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पूषन्

   { pūṣan }
Script: Devanagari

पूषन्     

पूषन् n.  ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक देवता, जो संभवतः सूर्यदेवता का नामांतर है । ऋग्वेदान्तर्गत आठ सूक्तों में, इस देवता का वर्णन प्राप्त है । इनमें से एक सूक्त में इन्द्र एवं पूषन् की स्तुति की गयी है, एवं दूसरे एक सूक्त में सोम एवं पूषन् को संयुक्त देवता मानकर उनकी स्तुति की गयी है । उत्तरकालीन वैदिकाकाल में इस देवता का निर्देश अप्राप्य है । इसकी महत्ता का वर्णन जहॉं वेदों में प्राप्त है, वहॉं इसका स्वरुपवर्णन स्पष्ट नहीं हो पाया है । रुद्र की भॉंति यह जटा एवं दाढी रखता है [ऋ.६.५५.२,१०.२६.७] । इसके पास सोने का एक भाला है [ऋ.१.४३.६] । इसके पास एक अंकुश भी है [ऋ.६.५४.९] । यह दंतहीन है । यह पेज या आटे को तरल पदार्थ के रुप में ही खा सकता है [ऋ.६.५३.१] ;[श. ब्रा.१.७.४.७] । अग्नि की तरह, यह भी समस्त प्राणियों को एक साथ देख सकता है । यह सम्पूर्ण चराचर का स्वामी है [ऋ.१.११५.१] । इसे उत्तम सारथि भी कहा गया है [ऋ.६.५६.२] । बकरे इसके रथ के वाहन हैं [ऋ.१.३८.४] । सूर्य एवं अग्नि की भॉंति, यह अपनी माता (रात्रि) एवं बहन (उषा) से प्रेमयाचना करनेवाला है [ऋ.६.५५.५] । इसकी पत्नी का नाम सूर्या था [ऋ.६.५८.४.] । इसकी कामतप्त विह्रलता देखकर, देवताओं ने इसका विवाह सूर्या से संपन्न कराया । सूर्या के पति के नाते, विवाह के अवसर पर इसका स्मरण किया जाता है, एवं इससे प्रार्थना की जाती है, ‘नववधू का हाथ पकडे कर उसे आशीर्वाद दो ।’ सूर्य के दूत के नाते, यह अन्तरिक्षसमुद्र में अपने स्वर्णनौका में बैठकर विहार करता है [ऋ.६.५८.३] । यह द्युलोक में रहता है, एवं सारे विश्व का निरीक्षण करता हुआ भ्रमण करता है । सूर्य की प्रेरणा से, यह सारे प्राणियों का रक्षण करता है । यह ‘आघृणि’ अर्थात अत्यंत तेजस्वी माना जाता है । पृथ्वी एवं द्युलोक के बीच यह सदैव घूमता रहता है । इस कारण, यह मृत व्यक्तियों को अपने पितरो तक पहुँचा देता है । यह मार्गो में व्यक्तियों का संरक्षण करनेवाला देवता माना जाता है, जो उन्हे लूटपाट, चोरी तथा अन्य आपत्तिविपत्तियों से बचाता है [ऋ.१.४२.१-३] । इसी कारण यह ‘विमुचो नपात् अर्थात् मुक्तता का पुत्र कहा जाता है । कई जगह इसे ‘विमोचन’ कह कर, पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए इसकी प्रार्थना की गयी है [अ.वे.६.११२.३] । शत्रु दूर होकर मार्ग संकटरहित होने के लिये, इसकी प्रार्थना जाती है [ऋ.१.४२.७] । इसी कारण, प्रवास के प्रारंभ में ऋग्वेद के ६.५३ सूक्त का पठन कर, पूषन् को बलि देने के लिये सूत्रग्रंथो में कहा गया है [सां.गृ.२.१४.१९] । यह पथदर्शक देवता माना जाता है [वा.सं.२२.२०] । यह मार्गज्ञ होने के कारण, खोया हुआ माल पुनः प्राप्त करवा देता है [ऋ.६.४८.१५] ;[आश्व. गृ.३.७.९] । यह पशुओं की रक्षा करता है, एवं उन्हें रोगों तथा संकटों से बचाता है [ऋ.६.५४.५-७] । इसे प्राणिमात्र अत्यंत प्रिय हैं । यह भूलेभटके प्राणियों को सुरक्षित वापस लाता है [ऋ.६.५४.७] । यह अश्वों का भी रक्षण करता है । इसीकारण गायों के चराने के लिये लेते समय, पूषन् की प्रार्थना की जाती है [सां.गृ.३.९] । ऋग्वेद में इसके लिये निम्नलिखित विशेषण प्रयुक्त किये गये हैः
पूषन् II. n.  बारह आदित्यों में से एक [भा.६.६.३९, पद्म. सृ.६.म.आ.५९.१५] । यह तपस् (माघ) माह में प्रकाशित होता है [भा.१२.११.३४] । कई ग्रन्थों के अनुसार, यह पौष माह में प्रकाशित होता है [भवि.ब्राह्म.७.८] । भागवत के अनुसार, दक्षयज्ञ में उपस्थित पूषन् तथा यह दोनों एक ही थे [भा.६.६.४३] । महाभारत में भी, भगवान् शंकर द्वारा इसके दॉंत तोडने का निर्देश प्राप्त है [म.द्रो.१७३.४८] । किन्तु दक्षयज्ञ का पूषन् एवं द्वादशादित्यों में से एक पूषन् संभवतः दो अलग व्यक्ति थे । क्यों कि, स्वायंभुव मन्वन्तर में द्वादशादित्य अस्तित्व में नहीं थी । उन्हें दक्ष ने यज्ञ कर के वैवस्वत मन्वन्तर में उत्पन्न किया था । इसने स्कंद को ‘पालितक’ एवं’ कालिका’ नामक दो पार्षद प्रदान किये थे [म.श.४४.३९]

