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पिशाच

   { piśācḥ, piśāca }
Script: Devanagari

पिशाच     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
PIŚĀCA I   (Devil, Satan
) 1) Origin.
A malevolent being which is the very manifestation of evil. Everybody, everywhere in the world, from the very birth of this universe believed in the presence of such a wicked soul. According to Hindu Purāṇas, Piśāca is a creation of Brahmā. In the beginning Brahmā created the eighteen prajāpatis headed by Dakṣa, the Yakṣas, the Gandharva and the Piśācas. [Chapter 1, Ādi Parva] . This wicked being is called in English a ‘Devil’. This word is derived from the Greek word ‘diabolos’. People of the West and East equally believe that Piśāca (Satan) is an enemy of men and gods alike.
2) Bible and the Piśāca.
It is not clearly stated in Bible how Satan was born but it is being referred to at several places as a wicked soul which leads men to evil.
3) The Bhāratīya Saṅkalpa.
Pisāca, the creation of Brahmā, has taken important roles in the Purāṇic stories. Though Piśāca is the instigator of all evils its manifestation appears in many contexts in the Purāṇas:--
(i) Piśāca lives in the court of Kubera and worships him. [Śloka 16, Chapter 10, Sabhā Parva] .
(ii) Piśāca lives in the court of Brahmā and worships him. [Śloka 49, Chapter 11, Sabhā Parva] .
(iii) Piśāca lives in the Gokarṇatīrtha and worships Śiva. [Śloka 25, Chapter 85. Vana Parva] .
(iv) Piśāca is the head of all evil spirits. Marīci and sages like him have created many evil spirits. [Śloka 46, Chapter 272, Vana Parva] .
(v) The bhūtas (evil spirits) made Rāvaṇa their king. [Śloka 88, Chapter 275, Vana Parva] .
(vi) The food of Piśāca is flesh and its drink, blood. [Śloka 9, Chapter 50, Droṇa Parva] .
(vii) In the battle af Bhārata, the horses attached to the chariot of Alambuṣa were Piśācas. [Śloka 38, Chapter 167, Droṇa Parva] .
(viii) The Piśācas fought Karṇa acting as helpers to Ghaṭotkaca. [Śloka 109, Chapter 175, Droṇa Parva] .
(ix) Arjuna conquered the Piśācas at the time of Khāṇḍavadāha. Śloka 37, Chapter, 37;[Karṇa Parva] .
(x) The Piśācas were present during the fight of Arjuna with Karṇa [Śloka 50, Chapter 87, Karṇa Parva] .
(xi) The Piśācas worship Pārvatī and Parameśvara doing penance on the top of the mountain Muñjavān. [Śloka 5, Chapter 8, Āśvamedhika Parva] .
(xii) During the time of Mahābhārata many Piśācas incarnated as kings. [Śloka 6, Chapter 31, Āśramvāsika Parva] .
PIŚĀCA II   A Yakṣa. [Śloka 16, Chapter 10, Śānti Parva] .
PIŚĀCA III   An inhabitant of the country of Piśāca in ancient Bhārata. These Piśācas fought against the Kauravas on the side of the Pāṇḍavas during the great battle. It was these piśācas that stood on the southern side of the Krauñcavyūha of Yudhiṣṭhira in the great battle. [Śloka 50, Chapter 50, Bhīṣma Parva] . A few of these Piśācas were with Bhagadatta in the army of Duryodhana. [Chapter 87, Bhīṣma Parva] . Śrī Kṛṣṇa cursed the piśācas. Chapter 11, Droṇa Parva).

