घरके मध्यभागमें चारों तरफ़से नाभिमात्र गर्त ( गढ्ढा ) को करके शिलाके मध्यमें स्वस्तिक नामके शोभन यन्त्रको लिखे ॥४१॥
खोदकर उसमें बुध्दिमान स्थपित ( कारीगर ) तीन भागको करे. उसके मध्यमें चारें तरफ़ स्वस्तिकके आकारको करे ॥४२॥
ईशान आदि चारों कोणोंमें वेदका वेत्ता ( ज्ञाता ) शिलाको भलीप्रकार पूजन कर ईशान कोणमें नन्दाके पूजनको करे ॥४३॥
अग्निकोणमें भद्राका, नैऋत्य कोणमें जयाका, वायव्यकोणमें रिक्ताका, स्वस्तिकके मध्यमें पूर्णाका पूजन करे ॥४४॥
विधानका ज्ञाता आचार्य उसका पूर्वके समान क्रमसे पूजन करे. चौरासी ८४ पलका तांबेसे बनाहुआ और दृढ शुभदायी कुंभ ॥४५॥
जो हाथ भरका हो गर्भ ( मध्य ) में शुध्द हो, चार अंगुल जिसका मुख हो छ:अंगुल जिसका कण्ठ हो, ढका हुआ हो और भली प्रकार तेजस्वी हो ॥४६॥
ऐसे घटका मध्यमें स्थापन करके उसके बाह्य देशमें आठ घटोंका स्थापन करे. उन घटोंको भोंजन और औषधोंसे पूर्ण करे. उन आठों घटोंको क्रमसे आठों दिशाओंमें दिक्पालोंके मन्त्रोंसे स्थापन करे ॥४७॥
उनको तीर्थके जलोंसे और पांच नदियोंके जलोंसे भली प्रकार पूर्ण वह मध्यका घट पंच रत्न फ़ल और बीजपूरसे युक्त हो ॥४८॥
कुंकुम चन्दन कस्तूरी गोरोचन कपूर देवदारु पद्म और सुरभि ( सुगंधि ) अन्य पदार्थ ॥४९॥
अष्टगंध और अन्यभी गंधके पदार्थ उस घटमें डारे. वृषके शंगसे उखाडी, सिंहके नखोंसे उखाडीहुई मृत्तिका ॥५०॥
वराह और हाथीके दांतोंमें जो लगीहुई मिट्टी है उससे अन्य जो आठ प्रकारकी मिट्टी और देवमंदिरके द्वारकी मिट्टीको और मंत्र पढे हुए पंचगव्यको ॥५१॥
पंचामृत, पंचपल्लव, पांच त्वचा और पांच कषाय इन सबको उस कलशमें डार दे ॥५२॥
तीन मधु और सप्तधान्य जो पारेसे युक्त हों उनको भी डारे उसमें गणेश आदि देवता और लोकपालोंका आवाहन करके ॥५३॥
घरमें धनके पति-कुबेर और वरुणको स्थापन करके नागोंको नायक ( शेष ) का स्थापन करे. पूर्वोक्त विधिसे वेदके मंत्रोंसे आवाहन करके ॥५४॥
आगमके मंत्रोंसे, पुराणोंमें पढेहुए मंत्रोंसे अष्टशत ८०० गायत्रीसे और अष्टशत ८०० व्याह्रतिसे ॥५५॥
शतवार त्रीणिपदा० इस मंत्रसे वा एकशतवार तद्विप्रासो० इस मंत्र और अतोदेवा० यह दिव्यमन्त्र है इससे तीनसौ ३०० वार ॥५६॥
विधिसे होमको करके हे ब्राम्हणो ! उसके अन्यदेवताओंके निमित्त वास्तुहोमको करे और आठ अधिक शत १०८ होमको और तिसी प्रकार गृहहोमको करे ॥५७॥
प्रथम गणपतिके निमित्त होमको करे. फ़िर लोकपाल दिक्पाल और विशेषकर क्षेत्रपालके निमित्त होमको करे ॥५८॥
दिव्य अंतरिक्ष भूमि इनकेभी होम मंत्रोंसे होमकरे फ़िर सुंदर लग्न और सुन्दर मुहुर्तमें शिलाके स्थापनको करे ॥५९॥
उसके पश्चिमभागमें महाकुम्भके शिरके ऊपर बडे दीपकको रक्खे उसके पूर्वभागमें शल्यक मन्त्रोंको पढे ॥६०॥