अध्याय दूसरा - श्लोक २१ से ४०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


वृषके सूर्यमें धनकी वृध्दि, मिथुनके कसूर्यमें मरण, कर्कके सूर्यमें ग्रह सुखका दाता, सिंहके सूर्यमें भृत्योंकी विशषकर वृध्दि होयी है ॥२१॥

कन्यामें रोग, तुलामें सुख, वृश्चिकमें धन धान्य, धनुषमें महाहानि, मकरमें धनक आगम होता है ॥२२॥

कुभ्भमें रत्न्नोंका लाभ और मीनमें गृहका आरंभ करै यो भयानक स्वप्न होते हैं और धन मीन मिथुन कन्याके सूर्य ये मास दोषके दाता कहे है ॥२३॥

ज्येष्ठ कार्तिक माघ और सिंह ये संक्रांतिके मानसे शोभन कहे है, फ़ाल्गुन माघ वैशाख श्रावण आश्विन ॥२४॥

और कार्तिकमें गृहका बनाना पुत्र पोत्र और धनको देता है. निषिध्दकालोंमे भी अपने अनुकुल शुभ दिनमें ॥२५॥

तृण काष्ठ ग्रहके आरम्भमें मासका दोष नहीं कहा है और पत्थर ईट आदिके घरोंको निन्दितमासमें न करावे ॥२६॥

निंदित मासमें भी चंद्रमाके माससे ग्रह शुभदायी होता हौ, गृह गोचर और अष्टकवर्गोंसे वामवेधकी विशेषकर चिन्ता करे ॥२७॥

इस गृहारम्भ कर्ममें भी दशा और अन्तर्दशाकी विशेषकर चिन्ता करै. गुरु और शुक्रके बलमें ब्राम्हण, सूर्य मंगलके बलमें क्षत्रिय ॥२८॥

सोम और बुधके बलमें वैश्य, शनेश्वरके बलमें शूद्रवर्णोंके क्रमसे वर्णके नाथका बल होनेपर गृहका आरंभ करे ॥२९॥

सूर्य चन्द्रमाका बल सब वर्णोंको कहा है. विषम राशिका सूर्य होय तो स्वामीको और चंद्रमाका बल होय तो स्त्रीको पीड होती है ॥३०॥

विषमराशिके शुक्रसे लक्ष्मीका नाश और जीव ( बृहस्पति ) से सुखकी संपदाओंका नाश, बुधसे पुत्रपौत्रोंका नाश, मंगलसे भाई बाँधबोंको पीडा होती है ॥३१॥

शनैश्वरसे दासवर्गोंको पीडा होती है, इसमें संशय नही, विशेषकर सूर्यके बलमें बुध्दिमानोंन गृहका आरंभ कहा है ॥३२॥

सब वर्णोंको सूर्यकी शुध्दि कही है दशाका स्वामी और वर्णका स्वामी बलहीन होत ॥३३॥

पीडित नक्षत्रपर सूर्य होय यो कदाचित गृहका आरंभ न करें. जन्मके सूर्यमें उदरका रोग, दुसरेमें अर्थका नाश ॥३४॥

तीसरेमें धनका लाभ, चौथेमें भयका दाता होता है, पांचवेमें पुत्रका नाश, छ्ठेमें शत्रुका नाश ॥३५॥

सातवेमें स्त्रीको कष्ट, आठवेंमें मृत्यु, नववेंमें धर्मका नाश, दशवेंमें कर्मका योग होता है ॥३६॥

ग्यारहवेंमे लक्ष्मी होती है और बारहवेंमे धनका नाश होता है पांचवे दूसरे द्यून ( सातवें ) और नौमें सूर्य होय तो मध्यबली होत है ॥३७॥

दूसरे पांचवें नववें स्थानका सूर्य त्रयोदश ( १३ ) दिनसे परे शुभ कहा है अस्तहुए और नीच राशिके और पर राशिके और अन्य ग्रहोंके जीतेहुए ॥३८॥

वृध्दाअवस्थामें और बाल अवस्था स्थितहुए वक्री और अतिचारी और शत्रुकी दृष्टिके वशमें प्राप्त हुए और उल्काके पातसे दूषित जो ग्रह है ॥३९॥

वे गृहके आरंभमें फ़ल नहीं देते इससे उनका गृहके आरंभमें भली प्रकार पूजन करे स्वामीके हस्तप्रमाण वा जेठी पत्न्नीके हाथसे ॥४०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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