पिशाच     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  निम्न कोटि के और वीभत्स कर्म करने वाली एक हीन देवयोनि   Ex. कुछ लोग पिशाच की पूजा करते हैं ।
HYPONYMY:
ब्रह्मराक्षस
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
प्रेत मलिनमुख सूचक
Wordnet:
kasپِشاچ , پریت , مَلِنٛمُکھ
malപിശാച്
tamபிசாசு
telభూతం
urdبھوت پریت , پریت , پشاچ , سیطان
See : भूत

पिशाच     

पिशाच n.  दानवों का एक लोकसमूह । ये लोग उत्तर-पश्चिम सीमा प्रदेश, दर्दिस्था, चित्रल आदि प्रदेशों में रहते थे । काफिरिस्थान के दक्षिण की ओर एवं लमगान (प्राचीन-लम्याक), प्रदेश के समीप रहने वाले, आधुनिक ‘पशाई-काश्मिर’ लोग सम्भवतः यही है। ग्रियर्सन ने भी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से इस मत को समीचीन माना है [ज.रॉ.ए.सो.१९५०, पिशाच, २९५-२८८] । ‘पिशाच’ का शब्दार्थ ‘कच्चा मॉंस का भक्षण करने वाला हैं’। अर्थववेद के अनुसार, इन लोगों में कच्चे मॉंस के भक्षण करने की प्रथा थी, इस कारण इन्हें पिशाच नाम प्राप्त हुआ [अ.वे.५.२९.९] । वैदिक वाङ्मय में निर्दिष्ट दैत्य एवं दानवों का उत्तरकालीन विकृत रुप पिशाच है । पिशाची का अर्थसम्भवतः ‘वैताल’ अथवा ‘प्रेतभक्षक’ था । अर्थवेद में दानवों के रुप में इसका नाम कई बार आया है [अ.वे.२.१८.४,४. २०. ६-९,३६.४, ३७.१०,५.२९.४-१०,१४,६.३२.२, ८. २.१२.१२.१.५०] । इन लोगों का निर्देश ऋग्वेद में ‘पिशाचि’ नाम से किया गया है [ऋ.१.१३३. ५] । राक्षसों तथा असुरों के साथी मनुष्य एवं पितरों के विरोधी लोगों के रुप में इनका निर्देश वैदिक साहित्य में स्थान पर हुआ है [तै. सं.२.४,१.१] ;[का. सं. ३७-१४] । किन्तु कहीं इनका उल्लेख मानव रुप में भी हुआ है। कुछ भी हो यह लोग संस्कारो से हीन व वर्बर थे और इसी कारण यह सदैव घृणित दृष्टि से देखे जाते थे । उत्तर पश्चिमी प्रदेश में रहने वाले अन्य जातियों के समान ये भी वैदिक आर्य लोगों के शत्रु थे । सम्भवतः मानव मॉंस भक्षण की परंपरा इनमें काफी दिनों तक प्रचलित रही । ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार, इन लोगों में, ‘पिशाचवेद’ अथवा ‘पिशाचविद्या’ नामक एक वैज्ञानिक विद्या प्रचलित थी [गो. ब्रा.१.१.१०] ;[आश्व. श्रौ. सऊ. १०.७.६] । अथर्ववेद की एक उपशाखा ‘पिशाचवेद’ नाम से भी उपलब्ध है [गो. ब्रा.१.१०] । ब्रह्मपुराण के अनुसार, पिशाच लोगों को गंधर्व, गुह्यक, राक्षस के समान एक ‘देवयोनिविशेष’ कहा गया है । सामर्थ्य की दृष्टि से, इन्हे क्रमानुसार इस प्रकार रखा गया है-गंधर्व, गुह्यक, राक्षस एवं पिशाच । ये चारों लोग विभिन्न प्रकार से मनुष्य जाति को पीडा देतें है
पिशाच n.  इनकी भाषा पैशाची थी, जिसमें ‘बृहत्कथा’ नामक सुविख्यात ग्रंथ ‘गुणाढय’ (र थी शती ई. पू.) ने लिखा था । गुणाढय का मूल ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है, किंतु उसके आधार लिखे गये ‘कथासरित्सागर’ (२ री शती ई.) एवं ‘बृहत्कथा मंजरी’ नामक दो संस्कृत ग्रंथ आज भी प्राप्त है, एवं संस्कृत साहित्य के अमूल्य ग्रंथ कहलाते है । इनमें से ‘कथासरित्सागर’ का कर्ता सोमदेव हो कर, ‘बृहत्कथा-मंजरी’ को क्षेमेंद्र ने लिखा है । इन सारे ग्रंथों से अनुमान लगाया जाता है कि, ईसासदी के प्रारंभकाल में, पिशाच लोगों की भाषा एवं संस्कृति प्रगति की चरम सीमा पर पहुँच गयी थी । यहॉं तक, कि, इनकी भाषा एवं ग्रथों को पर्शियन सम्राटों ने अपनाया था । इनकी यह राजमान्यता एवं लोकप्रियता देखने पर पैशाची संस्कृति एवं राजनैतिक सामर्थ्य का पता चल जाता है । सर्वप्रथम मध्य एशिया में रहनेवाले ये लोग, धीरे धीरे भारतवर्ष के दक्षिण सीमा तक पहुँच गये । महाभारतकालीन पिशाच जनपद के लोग । ये लोग युधिष्ठिर की सेना में क्रौंचव्यूह के दाहिने पक्ष की जगह खडे किये थे [म.भी.४६.४९] । इनमें से बहुत से लोग भारतीययुद्ध में मारे गये थे [म.आश्र. ३९.६] । दुर्योधन की सेना में राजा भगदत्त के साथी पिशाचदेशीय सैनिक थे [म.भी.८३.८] । श्रीकृष्ण ने किसी समय पिशाच देश के योद्धाओं को परास्त किया था [म.द्रो.१०.१६]
पिशाच II. n.  एक यक्ष का नाम [म.स.१०.१५]

