विवस्वत् n. एक देवता, जो संभवतः उदित होनेवाले सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है । ऋग्वेद में विवस्वत्, आदित्य, पूषन्, सूर्य, अर्यमन्, मित्र भग आदि सूर्य से संबंधित (सौर्य) देवताओं को विभिन्न देवता माना गया है
[ऋ. ५.८१.४, १०.१३९.१] । किंतु वे स्वतंत्र देवता न हो कर एक ही सूर्य देवता की विभिन्न रूप प्रतीत होते है (सूर्य देखिये) ।
विवस्वत् n. इस ग्रंथ में यद्यपि विवस्वत् का स्वतंत्र सूक्त अप्राप्य है, फिर भी एक स्वतंत्र देवता के नाते इसका निर्देश ऋग्वेद में प्रायः तीस बार आया है । इसे अश्र्वियों का एवं यम का पिता कहा गया है
[ऋ.१०.१७, १०.१४.१, ५८.१] । ऋग्वेद में अन्यत्र सभी देवताओं को भी विवस्वत् की संतान (जनिमा) कहा गया है
[ऋ. १०.६३.१] । त्वष्ट्ट की कन्या सरण्यू इसकी पत्नी थी
[ऋ. १०.१७.१-२] ।
विवस्वत् n. ऋग्वेद में एक ही बार मातरिश्र्चन् को विवस्वत् का दूत कहा गया है
[ऋ. ६.८.४] । अन्यथा सर्वत्र अग्नि को इसका दूत कहा गया है
[ऋ. १.५८.१, ४.७.४, ८.३९.३, १०.२१.५] ।
विवस्वत् n. विवस्वत् के सदन का निर्देश ऋग्वेद में अनेकबार प्राप्त है । देवगण एवं इंद्र इस सदन में आनंद मनाते है
[ऋ. ३.५१] , एवं इसी सदन में गायक-गण इंद्र एवं जल की महानता का गुणगान करते है
[ऋ.१.५३, १०.७५] विवस्वत् n. विवस्वत् का सब से बड़ा मित्र इंद्र है, जिसकी यह पुनः पुनः स्तुति करता है । इंद्र इसकी स्तुति से प्रसन्न होता है
[ऋ. ८.६] , एवं अपना समस्त धनकोश विवस्वत् के बगल में रख देता है
[ऋ. २.१३] । विवस्वत् की दस उँगलियों के द्वारा इंद द्युलोक से जल नीचे गिराता है
[ऋ. ८.६१] । विवस्वत् का अन्य एक मित्र सों है । वह विवस्वत् के साथ ही रहता है
[ऋ. ९.२६.४] , एवं विवस्वत् की कन्याएँ (उँगलियाँ) सों को स्वच्छ करती है
[ऋ. ९.१४] । विवस्वत् की स्तुतियाँ पिशंग नामक सों को प्रवाहित करती है
[ऋ. ९.९९] । इसका आशीर्वाद प्राप्त कर लेने पर, सों की धाराएँ बहने लगती है
[ऋ. ९.१०] । अश्र्विनीकुमार भी इसके साथ रहते है
[ऋ. १.४६.१३] । अश्र्वियों के रथ जोतने के समय, विवस्वत् के उज्वल दिनों कों का प्रारंभ होता है
[ऋ. १०.३९] ;
[श. ब्रा. १०.५.१] । एक उपास्य-देवता के नाते, वरुण एवं अन्य देवताओं के साथ विवस्वत् का निर्देश प्राप्त है
[ऋ. १०.६५] अपने उपासकों के द्वारा उपासित् विवस्वत् एक आक्रमक देवता है, जो यम से एवं आदित्यों से उनकी रक्षा करती है
[अ. वे. १८.३] ;
[ऋ. ८.५६] ।
विवस्वत् n. अग्नि एवं उषस् के संदर्भ में विवस्वत् शब्द कई बार ‘दैदीप्यमान’ अर्थ में प्रयुक्त किया गया है
[ऋ. १.९६, ७.९] । विवस्वत् का शब्दशः अर्थ ‘प्रकाशित होना’ है, जो उषस् (उदय होना) से काफ़ी मिलता जुलता है । शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, यह दिन एवं रात्रि को प्रकाशित (विवस्ते) करता है, इसी कारण इसे विवस्वत् नाम प्राप्त हुआ
[श. ब्रा. १०.५.२] ।
