पञ्चदश पटल - ब्रह्मविवेचन

रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


आनन्दभैरवी उवाच

आनन्दभैरवी ने कहा --- हे भैरव ! अब देवकार्य , वेदशाखा के पत्र तथा पर स्वरुप प्रणव को और जो परमानन्द भैरव को आहलादित करने वाला है उसके विषय में सुनिए । आद्यपत्र में रहने वाला अकार ऋग्वेद का सर्वश्रेष्ठ अक्षर है । उसे ब्रह्मा का स्वरुप समझना चाहिए , जो सर्वप्रथम वेदार्थ का निर्णय करता है ॥१ - २॥

वेद से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है । यह सारा जगत् ‍ वेद के अधीन है । जो वेदमन्त्र नहीं जानता किन्तु शक्ति विद्या का अभ्यास करता है वह शक्ति ( कौल ) मार्ग का उपासक भला किस प्रकार योगी बन सकता है ।

श्री आनन्दभैरव ने कहा - हे देवि ! ब्रह्मस्तोत्र क्या है , तथा ब्रह्मविद्या का स्वरुप कैसा है ? ॥३ - ४॥

ब्रह्मविवेचन --- कौन लोग ब्रह्मज्ञानी होते हैं ? तथा कौन ब्रह्म का शरीर धारण करता है । हे कुलानन्दकारिणि ! हे शक्ति मार्गा से प्रेम करने वाली ! हे सुन्दरि ! यदि मुझ पर स्नेह रखती हो तो शीघ्र उसे बतलाइए । श्री आनन्दभैरवी ने कहा - वायवी शक्ति की जो सेवा है , वही ब्रह्मस्तोत्र हैं ॥५ - ६॥

उसी में सूक्ष्मरुप से जो निमग्न है वही ब्रहाविद्या कही जाती हैं । वही वायुरुप प्राणरस का सूक्ष्म स्वरुप तथा उन्मत्त

( आनन्दोद्रेक ) एवं बुद्धि में प्रसन्नता उत्पन्न करने वाली है ॥७॥

श्री नाथ विष्णु में अनन्य भक्ति ही ’ ब्रह्मविद्या ’ कही गई हैं । जो अष्टाङ्ग योग में निरात ह्रदय से सूक्ष्म में विचरण करते वाला पवित्र , तथा नित्य विवेक धारण करने वाला है , वह ’ ब्रह्मज्ञानी ’ कहा जाता है । जो श्रीमान् ब्राह्मनन्द में निमग्न रहने वाला , हृदय में वायावी शक्ति धारण कर सर्वादा भजन करता है , वह ज्ञानी ’ ब्रह्मज्ञानी ’ कहा जाता है । बिना बाड़ा आसाव का सेवन किए मात्रा विजय रस का सारा ग्रहण करने वाला वायव्य आनन्द से संयुक्त साधक ’ ब्रह्मज्ञानी ’ कहा जाता है ॥८ - १०॥

ब्रह्मशरीर विवेचन --- जो नित्य आनन्द रस में निमग्न , परिपूर्ण इच्छा वाला , आनन्द से प्रवाहित अश्रु जल में उन्मत एवं ज्ञान संपन्न है , उसे ब्रह्मशरीर धारणा करने वाला समझना चाहिए ।

कुण्डलिनी - विवेचन - रामस्त जगत् ‍ की मातृ - स्वरुपा कुण्डलिनी ही शक्ति पदा से कही जाती है , जिसकी उपासना से भक्त लोग आगम फल के स्वरुप मुक्ति को प्राप्त करते हैं , उसके आद्य पत्र पर समस्त वर्णसमूहों का निवास है ॥११ - १३॥

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Last Updated : July 29, 2011

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