पिशाच     

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English
A devil or fiend, one of a class of malevolent beings. 2 The spirit of a deceased person which, having at death some unaccomplished wish, haunts the scenes of its mortal existence and afflicts people; a ghost, a goblin, a sprite.

पिशाच     

Aryabhushan School Dictionary | Marathi  English
 m  A devil or fiend. The spirit of a deceased person. A ghost.

पिशाच     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
See : भूत

पिशाच     

नेपाली (Nepali) WN | Nepali  Nepali
See : भूत, शैतान

पिशाच     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
पिशाच  f. m. (ifc.f(). ) N. of a class of demons (possibly so called either from their fondness for flesh [पिश for पिशित] or from their yellowish appearance; they were perhaps originally a personification of the ignis fatuus; they are mentioned in the वेद along with असुरs and राक्षसs See also, [Mn. xii, 44] ; in later times they are the children of क्रोधाcf.[IW. 276] )
a fiend, ogre, demon, imp, malevolent or devilish being, [AV.] &c. &c. (ifc. ‘a devil of a -’ [Kād.] )
N. of a रक्षस्, [R.]

पिशाच     

पिशाचः [piśācḥ]   [पिशितमाचामति, आ + चम् बा˚ ड पृषो˚] A fiend, goblin, devil, spirit, malevolent being; नन्वाश्वासितः पिशाचोऽपि भोजनेन [V.2;] [Ms.1.37;12.44.] -Comp.
-आलयः   phosphorescence.
-चर्या   the practice of पिशाचs-द्रुः a kind of tree.
-बाधा, -संचारः   demoniacal possession.
-भाषा   'the language of devils', a gibberish or corruption of Sanskrit, one of the lowest Prākṛita dialects used in plays.
सभम् an assemblage of fiends.
pandemonium, the hall of their assembly.

पिशाच     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
पिशाच  m.  (-चः) A goblin, a fiend, a malevolent being something between an infernal imp and a ghost, but always described as fierce and malignant.
 f.  (-ची) A female imp, a she-demon.
E. पिश for पिशित flesh, and अश् to eat, aff. अण्, deriv. irr.; According to Vāchaspatya:--पिशितमाचामति आ + चम-बा-ड० पृषो० . also
ROOTS:
पिश पिशित अश् अण् पिशितमाचामति आ + चम-बा-ड० पृषो० .
with कन् added, पिशाचक, पिशाचिका.

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