वीरभद्र n. एक शिवपार्षद, जो शिव के क्रोध से उत्पन्न हुआ था ।
वीरभद्र n. स्वायंभुव मन्वंतर में दक्ष प्रजापति के द्वारा किये गये यज्ञ में शिव का अपमान हुआ। इस अपमान के कारण क्रुद्ध हुए शिव ने अपने जटाओं को झटक कर, इसका निर्माण किया
[भा. ४.५] ;
[स्कंद. १.१-३] ;
[शिव. रुद्र. ३२] । इसके जन्म के संबंध में विभिन्न कथाएँ पद्म एवं महाभारत में प्राप्त है । क्रुद्ध हुए शिव के मस्तक से पसीने का जो बूँद भूमि पर गिरा, उसीसे ही यह निर्माण हुआ
[पद्म. सृ. २४] । यह शिव के मुँह से उत्पन्न हुआ था
[म. शां. २७४. परि.१. क्र. २८. पंक्ति ७०-८०] ;
[वायु. ३०.१२२] । भविष्य में स्वयं शिव ही वीरभद्र बनने की कथा प्राप्त है
[भवि. प्रति. ४.१०] ।
वीरभद्र n. उत्पन्न होते ही इसने शिव से प्रार्थना की, ‘मेरे लायक कोई सेवा आप बताइये’। इस पर शिव ने इसे दक्षयज्ञ का विध्वंस करने की आज्ञा दी। इस आज्ञा के अनुसार, यह कालिका एवं अन्य रुद्रगणों को साथ ले कर दक्षयज्ञ के स्थान पर पहुँच गया, एवं इसने दक्षपक्षीय देवतागणों से घमासान युद्ध प्रारंभ किया। रुद्र के वरप्रसाद से इसने समस्त देवपक्ष के योद्धाओं को परास्त किया। तदुपरांत इसने यज्ञ में उपस्थित ऋषियों में से, भृगु ऋषि की दाढी एवं मूँछे उखाड़ दी, भग की आँखे निकाल ली, पूषन् के दॉंत तोड़ दिये। पश्र्चात् इसने दक्ष प्रजापति का सिर खङ्ग से तोड़ना चाहा। किंतु वह न टूटने पर, इसने धूँसे मार कर उसे कटवा दिया, एवं वह उसीके ही यज्ञकुंड में झोंक दिया। तत्पश्र्चात् यह कैलासपर्वत पर शिव से मिलने चला गया
[भा. ४.५] ;
[म. शां. परि. १. क्र. २८] ;
[पद्म. सृ. २४] ;
[स्कंद. १.१.३-५] ;
[कालि. १७] ;
[शिव. रुद्र. स. ३२.३७] । भविष्य के अनुसार, दक्षयज्ञविध्वंस के समय दक्ष एवं यज्ञ मृग का रूप धारण कर भाग रहे थे । उस समय वीरभद्र ने व्याध का रूप धारण कर उनका वध किया, एवं एक ठोकर मार कर दक्ष का सिर अग्निकुंड में झोंक दिया
[भवि. प्रति. ४.१०] ;
[लिंग. १.१६] ;
[वायु. ३०] । इसने अपने रोमकुपों से ‘रौम्य’ नामक गणेश्र्वर निर्माण किये थे
[म. शां. परि. १.२८] ।
वीरभद्र n. दक्षयज्ञविध्वंस के पश्र्चात्, यह समस्त सृष्टि का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ, किन्तु शिव ने इसे शान्त किया। तदुपरान्त शिव ने आकाश में स्थित ग्रहमालिका में ‘अंगारक’ अथवा ‘मंगल’ नामक ग्रह बनने का इसे आशीर्वाद दिया, एवं वरप्रदान किया, ‘तुम समस्त ग्रहमंडल में श्रेष्ठ ग्रह कलहाओगे। सकल मानवजाति द्वारा तुम्हारी पूजा की जायेगी, एवं जो भी मनुष्य तुम्हारी पूजा करेगा, उसे आयुष्य भर आरोग्य, एवं ऐश्र्वर्य प्राप्प्त होगा’
[भा. ७.१७] ;
[वायु. १०१.२९९] ;
[पद्म.सृ. २४] । दक्षयज्ञविध्वंस के पश्र्चात्, शिव की आज्ञा से इसने अपने तेज का कुछ अंश अलग किया, जिससे आगे चल कर आद्य शंकराचार्य का निर्माण हुआ
[भवि. प्रति. ४.१०] ।
