कवष (ऐलूष) n. सूक्तद्रष्टा
[ऋ. १०.३१-३३] । यह कुरुश्रवण का उपाध्याय था
[ऋ. १०.३२.९] । इलूषपुत्र कवष सरस्वती के किनारे अंगिरसों के सत्र में आया, तब शूद्रापुत्र, अब्राह्मण एवं जुआडी कह कर इसे यज्ञ के लिये अयोग्य घोषित किया । तथा जंगल में इसे छोड कर ऐसी व्यवस्था की गई कि, इसे पानी भी प्राप्त न हो । परंतु अपोनप्त्रीय सूक्त कहने के कारण, सरस्वती स्वयं इसकी ओर मुड गई । अभी भी उस स्थान को परिसारक नाम है । ऋषियों ने बाद में इसका महत्त्व जान कर इसे वापस बुलाया
[ऐ. ब्रा.२.१९] ;
[सां. ब्रा१२.१-३] सांख्यायन ब्राह्मणों में यह अब्राह्मण था, इसीलिये इसे यज्ञ से निकाल दिया, ऐसा स्पष्ट लिखा है । तृत्सुओं के लिये इन्द्र ने कवषादिकों का पराभव किया तथा उनके मजबूत किले उध्वस्त कर दिये
[ऋ.७.१८.१२] । इसके सूक्त में कुरुश्रवण, उपश्रवस् तथा मित्रातिथि का निर्देश है
[ऋ. १०.३२-३३] मित्रातिथि की मृत्यु से देखी उपमश्रवस् का समाचार पूछने के लिये यह आया था ।