सोमक n. कृष्ण एवं कालिंदी का एक पुत्र ।
सोमक (साहदेव्य सार्जय) n. (सो. नील.) सृंजय लोगों का एक राजा
[ऋ. ४.१५.७-१०] ; सृंजय १. देखिये । सहदेव का वंशज होने से इसे ‘साहदेव्य’ पैतृक नाम, एवं सृंजयों का वंशज होने से इसे ‘सार्जय’ वांशिक नाम प्राप्त हुआ होगा
[ऐ. ब्रा. ७.३४] ;
[श. ब्रा. २.४.४.४] । पर्वत एवं नारद ऋषि इसके पुरोहित थे
[ऐ. ब्रा. ७.३४.९] । यह वामदेव ऋषि का आश्रयदाता था, एवं इसने उसे अनेकानेक अश्व प्रदान किये थे
[ऋ. ४.१५८.८] ।
सोमक (साहदेव्य सार्जय) n. इस साहित्य में इसे पांचाल देश का राजा कहा गया है, एवं इसके पिता का नाम सहदेव बताया गया है
[भा. ९.२२] ;
[ह. वं. १.३२] ;
[ब्रह्म. १३. वायु. ३७] । इसके द्वारा अपने पुत्र का नरमेध किये जाने की कथा महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में प्राप्त है
[म. व. १२७-१२८] ।
सोमक (साहदेव्य सार्जय) n. इसकी कुल सौ पत्नियाँ थी । किन्तु जंतु (जह्नु) नामक केवल एक ही पुत्र था । एक बार चिंटी ने जंतु को काट लिया, जिस कारण इसके अंतःपुर की सभी पत्नियाँ रोने लगी। इस प्रसंग को देख कर इसे मन ही मन अत्यंत दुःख हुआ, एवं इसने सोचा कि, राजा के लिए केवल एक ही पुत्र रहना दुःख का मूल हो सकता है । पश्चात् अधिक पुत्र प्राप्त होने के उद्देश्य से एक नरमेध करने की, एवं उसमें इसके जन्तु नामक इकलौते पुत्र का हवन करने की कल्पना इसके पुरोहित ने इसे दी। तदनुसार इसने अपने पुत्र जन्तु को बलि दे कर एक नरमेध किया, जिससे उत्पन्न हुए धुएँ से इसे पृषत् आदि सौ पुत्र उत्पन्न हुए।
सोमक (साहदेव्य सार्जय) n. अपनी मृत्यु के पश्चात् यह स्वर्गलोक को प्राप्त हुआ, किन्तु इसके नरमेध की सलाह देनेवाले इसके पुरोहित को नर्क प्राप्त हुआ। अपने पुरोहित को छोड़ कर स्वयं स्वर्गोपभोग लेने को इसने इन्कार किया, एवं यह स्वयं नर्क में रहने के लिए गया । इसकी यह पुरोहित निष्ठा देख कर यमधर्म अत्यंत प्रसन्न हुआ, एवं उसने इन दोनों को स्वर्ग में स्थन दिया ।
सोमक II. n. सोमकवंशीय क्षत्रियों का सामूहिक नाम ।