वीरभद्र n. यह शिव का प्रमुख पार्षद ही नहीं, बल्कि उसका प्रमुख सेनापति भी था । शिव एवं शत्रुघ्न के युद्ध में, इसने पुष्कल से पाँच दिनों तक युद्ध किया था, एवं अंत में इसने उसका मस्तक विदीर्ण किया था । त्रिपुरदाह के युद्ध में भी, इसने त्रिपुर का सारा सैन्य निमिषार्ध में विनष्ट किया था
[पद्म. पा. ४३] । शिव एवं जालंधर के युद्ध में भी इसने रौद्र पराक्रम दर्शाया था
[पद्म. उ. १७] ।
वीरभद्र n. यह असुरों का आतंक, एवं देवों का संरक्षणकर्ता था । एक बार शौकट पर्वत पर कश्यपादि सारे ऋषि, एवं समस्त देवगण दावाग्नि में घिर कर भस्म हुए। तदुपरांत इसने समस्त दावाग्नि का प्राशन किया, एवं मंत्रों के साथ सिद्ध किये गये भस्म से सारे ऋषियों को, एवं देवताओं को पुनः जीवित किया। इसी प्रकार एक सर्प के द्वारा निगले गये देवताओं की भी, उस सर्प के दो टुकड़े कर इसने मुक्तता की थी । एक बार पंचमेढ्र नामक राक्षस ने समस्त देवता, ऋषि एवं वालिसुग्रीवों को निगल लिया था । उस समय भी इसने पंचमेढ्र से दो वर्षों तर खङ्ग एवं गदायुद्ध कर, उसका वध किया। इस प्रकार देवता एवं ऋषिओं के तीन बार पुनःजीवित करने के इसके पराक्रम के कारण, शिव इससे अत्यधिक प्रसन्न हुए, एवं उसने इसे अनेकानेक वर प्रदान किये। जिस भस्म की सहायता से इसने देवताओं को पुनः जीवित किया था, उसे ‘त्रायुष’ नाम प्राप्त हुआ
[पद्म. पा. १०७] । आगे चल कर, देवताओं ने भी इसकी स्तुति की थी
[लिंग. १.१६] ।
वीरभद्र n. पद्म में प्राप्त ‘पार्वती-आख्यान’ में इसे ‘वीरक’ कहा गया है, एवं इसे पार्वती का प्रिय पार्षद कहा गया है । गौरवर्ण प्राप्त करने के हेतु, पार्वती जब तपस्या करने गयी थी, उस समय उसने इसे शिव की सेवा करने के लिए नियुक्त किया था
[पद्म. सृ. ४३-४४] ।
वीरभद्र n. लिंग में वीरभद्र को शिव का ‘भैरवस्वरूप’ कहा गया है, एवं इसके द्वारा किये गये नृसिंह दमन की कथा भी वहाँ प्राप्त है । विष्णु का नृसिंहअवतार हिरण्यकशिपु के वध के पश्र्चात्, जब विश्र्वसंहार के लिए उद्यत् हुआ, तब शिव ने वीरभद्र को उसका दमन करने की आज्ञा दी। सर्वप्रथम इसने नृसिंह की स्तुति कर उसे शांत करने का प्रयत्न किया। किंतु न मानने पर, इसने उसका दमन किया, एवं उसे अदृश्य होने पर विवश किया
[लिंग. १.९६] ।
वीरभद्र n. महाराष्ट्र में स्थि घारापुरी एवं वेरूल के गुफाशिल्पों में, शिव के पार्षद के नाते वीरभद्र की प्रतिमाएँ पायी जाती है, जहॉं यह अष्टभुजायुक्त एवं अत्यंत रौद्रस्वरूपी चित्रांकित किया गया है । महाराष्ट्र में होली के दिनों में, वीरों की पूजा की जाती है, एवं उनका जुलूस भी निकाला जाता है ।
वीरभद्र n. इसके नाम पर ‘वीरभद्रकालिका-कवच’ एवं ‘वीरभद्रतंत्र’ नामक दो ग्रंथ उपलब्ध है ।
वीरभद्र II. n. सोंवंशीय मनोभद्र राजा के दो पुत्रों में से एक । एक गृध्रराज के द्वारा इसे पूर्वजन्म का ज्ञान प्राप्त हुआ था (पद्म. क्रि. ३. गर देखिये) ।
वीरभद्र III. n. एक राजा, जो अविक्षित् राजा की निभा नामक पत्नी का पिता था
[मार्के. ११९.१७] ।
वीरभद्र IV. n. यशोभद्र राजा का भाई (यशोभद्र देखिये) ।