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शुनःशेप

   { śunḥśēpḥ }
Script: Devanagari

शुनःशेप     

शुनःशेप (आजीगति) n.  एक सुविख्यात ऋषि, जो विश्वामित्र ऋषि का भतीजा एवं आगे चल कर उसका प्रमुख शिष्य था । विश्वामित्र का शिष्य होने के पश्चात्, यह देवरात नाम से प्रसिद्ध हुआ। शुनःशेप शब्द का शब्दशः अर्थ ‘कुत्ते की पूँछ’ होता है । भृगुकुल में उत्पन्न ऋचीक अजीगर्त नामक ऋषि का यह मँझला पुत्र था, एवं इसके अन्य दो भाइयों के नाम शुनःपुच्छ, एवं शुनोलांगूल थे । इसे ‘आजिगर्ति’ एवं ‘सौयवसि’ पैतृक नाम प्राप्त थे । ऋग्वेद के कई सूक्तों का प्रणयन इसके द्वारा हुआ है [ऋ. १.२४. ३०, ९.३]
शुनःशेप (आजीगति) n.  इसके जीवन से संबंधित विस्तृत कथा ब्राह्मण ग्रंथों में प्राप्त है [ऐ. ब्रा. ७.१३-१८] ;[सां. श्रौ. १५.२०-२१, १६.११.२] । हरिश्र्चन्द्र राजा को पुत्र न होने केकारण, उसने वरुण के पास मनौती मानी थी कि, अगर उसे पुत्र होगा, तो वह उसे वरुण को बलिस्वरूप में प्रदान करेगा। आगे चल कर, हरिश्र्चन्द्र को रोहित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, किन्तु वह मनौती पूरी करने में देर लगाने लगा। अपने पिता के द्वारा कबूल की गयी यह मनौती की कथा ज्ञात होते ही, रोहित वन में भाग गया । पश्चात् हरिश्र्चन्द्र को उरदरोग ने ग्रस्त किया । तब रोहित ने वरुण को बलि देने के लिए अपने स्थान पर अजीगर्तपुत्र शुनःशेप को नियुक्त किया, एवं इसके पिता को विपुल द्रव्य दे कर, बलिप्राणी के नाते इसे खरीद लिया । पश्चात् इसे बलिस्तंभ में बाँध भी दियागया । इतने में विश्वामित्र ऋषि ने इसे देवताओं की प्रार्थना करने के लिए कहा। शुनःशेप केद्वारा की गयी ये प्रार्थनाएँ ऋग्वेद के इसीके द्वारा रचित सूक्त में प्राप्त है । पश्चात् विश्वामित्र ने इसे बलिस्तंभ से मुक्त किया, एवं ‘देवरात’ नाम से इसे अपना पुत्र एवं प्रमुख शिष्य मान कर, इसे ‘जह्नु’ एवं ‘गाधिकुल’ का उत्तराधिकारी बनाया । विश्वामित्र का पुत्र बनने के कारण, इसका भृगुगोत्र बदल कर, यह विश्वामित्रगोत्रीय बन गया । ब्राह्मण ग्रंन्‍थों में प्राप्त इस कथा का संबंध, ऋग्वेद में प्राप्त इसके सूक्तों से दिखाने का सफल प्रयत्‍न वेदार्थदीपिका में किया गया है । ऋग्वेद के अन्य एक सूक्त में भी इसके पाशमुक्त बन जाने का निर्देश प्राप्त है [ऋ. ५.२.७ सायणभाष्य]
शुनःशेप (आजीगति) n.  इस साहित्य में वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट इसकी उपर्युक्त कथा अनेक बार सविस्तृत रूप में दी गयी है [म. अनु. ३] ;[शां. २९४] ;[दे. भा. ७. १४-१७] ;[भा. ९.७,१६] ;[वा. रा. बा. ६१-६२] ;[ह. वं. १.२७] ;[विष्णु. ४.७] ;[ब्रह्म. १०]
शुनःशेप (आजीगति) n.  कई अभ्यासकों के अनुसार, वैदिक साहित्य में वर्णित शुनःशेप की कथा रूपकात्मक है, जहाँ दीर्घरात्रि के पश्चात् अस्तमान होनेवाले सूर्य की ओर संकेत किया हुआ प्रतीत होता है । इसके द्वारा विरचित ऋग्वेद के सूक्त में, इसे उषस् के द्वारा वरुण के पाशों से मुक्त किये जाने का निर्देश प्राप्त है, जो इस तर्क को पुष्टि देता है [ऋ. १.२४]

शुनःशेप     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
शुनः-शेप  m. m. ‘dog-tailed’, N. of a Vedic ऋषि (having the patr.आजीगर्ति, as son of अजीगर्त or अजीगर्त, and regarded as the author of the hymns, i, 24-30, ix, 3; accord. to [AitBr. vii, 13-18] , king हरिश्चन्द्र, whose priest was विश्वा-मित्र, being childless, made a vow that on obtaining a son he would sacrifice him to the god वरुण; a son was then born to him named रोहित, but हरिश्चन्द्र put off on various pretexts the fulfilment of his vow, and when he at length consented to perform it, his son refused to be sacrificed, and retiring to the forest passed six years there until he met a poor Brāhmanऋषि named अजीगर्त, who had three sons, the second of whom, शुनः-शेप, was purchased by रोहित for a hundred cows to serve as a substitute for himself ; वरुण having accepted him as a ransom, he was about to be sacrificed, विश्वा-मित्र being होतृ priest, when he saved himself by reciting verses in praise of various deities, and was received into the family of विश्वा-मित्र as one of his sons under the name of देव-रातq.v.: the legend is different in the रामायण, which makes अम्बरीष, king of अयोध्या, perform a sacrifice, the victim of which is stolen by इन्द्र; this king is described as wandering over the earth in search of either the real victim or a substitute until he meets with a Brāhman named ऋचीक, from whom he purchases his middle son, शुनः-शेप, who is about to be sacrificed, when विश्वा-मित्र saves him by teaching him a prayer to अग्नि and two hymns to इन्द्र and विष्णु; See, [R. i, 61, 62] ), [RV.] &c. &c. ([IW. 25-27] )
ROOTS:
शुनः शेप
शुनः-शेप  n. n. the genital organ of a dog, [MW.]
ROOTS:
शुनः शेप

शुनःशेप     

शुनःशेपः [śunḥśēpḥ] फः [phḥ]   (फः) N. of a Vedic sage, son of Ajīgarta. [In the Aitareya Brāhmaṇa it is related that king Hariśchandra, being childless, made a vow that on obtaining a son he would sacrifice him to the god Varuṇa. A son was born who was named Rohita, but the king put off the fulfilment of the vow under various pretexts. At last Rohita purchased for one hundred cows Śunahśepa, the middle son of Ajīgarta as a substitute for himself to be offered to Varuṇa. But the boy praised Viṣṇu, Indra, and other deities, and escaped death. He was then adopted by Viṣvāmitra in his own family and called by the name Devarāta.]

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