पूषन्     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
पूषन्  m. m. (the not lengthened in the strong cases, but acc.°षाणम्, in [MārkP.] ) N. of a Vedic deity (originally connected with the sun, and therefore the surveyor of all things, and the conductor on journeys and on the way to the next world, often associated with सोम or the Moon as protector of the universe; he is, moreover, regarded as the keeper of flocks and herds and bringer of prosperity; in the ब्राह्मणs he is represented as having lost his teeth and feeding on a kind of gruel, whence he is called करम्भा-द्; in later times he is one of the 12 आदित्यs and regent of the नक्षत्ररेवती or पौष्ण; du.पूषन् and अर्यमन्[VP.] Sch.)
the sun, [Kād.] ; [Bālar.]
पूष-राति   (?) growth, increase (cf.)
ROOTS:
पूष राति
the earth, [L.]

पूषन्     

पूषन् [pūṣan]  m. m. (nom. पूषा,
-षणौ, -षणः) [पूष्-कनिन्;   Uṇ.1. 156]
A Vedic deity.
The protector of the universe; Īśop.16.
The sun; सदापान्थः पूषा गगनपरिमाणं कलयति [Bh.2.114;] इन्धनौघधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति पूषणम् [Śi.2.23;] नवीनमिव पूषणम् [Śiva.B.15.26.]
One of the 12 Ādityas; [Mb.12.15.18.]
The earth. -Comp.
-अनुजः   rain; प्रास्यद् द्रोणसुतो बाणान् वृष्टिं पूषानुजो यथा [Mb.8.] 2.29.
-अरिः, असुहृद्  m. m. an epithet of Śiva.
आत्मजः a cloud.
an epithet of Indra.
an epithet of Karṇa; पूषात्मजो मर्मसु निर्बिभेद [Mb.8.89.76.]
-दन्तहरः   an epithet of Vīrabhadra; see अदन्त.
-भासा   the city of Indra (अमरावती).

पूषन्     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
पूषन्  m.  (-षा) The sun.
E. पूष् to nourish, aff. कनिन् .
ROOTS:
पूष् कनिन् .

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