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पु.
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देवांचे वैद्य ; अश्विनी नांवाच्या अप्सरेचे दोन जुळे मुलगे .
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( ल . ) कुशल वैद्य . पै सौम्यतेचा बोलवा । मिती नेणिजे अश्विनौदेवा । - ज्ञा ११ . १४४ .
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अश्विनीकुमार n. एक ही नाम से पहचानी जाने वाली, द्युस्थानीय दो देवता । ऋग्वेद में इनके वर्णन पर लगभग पचास सूक्त हैं । ये जुडवॉं भाई है तथा कभी एक दूसरे से विलग नही होते [ऋ. ३.३९.३] । ये सरण्यू से प्रभातसमय में उत्पन्न हुए [ऋ. १०.१७.२] । परंतु इन दोनोंका जन्म अलग हुआ ऐसा भी उल्लेख है । एक निशा का, तथा दूसरा उषा का पुत्र था [नि.१२.२] । इनके उदय का समय, उषा तथा सूर्योदय के वीचमें है [ऋ.८.५.२] । द्विवचन में आनेवाला नासत्य शब्द एकवचन में आया है [ऋ.७.६७.१०] ;[तै. सं.७.२.७] । इनका रथ सुनहरा है, तथा उसे पहिये, बैठक तथा धुरियॉं प्रत्येक तीन तीन है [ऋ.१.११८.१,२.१८०.१] । सूर्या के विवाह समारोह में जब ये आये थे, तब इनके रथ का एक चक्र टूट गया [ऋ.१०.८५.१५] । इनके रथ को श्येन [ऋ.१.११८.१] , गरुड [ऋ.४.४५.४] , हंस [ऋ.४.४५.४] , तथा कुछ स्थानों पर केवल पक्षीं जोडे जाने का निर्देश है [ऋ.६.६३.६] । सोम तथा सूर्या के विवाह प्रसंग में, इनके रथ को रासभ जोडे थे [ऐ.ब्रा.४.४-९] इनका रथ एक दिन में पृथ्वी तथा स्वर्ग आक्रमता है [ऋ. ३.५८.८] । इनका वासस्थान द्यु तथा पृथ्वी [ऋ.१. ४४.५] द्यौ तथा अंतरिक्ष [ऋ.८.८.४] , वृक्ष तथा गिरिगव्हर, दिया है [ऋ.७.७०.३] । इनका स्थान अज्ञात है [ऋ.६.६३.१,८.६२.४] । सूर्यकन्या सूर्या के ये पति हैं [ऋ.१.११७.१६,४.४३.६] । ये लोगों को संकटमुक्त करते हैं (अत्रि, घोषा, भुझ्यु तथा वंदन देखिये) । परंतु स्त्रियों को पुत्र देना [ऋ.१.११२.३,१०.१८४.२] वृद्धो को तरुण बनाना [ऋ.१.११९.७] आदि कथाऐं भी प्रचलित है । अथर्ववेद में, प्रेमी युगुलों को मिलाना इ. विषय में भी, इनकी प्रख्याति है [अ.वे. २.३०.२] । इसके अतिरिक्त, ये अंध, पंगु तथा रोगग्रस्तों को ठीक करनेवाले [ऋ. १०.३९.३] , देवताओं के धन्वन्तीर तथा मृत्यु को टालनेवाले हैं [ऋ.८.१८.८] ;[तै. ब्रा.३.१.२.११] । इन्होंने विश्पला को लोहे का पैर लगाया इ. आख्यायिकाये हैं (दधीच, भृज्यु, कवि तथा विमद देखिये) । अश्वीदेवों की कल्पना गुरुशुक्र के सानिध्य से उत्पन्न हुई, यन दीक्षितजी का कथन सब को आन्य होने लायक है [भा.ज्यो.पा.६५] । हमारे वैदिक पूर्वज उत्तर धृव प्रदेश में जब रहते थे, तब उनके द्वारा अवलोकन किये गये दो दृश्य-जिन्हें अंग्रेजी में Astronomical and meterological light या Auroraa Borealis कह्ते है, -उन्हीका रुपकात्मक दर्शन अश्विनीकुमारों के प्रतीको में किया गया है, ऐसा श्री.वडेर का कहना है । संज्ञा जब अश्वरुप में संचार कर रही थी, तब उसे विवस्वान से अश्विनीकुमार हुए । अपनी पत्नी अश्विनी है, यन देख विवस्वान ने अश्वरुप में उससे सहवास किया । परंतु संज्ञा ने उसे परपुरुष समझ कर, उस वीर्य को नासापुटों द्वारा त्याग दिया । अश्विनीकुमारों को नासत्य ऐसा भी नामांतर है [म.आ.६०.३४] ;[भा.६.६.४०] । इनमें से बडे का नाम नासत्य, तथा छोटे का नाम दस्त्र हैं [म. अनु.१५०] । ये देवों के वैद्य, तथा वैवस्वत मन्वन्तर के देव है [भा. ८.१३.४] ; मनु देखिये देवों में यह शूद्र हैं [म. शां. २०७.२६ कुं] उपमन्यु ने अपना गुरु आपोद धौम्य की आज्ञा से, दृष्टिप्राप्त्यर्थ इनकी स्तुति की । इस स्तुति से तथा गुरु के प्रति उसकी निष्ठा से संतुष्ट हो कर, इन्होंने उसे दृष्टि दी [म.आ.३.७५] । एक बार, जब ये च्यवनाश्रम में आये थे, तब इन्हें यज्ञ में हविर्भाग प्राप्त कर देने का मान्य कर, च्यवन ने इससे तारुण्य प्राप्त करा लिया [म. व.१२३.] ;[भा.९. ३.२३-२६] । माद्री ने पांडू की आज्ञा से, इनसे आवाहन कर दो पुत्र प्राप्त कर लिये । वे ही नकुल तथा सहदेव हैं [म.आ.९०.७२,११५.१६-१७] । ये शिशुमारचक्र के स्तन पर हैं [भा.५.२३.७] ; अश्विनीसुत देखिये ।
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