अध्याय दूसरा - श्लोक १४१ से १६०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


राजा मन्त्री इनके घरोंके बीचका जो प्रमाण उतना घर सामन्त और राजपुत्रोंमें श्रेष्ठोंका घर कहा है ॥१४१॥

राजा और युवराजके गृहोंके बीचका जो प्रमाण है उतना घर कंचुकी वेश्या और कलाओंके ज्ञाताओंका होता है ॥१४२॥

युवराज और मन्त्रियोंके घरका जो मध्य प्रमाण हो उतना प्रमाणका घर अध्यक्ष ( साक्षी ) दुत इनके कर्ममें जो कुशल है उनके घर होत हैं ॥१४३॥

अध्यक्ष अधिकारी इनके घरभी रति और कोश घरके प्रमाणमें होत है और छत्तीस ३६ हाथमे जिनका प्रत्येक प्रमाण हो ऎसे पांच घर होते है ॥१४४॥

इनसे छठे भागसे युक्त जिनकी लम्बाई हो ऎसे घर ज्योतिषी और वैद्योंके होते हैं और पुरोहितोंका घरभी इसी प्रकारका सुखदायी होता है. इसके अनन्तर सबके गृहोंको कहताहूं ॥१४५॥

बत्तीस हाथसे युक्त जिसका विस्तार हो ऎसा घर ब्राम्हणोंका होता है और विस्तारके तुल्य हे भाग जिसका ऎसेही उनकी लम्बाई होनी चाहिय ॥१४६॥

और क्षत्रिय आदि तीनोंवर्णोका घर पूर्वोक्तही समझना,राजा और सेनापतियोंके घरका जो मध्यभाग हो उतने प्रमाणका कोश घर और रतिघर होते है और सेनापतिके घरके मध्यका जो प्रमाण हो ॥१४७॥॥१४८॥

वह चारों वर्णोके राजपुरुषोंका घर कहा है और मातापिताके घरका जो मध्य प्रमाण हो उतना पारशव आदिके घरका प्रमाण होता है ॥१४९॥

ब्राम्हणके घरका प्रमाण शूद्रके घरके संग जो होय वह घर मूर्धाभिषिक्त और मृतकण्टकका होता है ॥१५०॥

इनके पीछे श्रमीजन ( भृत्य आदि ) के घरको अपनी इच्छाके अनुसार बनवावे जिस घरमें चार शाला हों उसकी ऊँचाई सौ १०० हाथकी बनवावे ॥१५१॥

जो एक शालाका हो वह प्रमितही सुखदायी कहा है, सेनापति और राजाके घरके प्रमाणके व्यासमें सत्तर ७० मिलाकर ॥१५२॥

१४ का भाग देनेपर भागोंके प्रमाणसे शालामान कहा है, और ३५ का भाग देनेपर वही अलिंदका मान होता है ॥१५३॥

शालाके तीसरे भागकी तुल्य वीथी ( गली ) बनवानी भवनसे पूर्ब भागमें उष्णीव वा वस्त्र रखनेका स्थान, पश्चिममें शयनका स्थान होता है ॥१५४॥

जो शेषो पार्श्वोमे अवष्टम्भ सहित और सब दिशाओंमें दृढ होता है. विस्तारके सोलहवे भागमें चार हाथ मिलाकर जो प्रमाण हो ॥१५५॥

उतना प्रमाण उसके मध्यकी उँचाईको बुध्दिमानोंने कहा है और समस्त घरोंकी ऊँचाई द्वादश भागसे न्यून बनवानी ॥१५६॥

पृथिवीके पति राजा राजसूय आदि यज्ञोंसे जो परमेश्वरका पूजन करते हैं उनका उत्तम भवन आठ जिनमें आधे हो ऎसे नलोंसे बनवावे ॥१५७॥

और सात जिनमें आधेहो ऎसे नलोंसे ब्राम्हणोंके घरोंको बनवावे और छ: जिनमें आधे हों उनसे क्षत्रियोंका, पांच जिनमें आधेहों नलोंसे वैश्योंका घर बनवावे ॥१५८॥

और ३ जिनमें आधे हों ऎसोंसे शूद्रोंका घर बनवाना कहा है, अपने अपने गृहोंके विभागसे यहां प्रमाण देखना ॥१५९॥

विस्तार और आयाम जो १६ नलोंसे गुननेसे आवै उतना प्रमाण कहा है उतना जो विषम आवै तो शुभदायी होत है और सम दु:खदायी होते हैं ॥१६०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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