सहदेव n. (सो. कुरु.) हस्तिनापुर के पाण्डु राजा के पाँच पुत्रों में से एक (सहदेव पाण्डव देखिये) ।
सहदेव (पाण्डव) n. हस्तिनापुर के पाण्डु राजा का क्षेत्रज पुत्र, जो अश्विनों के द्वारा पाण्डुपत्नी माद्री के उत्पन्न हुए दो जुड़वे पुत्रों में से एक था
[म. आ. ९०.७२] । यह पाण्डुपुत्रों में से पाँचवाँ पुत्र था, एवं नकुल का छोटा भाई था । स्वरूप, पराक्रम एवं स्वभाव इन सारे गुणवैशिष्ट्यों में यह अपने ज्येष्ठ भाई नकुल से साम्य रखता था, जिस कारण नकुल-सहदेव की जोड़ी प्राचीन भारतीय इतिहास में एक अभेद्य जोड़ी बन कर रह गयी (नकुल देखिये) । इसके जन्म के समय इसकी महत्ता वर्णन करनेवाली आकाशवाणी हुई थी
[म. आ. ११५.१७] ;
[भा. ९.२२.२८, ३०.३१] ।
सहदेव (पाण्डव) n. इसका जन्म एवं उपनयनादि संस्कार अन्य पांण्डवों के साथ शतशृंग पर्वत पर हुए थे । द्रोण ने इसे शस्त्रास्त्रविद्या, एवं शर्यातिपुत्र शुक्र ने इसे धनुर्वेद की शिक्षा प्रदान की थी । खड्गयुद्ध में यह विशेष निपुण था । द्रौपदीस्वयंवर के समय इसने दुःशासन के साथ युद्ध कर उसे परास्त किया था
[म. आ. १८६६* पंक्ति २.] ।
सहदेव (पाण्डव) n. युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, यह दक्षिण दिशा की ओर दिग्विजय के लिए गया था
[भा. १०.७२.१३] । सर्वप्रथम इसने शूरसेन देश जीत कर मत्स्य राजा पर आक्रमण किया । उसे जीतने के बाद इसने करुष देश के दन्तवक्र राजा को पराजित किया । पश्चात् इसने निम्नलिखित देशों पर विजय प्राप्त कियाः- पश्चिम मत्स्य, निषादभूमि, श्रेष्ठगिरि, गोशृंग एवं नरराष्ट्र। इसी दिग्विजय में इसने सुमित्र एवं श्रेणिवत् राजा पर विजय प्राप्त किया । पश्चात् यह कुन्तिभोज राजा के राज्य में कुछ काल तक ठहरा, जो पाण्डवों का मित्र था । पश्चात् इसने गर्मण्वती नदी के तट पर कृष्ण के शत्रु जंबूकासुर के पुत्र से युद्ध किया । अन्त में घोर संग्राम कर इसने उसका वध किया । पश्चात् यह दक्षिण दिशा की ओर मुड़ा। वहाँ सेक एवं अपरसेक राजाओं को परास्त कर, एवं उनसे करभार प्राप्त कर यह नर्मदा नदी के तट पर आ गया । वहाँ अवंती देश के विंद एवं अनुविंद राजाओं को पराजित कर, यह भोजकट नगरी में आ पहुँचा। वहाँ के भीष्मक राजा के साथ इसने दो दिनों तक संग्राम किया, एवं उसे जीत लिया । आगे चल कर कोसल एवं वेण्यातीर देश के राजाओं को परास्त कर, यह कान्तारक देश में प्रविष्ट हुआ। वहॉं कान्तारक, प्राक्कोसल, नाटकेय, हैरंबक, मारुध, रम्यग्राम, नाचीन, अनर्बुक देश के राआओं को इसने पराजित किया । पश्चात् इसी प्रदेश में स्थित वनाधिपतियों को जीत कर, इसने वाताधिप राजा पर आक्रमण किया, एवं उसे जीत लिया । आगे चल कर पुलिंद राजा को परास्त कर यह दक्षिण दिशा की ओर जाने लगा। रास्ते में पाण्ड्य राजा के साथ इसका एक दिन तक घोर संग्राम हुआ, एवं इसने उसे परास्त किया । पश्चात् यह किष्किंधा देश जा पहुँचा, जहाँ मैंद एवं द्विविद नामक वानर राजाओं के साथ सात दिनों तक युद्ध कर, इसने उन्हें परास्त किया । पश्चात् इसने माहिष्मती नगरी के नील राजा के साथ सात दिनों तक युद्ध किया । इस युद्ध के समय, अग्नि ने नील राजा की सहायता कर, इसकी सेना को जलाना प्रारंभ किया । इस प्रकार सहदेव की पराजय होने का धोखा उत्पन्न हुआ। इस समय सहदेव ने शूचिर्भूत हो कर अग्नि की स्तुति की, एवं उसे संतुष्ट किया, पश्चात् अग्नि की ही सूचना से नील राजा ने इससे संधि