शांतनु n. (सो. कुरु.) एक सुविख्यात कुरुवंशीय सम्राट्, जो प्रतीप राजा के तीन पुत्रों में से द्वितीय पुत्र था । इसकी माता का नाम सुनंदा था, एवं अन्य दो भाइयों के नाम देवापि एवं बाह्लीक थे । इसका मूल नाम ‘महाभिषज्’ था । किन्तु शान्त स्वभाववाले प्रतीप राजा का पुत्र होने के कारण इसे ‘शांतनु’ नाम प्राप्त हुआ
[म. आ. ९२.१७-१८] । भागवत के अनुसार, इसके केवल हस्तस्पर्श से ही अशांत व्यक्ति को शान्ति, एवं वृद्ध व्यक्ति को यौवन प्राप्त होता था, इस कारण इसे शांतनु नाम प्राप्त हुआ था
[भा. ९.२२.१२] ;
[म. आ. ९०.४८] । महाभारत की भांडारकर संहिता में इसके नाम का ‘शंतनु’ पाठ स्वीकृत किया गया है; किंतु अन्य सभी ग्रंथों में इसे शांतनु ही कहा गया है । इसका ज्येष्ठ भाई देवापि बाल्यावस्था में ही राज्य छोड़ कर वन में चला गया । इस कारण, कनिष्ठ हो कर भी इसे राज्य प्राप्त हुआ (देवापि देखिये) । यह अत्यंत धर्मशील था, एवं इसने यमुना नदी के तट पर सात बड़े एवं अनुष्ठान किये
[म. व. १५९.२२-२५] ।
शांतनु n. एक बार यह मृगया के हेतु वन में गया, जहाँ इसकी गंगा (नदी) से भेंट हुयी। गंगा के अनुपम रूप से आकृष्ट होकर, इसने उससे अपनी पत्नी बनने की प्रार्थना की। गंगा ने वसुओं के द्वारा उससे की गयी प्रार्थना की कहानी सुना कर, इसे विवाह से परावृत्त करने का प्रयत्न किया, किन्तु इसके पुनः पुनः प्रार्थना करने पर उसने इससे कई शर्तें निवेदित की, एवं उसी शर्तों का पालन करने पर इससे विवाह करने की मान्यता दी (गंगा देखिये) । अपनी इस शर्त के अनुसार, गंगा ने इससे उत्पन्न सात पुत्र नदी में डुबो दिये। इससे उत्पन्न आठवाँ पुत्र भीष्म वह नदी में डुबोने चली। उस समय अपनी शर्त भंग कर, इसने उसे इस कार्य से परावृत्त करना चाहा। इसके द्वारा शर्त का भंग होते ही, गंगा नदी अपने पुत्र को लेकर चली गयी। पश्चात् छत्तीस वर्षों के बाद, इसके द्वारा पुनः पुनः प्रार्थना किये जाने पर गंगा नदी ने इसके पुत्र भीष्म को इसे वापस दे दिया ।
शांतनु n. एक बार सत्यवती नामक धीवर कन्या से इसकी भेंट हुई, एवं उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। उस समय, इसके पुत्र भीष्म को यौवराज्यपद से हटा कर, अपने होनेवाले पुत्र को राज्य प्राप्त होने की शर्त पर सत्यवती ने इससे विवाह करने की संमति दी। अपने प्रिय पुत्र को यह यौवराज्यपद से दूर करना नहीं चाहता था, किंतु भीष्म ने अपूर्व स्वार्थत्याग कर, स्वयं ही राज्याधिकार छोड़ दिया ।
शांतनु n. पश्चात्, इसका सत्यवती से विवाह हुआ, जिससे इसे विचित्रवीर्य एवं चित्रांगद नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें से चित्रांगद की रणभूमि में अकाल मृत्यु हुई, जिस कारण उसके पश्चात् विचित्रवीर्य राजगद्दी पर बैठ गया । इससे विवाह होने के पूर्व, सत्यवती को व्यास नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था, किंतु यह घटना इसे ज्ञात न थी
[दे. भा. २.३] । अपने इन पुत्रों के व्यतिरिक्त इसने शरद्वत् गौतम ऋषि के कृप एवं कृपी नामक संतानों का अपत्यवत् संगोपन किया था (शरद्वत् देखिये) । मृत्यु के पश्चात्, भीष्म के द्वारा दिये गये पिंडादन को स्वीकार करने के लिए यह पृथ्वी पर स्वयं अवतीर्ण हुआ था । उस समय इसने उसे इच्छामरणी होने का वर प्रदान दिया था
[म. अनु. ८४.१५] ।