शरद्वत् n. (सो. द्रुह्यु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार सेतु राजा का पुत्र था
[मत्स्य. ४८.६] । इसे ‘अंगार’ नामांतर भी प्राप्त था (अंगार देखिये) ।
शरद्वत् (गौतम) n. एक महर्षि, जो गौतम ऋषि एवं अहल्या का पुत्र था । वायु में इसे ‘शारद्वत’ कहा गया है
[वायु. ९९.२०१] ।
शरद्वत् (गौतम) n. वह शुरू से ही अत्यंत बुद्धिमान् था, तथा वेदाध्ययन के साथ-साथ धनुर्वेद में भी प्रवीण था । इसकी तपस्या से डर कर, इंद्र ने तपोभंग करने के लिए जालपदी नामक अप्सरा इसके पास भेज दी। उसे देख कर इसके धनुष एवं बाण पृथ्वी पर गिर पड़े, एवं इसका वीर्य दर्भासन पर गिर पड़ा।
शरद्वत् (गौतम) n. पश्चात् यह धनुर्बाण, मृगचर्म, आश्रम आदि छोड़ कर वहाँ से चला गया । दर्भासन पर पड़े हुए इसके वीर्य के दो भाग हुए, जिनसे आगे चल कर एकपुत्र एवं एक कन्या उत्पन्न हुई। उन दोनों का सुविख्यात कुरुवंशीय राजा शांतनु ने कृपापूर्वक पालन किया, जिस कारण उन्हें ‘कृप’ एवं ‘कृपी’ नाम प्राप्त हुए। इसकी इन संतानों में से कृप कौरव पांण्डवों का आचार्य बन गया, एवं कृपी का विवाह द्रोणाचार्य के साथ हुआ
[म. आ. १२०] । पश्चात् इसने गुप्तरूप से कृपाचार्य को उसके गोत्र आदि का परिचय दिया, एवं उसे चार प्रकार के धनुर्वेद एवं शस्त्र-शास्त्रों की शिक्षा प्रदान की।
शरद्वत् II. n. एक ऋषि, जिसे त्रिधामा ऋषि ने ‘वायुपुराण’ कथन किया था, जो इसने आगे चल कर त्रिविष्ट को कथन किया था
[वायु. १०३.६१] ।
शरद्वत् III. n. सावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ।
शरद्वत् IV. n. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं मंत्रकार, जो अंगिरस् ऋषि का पुत्र था ।
शरद्वत् V. n. गौतमगोत्रीय एक ऋषि, जो उतथ्य ऋषि का शिष्य था
[वायु. ६४.२६] ।
शरद्वत् VI. n. गौतम ऋषि का नामान्तर (गौतम देखिये) ।