of his doctrine and received the ocean of milk from him), [MBh.] ; [LiṅgaP.] ; [Kathās.] &c.
ROOTS:
उप मन्यु
उप-मन्यु  m. m. pl. (अवस्) the descendants of the above, [ĀśvŚr.] (cf.औपमन्यव.)
ROOTS:
उप मन्यु

उपमन्यु     

उपमन्यु [upamanyu] a.  a. Ved.
Understanding, intelligent.
Zealous, striving after.
(m.) N. of the pupil of Āyoda-dhaumya, who aided Śiva in the propagation of his doctrine and received the ocean of milk from him.

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