दशम पटल - अष्टोत्तरसहस्त्रनामकवच १

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


आनन्दभैरव

श्रीआनन्दभैरव ने कहा --- हे सदानन्द स्वरुपानान्द वल्लभे ! हे कान्ते ! आप देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कुमारी के , परमानन्द को बढ़ाने वाले , मङ्कल प्रदान करने वाले तथा अत्यन्त अदभुत एक हजार आठ नामों को कहिए । हे विद्ये ! यदि आपकी मुझ में स्वच्छ स्नेह की कला है तो कुमारी के लिए किए जाने वाले कर्म के फल को देने वाले उस महास्तोत्र को कहिए जिसके पाठ से करोड़ों - करोड़ कन्यादान का फल प्राप्त होता है ॥१ - ३॥

आनन्दभैरवी ने कहा --- हे सर्वेश्वर ! हे प्रिय ! कुमारी के अत्यन्त अदभुत , महान ‍ पुण्य देने वाले एक हजार आठ नामों का पाठ कर और उसको ह्रदय में धारण कर मनुष्य समस्त सङ्कटों से छुटकारा पा जाता है । यह सहस्त्रनाम सर्वत्र दुर्लभ है , धन्य है तथा धन्य लोगों से निषेवित है ॥४ - ५॥

यह अणिमादि अष्टसिद्धियों को देने वाला , सभी प्रकार के आनन्द को करने वाला तथा सर्वश्रेष्ठ है । माया निर्मित मन्त्रों को निरस्त करने वाला तथा मनुष्यों को मन्त्र की सिद्धि देने वाला है ॥६॥

कुमारी सहस्त्र नाम के पाठ मात्र से साधक को अनायास सिद्धि प्राप्त होती है । इसमें पूजा , जप , स्नान तथा पुरश्चरण के विधि की आवश्यकता नहीं पड़ती । हे नाथ ! इसके पाठ से साधक क्षणमात्र में समस्त यज्ञों का फल प्राप्त कर लेता है । यह सभी मन्त्रों का अर्थ है । सभी मन्त्रों को चेतना प्रदान करता है तथा समस्त योनिमुद्रा का स्वरुप है ॥७ - ८॥

इसका फल सैकड़ों करोड़ वर्षों तक कहना संभव नहीं है । फिर भी , हे प्रभो ! मैं समस्त संसार के हित के लिए इस कुमारी सहस्त्रनाम को कहता हूँ ॥९॥

विनियोग --- इस कुमारी सहस्त्रनाम कवच के बटुक भैरव ऋषि हैं , अनुष्टुप् ‍ छन्द है , कुमारी देवता हैं , सम्पूर्ण मन्त्रों की सिद्धि समृद्धि के लिए इसका विनियोग है ॥१०॥

ॐ कुमारी , कौशिकी , काली , कुरुकुल्ला , कुलेश्वरी , कनकाभा , काञ्चनाभा , कमला , कालकामिनी , कपालिनी , कालरुपा , कौमारी , कुलपालिका , कान्ता , कुमारकान्ता , कारणा , करिगामिनी , कन्धकान्ता , कौलकान्ता , कृतकर्मफलप्रदा , कार्यकार्यप्रिया , कक्षा , कंसहन्त्री , कुरुक्षया , कृष्णकान्ता , कालरात्रि , कर्णेषुधारिणी , करा , कामहा , कपिला , काला , कालिका , कुरुकामिनी , कुरुक्षेत्रप्रिया , कौला , कुन्ती , कामातुरा , कचा , कलञ्जभक्षा , कैकेयी , काकपुच्छध्वजा , कला ( ४१ ) ॥११ - १५॥

कमला , कामलक्ष्मी , कमलानन कामिनी , कामधेनुस्वरुपा , कामहा , काममर्दिनी , कामदा , कामपूज्या , कामतीता , कलावती , भैरवी , कारणाढया , कैशोरी , कुशलाङ्कला , कम्बुग्रीवा , कृष्णनिभा , कामराजप्रियाकृति , कङ्कणालङ्‍कृता , कङ्क , केवला , काकिनी , किरा , किरातिनी , काकभक्षा , करालवदना , कृशा , केशिना , केशिहा , केशा , कासाम्बष्ठा , करिप्रिया , कविनाथस्वरुपा , कटुवाणी , कटुस्थिता , कोटरा , कोटराक्षी , करनाटकवासिनी ( ३७ ) ॥१६ - २०॥

कटकस्था , काष्ठसंस्था , कन्दर्पा , केतकी , प्रिया , केलिप्रिया , कम्बलस्था , कालदेत्यविनाशिनी , केतकीपुष्पशोभाढया , कर्पूरपूर्णजिहिवका , कर्पूराकर , काकोला , कैलासगिरिवासिनी , कुशासनस्था , कादम्बा , कुञ्जरेशी , कुलानना ( १६ ) ॥२१ - २३॥

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Last Updated : July 29, 2011

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