कलहा n. सौराष्ट्रनगरवासी भिक्षु नामक ब्राह्मण की पत्नी । इसकी आदत थी, पति के कहने के ठीक विपरीत कार्य करना । इसलिये, जो कार्य करना हो उसके ठीक विपरांत बोलने का नियम, उसके पति ने कर लिया था । उससे पति के सब कार्य उसकी इच्छानुसार पूर्ण हो जाते थे । एकबार गलती से श्राद्धपिंड गंगा में डालने के लिये उसने कहा । तब पति की आज्ञा के ठीक विपरीत करने के हेतु से इसने वह पिंड शौच्यकूप में फेंका । यों इसका दुष्ट स्वभाव था । इस कारण पिशाच्चयोनि प्राप्त हुई । उससे धर्मदत्त ने इसका उद्धार किया
[आ.रा.सार.४] । करवीरस्थ धर्मदत्त ने द्वादशाक्षरी मंत्र, तथा कार्तिकमास का आधा पुण्य दे कर इसे मुक्त किया । इस पुण्य से धर्मदत्त तथा कलहा अगले जन्म में में दशरथ-कौसल्या बन कर, उनके उदर से राम का जन्म हुआ
[पद्म. उ.१०६-१०७] ; चंई देखिये ।