की। आगे चल कर सहदेव ने त्रैपुर एवं पौरवेश्र्वर राजाओं को परास्त किया । पश्चात् सुराष्ट्र देश के राजा कौशिकाचार्य आकृति राजा को इसने परास्त किया, एवं यह कुछ काल तक उस देश में ही रहा। पश्चात् इसने पश्चिम समुद्र के तटवर्ति निम्नलिखित देशों पर आक्रमण कियाः-- शूर्पारक, तालाकट, दण्डक, समुद्रद्वीपवासी, म्लेच्छ, निषाद, पुरुषाद, कर्णप्रावरण, नरराक्षसयोनि, कालमुख, कोलगिरि, सुरभिपट्टण, ताम्रद्वीप, रामकपर्वत, तिमिंगल। सहदेव के द्वारा किये गये पराक्रम के करण, निम्नलिखित दक्षिण भारतीय देशों ने बिना युद्ध किये ही, केवल दूतप्रेषण से ही पाण्डवों का सार्वभौमत्व मान्य कियाः-- एकपाद, पुरुष, वनवासी, केरल, संजयंती, पाषंड, करहाटक, पाण्ड्य, द्रविड, उड्र, अंध्र, तालवन, कलिंग, उष्ट्रकर्णिक, आटवीपुरी, यवनपुर। इस प्रकार दक्षिण भारत के बहुत सारे देशों पर अपना आधिपत्य प्रस्थापित करने के बाद इसने लंकाधिपति विभीषण की ओर अपना घटोत्कच नामक दूत भेजा, एवं उससे भी कारभार प्राप्त किया । पश्चात् दक्षिणादिग्विजय में प्राप्त किया गया सारा कारभार ले कर, यह इंद्रप्रस्थ नगरी में लौट आया, एवं सारी संपत्ति इसने युधिष्ठिर को अर्पित की।
[म. स. २८] । राजसूय यज्ञ समाप्त होने पर, अन्य पाण्डवों के समान इसने भी कृष्ण की अग्रपूजा भी की
[म. स. ३३.३०] ;
[भा. १०.७५.४] ।
सहदेव (पाण्डव) n. युधिष्ठिर के द्वारा पाण्डवों का सारा राज्य द्यूतक्रिड़ा में हार दिये जाने पर, इस आप्रत्प्रसंगके जिम्मेदार शकुनि को मान कर इसने उसके वध करने की प्रतिज्ञा की
[म. स. ६८.४१] । पाण्डवों के अज्ञातवास में, तंतिपाल नाम धारण कर यह विराट नगरी में रहता था । यह उत्कृष्ट अश्वचिकित्सक था
[म. वि. ३.७] । इस कारण विराट की अश्वशाला में अश्वसेवा का काम इसने स्वीकार किया । अज्ञातवास में इसका सांकेतिक नाम ‘जयद्बल’ था
[म. वि. ५.३०] ।
सहदेव (पाण्डव) n. इस युद्ध में इसके रथ के अश्व तित्तिर पक्षी के रंग के थे, एवं इसके ध्वज पर हंस का चिह्न रहता था । इसके धनुष्य का नाम ‘अश्विन’, एवं शंख का नाम ‘मणिपुष्पक’ था
[म. द्रो. परि. १.५. ११-१२] ;
[भी. २३.१६] । रथयुद्ध में यह अत्यंत निष्णात था
[म. उ. १६६.१८] । द्रोण के सेनापत्यकाल में इसने उस पर आक्रमण करना चाहा; किन्तु उस समय कर्ण ने इसे परास्त किया
[म. द्रो. १४२.१३] । अंत में अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इसने शकुनि का वध किया
[म. श. २७.५८] ।
सहदेव (पाण्डव) n. युधिष्ठिर के हस्तिनापुर का राज्याभिषेक किये जाने पर, उसने इस पर धृतराष्ट्र की देख काल का कार्य सौंप दिया
[म. शां. ४१.१४] । पाण्डवों के महाप्रस्थान के समय, द्रौपदी के पश्चात् सर्वप्रथम इसका ही पतन हुआ। इसे अपनी बुद्धि का अत्यधिक गर्व था, जिस कारण इसका शीघ्र ही पतन हुआ
[म. महा. २.८] ;
[भा. १.१५.४५] । मृत्यु के समय इसकी आयु १०५ वर्षों की थी(युधिष्ठिर देखिये) ।
सहदेव (पाण्डव) n. इसकी चार कुल पत्नियाँ थीः-- १. द्रौपदी
[म. आ. ९०.८१] ; २. विजया, जो इसके मामा मत्स्यदेश शल्य की कन्या थी
[म. आ. ९०.८७] ; ३. भानुमती, जो भानु राजा की कन्या थी
[ह. वं. २.९०.७६] ; ४. मगधराज जरासंध की कन्या
[म. आश्र्व. ३२.१२] । इसके कुल दो पुत्र थेः-- १. श्रुतकर्मन्, जो द्रौपदी से उत्पन्न हुआ था
[म. आ. ९०.८२] ; २. सुहोत्र, जो इसे विजया से उत्पन्न हुआ था
[म. आ. ९०.८७] ।
