बिल्व n. एक विष्णु भक्त, जो आगे चल कर शिवभक्त बन गया । आदिकल्प में ब्रह्मा ने बिल्व वृक्ष (वेलपत्र वृक्ष) का निर्माण किया, जिसे ‘श्रीवृक्ष’ भी कहते है । इस वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति रहने लगी, जिसे ब्रह्मा ने ‘बिल्व’ नाम दिया । बाद में, इसकी भक्तिभावना तथा व्यवहार से प्रसन्न हो कर, इन्द्र ने इसे पृथ्वी का राज्य करने के लिये कहा । इस महान् उत्तरदायित्य को सम्भालने के लिये इसने इन्द्र से वज्र मॉंगा, जिसके बलपर सुलभता के साथ राज्य किया जा सके । इन्द्र से इससे कहा, ‘तुम वज्र ले कर क्या करोंगे? जब कभी भी आवश्यकता पडे, तुम मुझे याद कर उसे प्राप्त कर सकते हो’। एक बार कपिल नामक एक शिवभक्त ब्राह्मण घूमता घामता इसके यहॉं आ पहुँचा । शीघ्र ही दोनों में मित्रता हो गयी । एक दिन इसमें तथा कपिल में शास्त्रार्थ हुआ, जिसका विषय था, ‘तप श्रेष्ठ है अथवा कर्म’। यह चीज यहॉं तक जोर पकड गयी, कि इसने वज्र का स्मरण कर उसके द्वारा कपिल के दो टुकडे कर दिये । कपिल में भी शिव की भक्ति तथा अपने तप का बल था; अतएव उसने शिव के द्वारा पुनः अमरत्व प्राप्त किया । इधर बिल्व ने विष्णु के पास जा कर उन्हें प्रसन्न कर, वर प्राप्त किया कि, संसार के समस्त प्राणी इससे डरते रहें । किन्तु इस वर द्वारा इसे कुछ लाभ न हुआ । अन्त में, विष्णुभक्ति से इसका मन शिवभक्ति की ओर झुका, तथ यह महाकालबन में शिवलिंग की आराधना करने लगा । एक बार घुमता हुआ कपिल उधर आ पहुँचा । वहॉं इसे इस रुप में देख कर वह अति प्रसन्न हुआ, तथा दोनो मित्र हो गये
[स्कंद. ५.२.८३] ।