विवस्वत् n. व्युत्पत्तिजन्य अर्थ, अग्नि, अश्र्विनों एवं सों के साथ इसका संबंध, एवं यज्ञस्थल में इसका निवास, इन सारी सामग्री की ओर संकेत कर, कई अभ्यासकों का कहना है कि, उदित होनेवाला सूर्य ही वैदिक विवस्वत् है । अन्य कई अभ्यासक इसे सूर्यदेवता ही मानते है (सूर्य देखिये) । बर्गेन के अनुसार, विवस्वत् मुख्यतः एक अग्निदेवता है, जिसका ही एक रूप सूर्य है
[बर्गेन. १.८८] । एक देवता के नाते विवस्वत् का महत्त्व वैदिकोत्तर साहित्य में कम होता गया, एवं अन्त में इसका स्वतंत्र अस्तित्व विनष्ट हो कर यह सूर्य एवं आदित्य देवताओं में विलीन हो गया (सूर्य देखिये) ।
विवस्वत् II. n. मानवजाति का प्रथम यज्ञकर्ता, जो मनु एवं यम का पिता माना जाता है
[ऋ. ८.५२, १०.१४.१७] । मनु इसका पुत्र होने के कारण, उसे ‘विवस्वत्’ एवं ‘वैवस्वत’ पैतृक नाम से भूषित किया गया है
[अ. वे. ८.१०] ;
[श. ब्रा. १३.४.३] । तैत्तिरीय संहिता में मनुष्यों को भी विवस्वत् की संतान कहा गया है
[तै. सं. ६.५.६] । महाभारत में भी यम एवं मनु को विवस्वत् की संतान कहा गया है
[म. आ. ७०.१०, ९०.७] ।
विवस्वत् II. n. इस साहित्य में निर्दिष्ट विवन्ह्वन्त् (यम के पिता) से विवस्वत् काफी साम्य रखता है । जिस प्रकार विवस्वत् पृथ्वी के अग्नि का आद्यजनक माना जाता है, उसी प्रकार ‘विवन्ह्वन्त’ को ‘ओम’ बनानेवाला पहला व्यक्ति कहा गया है ।
विवस्वत् III. n. एक आदित्य, जो बारह आदित्यों में से एक माना जाता है
[वायु. ३.३, ६६.६६] ;
[विष्णु. १.१५.१३१] । यद्यपि ऋग्वेद में विवस्वत् को अदिति का पुत्र नहीं कहा गया है, फिर भी यजुर्वेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों में विवस्वत् को आदित्य कहा गया है
[वा. स. ८.५] ;
[मै. सं. १.६] । महाभारत में इसे कश्यप एवं अदिति के बारह पुत्रों में से एक कहा गया है
[म. आ. ७०.९] । इसका निर्देश एक स्वतंत्र आदित्य के नाते नहीं, बल्कि लोकेश्र्वर सूर्य के नाते ही किया गया प्रतीत होता है । पुराणों में इसे अदिति का नहीं, बल्कि दाक्षायणी का पुत्र कहा गया है । इसे श्रावण माह का आदित्य एवं प्रजापति भी कहा गया है
[वायु. ६५.५३] । इन ग्रंथों में भी इसे सूर्य का ही प्रतिरूप माना गया है, एवं मनु, श्राद्धदेव, यम एवं यमी को इसकी संतान मानी गयी है
[विष्णु. ४.१.६] । महाभारत में इसकी पत्नी का नाम संज्ञा दिया गया है, एवं नासत्य एवं दस्त्र नामक दो अश्र्विनीकुमार इसके पुत्र बताये गये है, जो वस्तुतः इसकी नही, बल्कि सूर्य की ही संतान है । इसने वेदोक्त विधि के अनुसार यज्ञ कर के अपने पिता आचार्य कश्यप को दक्षिणा के रूप में एक दिशा का दान कर दिया था । इसी कारण, उस दिशा को दक्षिण दिशा कहते है ।
विवस्वत् IV. n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. १०.१३] ।
विवस्वत् V. n. ज्येष्ठ माह में प्रकाशित होनेवाला सूर्य, जिसकी चौदह सौ किरणें रहती है
[मत्स्य. १.७८] । भागवत एवं ब्रह्मांड के अनुसार, यह नभस्य (भाद्रपद) माह में प्रकाशित होता है ।
विवस्वत् VI. n. चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक
[मत्स्य. ९.२३] ।
विवस्वत् VII. n. एक असुर, जो गरुड के द्वारा मारा गया था
[म. उ. १०३.१२] ।
विवस्वत् VIII. n. एक सनातन विश्र्वेदेव
[म. अनु. ९१.३१] ।