सहदेव (पाण्डव) n. इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है । - १. व्याधिसंधविमर्दन; २. अग्निस्तोत्र; ३. शकुनपरीक्षा।
सहदेव (वार्षागिर) n. एक राजा, जिसे ऋग्वेद के एक सूक्त के प्रणयन का श्रेय दिया गया है
[ऋ. १.१०००] । इसने रुज्राश्र्व, भयमान, सुराधस् एवं अंबरीष नामक अपने भाइयों के साथ इंद्र की स्तुति की थी, जिस कारण यह शिम्यु एवं दस्यु नामक अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सका
[ऋ. १.१००.१७-१८] ।
सहदेव (सार्ञ्जय) n. एक राजा, जो सोम की एक विशिष्ट परंपरा में से सोमक साहदेव्य नामक आचार्य का शिष्य था
[ऐ. ब्रा. ७.३-४] । एक धर्मप्रवण राजा के नाते वामदेव के द्वारा इसकी स्तुति की गयी थी । इसका सही नाम ‘सुप्लन् सार्जंय’ था, किन्तु ‘दाक्षायण’ नामक यज्ञ करने पर इसने ‘सहदेव सार्जय’ नाम धारण किया
[श. ब्रा. २. ४.४.४] । ऋग्वेद एवं ऐतरेय ब्राह्मण में सोमक साहदेव्य नामक आचार्य के साथ इसका निर्देश प्राप्त है
[ऋ. ४.१५.७] ;
[ऐ. ब्रा. ७.३४.९] । ब्राह्मण ग्रंथों में अन्यत्र भी इसका निर्देश प्राप्त है
[श. ब्रा. १२.८.२.३] । कई अभ्यासकों के अनुसार सहदेव सार्ञ्जय एवं सहदेव वार्षागिर दोनों एक ही व्यक्ति थे ।
सहदेव II. n. (सू. इ.) एक राजा, जो दिवाक (दिवाकर) राजा का पुत्र, एवं बृहदश्र्व राजा का पिता था
[भा. ९.१२.११] ।
सहदेव III. n. (सू. इ.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार सृंजय राजा का पुत्र, एवं कृशाश्र्व राजा का पिता था
[वायु. ८६.२०] । भागवत में इसे संजय राजा का पुत्र कहा गया है (सहदेव सा़र्ञ्जय देखिये) ।
सहदेव IV. n. एक राजा, जो भागवत विष्णु एवं वायु के अनुसार सुदास राजा का पुत्र, एवं सोमक राजा का पिता था
[भा. ९.२२.१] ।
सहदेव IX. n. भास्करसंहितारंगत ‘व्याधिसिंधुविमर्दनतंत्र’ नामक ग्रंथ का कर्ता।
सहदेव V. n. (सो. मगध.) मगध देश का एक राजा, जो जरासंध राजा का पुत्र था । इसकी अस्ति एवं प्राप्ति नामक दो बहने थीं, जो मथुरा के कंस राजा को विवाह में दी गयी थीं। जरासंध के वध के पश्चात् कृष्ण ने इसे मगध देश के राजगद्दी पर बिठाया, एवं इससे मित्रता स्थापित की। भारतीय युद्ध में यह एक अक्षौहिणी सेना के साथ पाण्डव पक्ष में शामिल हुआ था । युधिष्ठिरसेना के सात प्रमुख सेनापतियों में यह एक प्रमुख था । इसके पराक्रम का गौरवपूर्ण वर्णन संजय के द्वारा किया गया है । इंत में यह द्रोण के द्वारा मारा गया
[भा. ९.२२.९,१०.७२.४८] ;
[म. द्रो. १०१.४.३] ।
सहदेव V. n. इसके सोमापि, मार्जारिप एवं मेघसंधि नामक तीन पुत्र थे । इसकी मृत्यु के पश्चात् सोमपि (सोमाधि) मगध देश का राजा बन गया ।
सहदेव VI. n. (सो. वसु.) वसुदेव एवं ताम्रा के पुत्रों में से एक ।
सहदेव VII. n. (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो वायु के अनुसार सुप्रतीत राजा का पुत्र था
[वायु. ९९.२८४] । इसे ‘मरुदेव’ नामान्तर भी प्राप्त था ।
सहदेव VIII. n. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जो वायु के अनुसार इर्यश्र्व राजा का, विष्णु के अनुसार हर्षवर्धन राजा का, भागवत के अनुसार हव्यवन राजा का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार हव्यश्र्व राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम हीन अहीन, अर्दीन था
[वायु. ९३.९] ;
[भा. ९.१७.१७] ;
[ब्रह्मांड. ३.६८.९] ।
सहदेव X. n. ०. कुण्डल नगरी के सुरथ राजा का पुत्र ।