दशम पटल - अष्टोत्तरसहस्त्रनामकवच ६

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


भारती , भवरश्रीदा , भवपत्नी , भवात्मजा , भवानी , भाविनी , भीमा , भिषग्भार्या , तुरिस्थिता , भूर्भूवस्वस्वरुपा , भृशार्त्ता , भेकनादिनी , भौती , भङ्कप्रिया , भङ्कभङ्रहा , भङ्कहारिणी , भर्ता . भगवती , भाग्य , भगीरथनमस्कृता , भगमाला , भूतनाथेश्वरी , भार्गवपूजिता , भृगुवंशा , भीतिहरा , भूमिर्भूजगहारिणी , भालचन्द्राभ , भल्वबाला , विभूतिदा , ( ३० ) ॥१२६ - १३०॥

मकरस्था , मत्तगति , मदमत्ता , मदप्रिया , मदिराष्टादशभुजा , मदिरा , मत्तगामिनी , मदिरासिद्धिदा , मध्या , मदान्तर्गतिसिद्धिदा , मीनभक्षा , मीनरुपा , मुद्रा , मुद‍गप्रियागति , मुषला , मुक्तिदा , मूर्त्ता , मूकीकरणतत्परा , मृषार्त्ता , मृगतृष्णा , मेषभक्षणतत्परा , मैथुनानन्दसिद्धि , मैथुनानलसिद्धिदा , महालक्ष्मीभैरवी , महेन्द्रपीठनायिका , मनस्था , माधवीमुख्या , महादेवमनोरमा ( २८ ) ॥१३० - १३४॥

यशोदा , याचना , यास्या , यमराजप्रिया , यमा , यशोराशिविभूषाङ्री , यतिप्रेमकलावती ( ७ )

रमणी , रामपत्नी , रिपुहा , रीतिमध्यगा , रुद्राणी , रुपडा , रुपा , रुपसुन्दरधारिणी , रेतस्था , रेतसप्रीता , रेतस्थाननिवासिनी , रेन्द्रादेवसुतारेदा , रिपुवर्गान्तकप्रिया , रोमावलीन्द्रजननी , रोमकूपजगत्पति , रौप्यवर्णा , रौद्रवर्णा , रौप्यालङ्कारभूषणा , रङ्किणा , रङ्करागस्था , रणवहिनकुलेश्वरी ( २१ ) ॥१३६ - १३९॥

लक्ष्मी , लाङ्कलहस्ता , लाङ्कली कुलकामिनी , लिपिरुपा , लीढपादा , लतातन्तुस्वरुपिणी , लिम्पती , लेलिहा , लोला , लोमशप्रियसिद्धिदा , लौकिकी , लौकिकीसिद्धि , लङ्कानाथकुमारिका , लक्ष्मणा लक्ष्मीहीना , लप्रिया , लार्णमध्यगा ( १७ ) ॥१३९ - १४१॥

विवसा , वसनावेशा , विवस्यकुलकन्यका , वातस्था , वातरुपा , वेलमध्यनिवासिनी ( ६ )

श्मशानभूमिमध्यस्था , श्मशानसाधनप्रिया , शवस्था , परसिद्धयार्थी , शववक्षसि , शोभिता , शरणागतपाल्या , शिवकन्या , शिवप्रिया , षट्‍चक्रभेदिनी , षोढान्यासजालदृढानना , सन्ध्यासरस्वती , सुन्द्या , सूर्यगा , शारदा , सती , हरिप्रिया , हरहालालावण्यस्था , क्षमा , क्षुधा , क्षेत्रज्ञा , सिद्धिदात्री , अम्बिका , अपराजिता ( २३ ) ॥१४३ - १४६॥

आद्या , इन्द्रप्रिया , ईशा , उमा , ऊढा , ऋतुप्रिया , सुतुण्डा , स्वरबीजान्ता , हरिवेशादिसिद्धिदा , एकादशीव्रतस्था , ऐन्द्री , ओषधिसिद्धिदा , औपकारी , अंशरुपा , अस्त्रबीजप्रकाशिनी ( १५ ) ॥१४६ - १४८॥

हे कामुकीनाथ ! इस प्रकार कुमारी के कल्याण करने वाले , अष्टोत्तर सहस्त्रनाम का आख्यान मैंने किया ॥१४८॥

कुमारीसहस्त्रनाम की फलश्रुति - यह महास्तोत्र , समस्त धर्मों का सार है । यह त्रिलोकी की प्राप्ति का फल प्रदान करने वाला तथा धन धान्य एवं पुत्र देने वाला है । जो विद्वान् ‍ भक्त भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है , उसे समस्त विद्या का फल उल्लसित होता है वह सर्वदा एवं दिन और रात मुक्ति मार्ग का गामी बना रहता है ॥१४९ - १५०॥

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Last Updated : July 29, 2011

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