समस्त वायवी शक्ति , राशि , नक्षत्र तथा तिथियों के सहित समस्त ब्रह्माण्ड मण्डल जिसमें स्थित हैं ऐसी मनोहर कुण्डलिनी सर्वदा उज्ज्वल नायिका स्वरुपा है । इसलिए साधक को ब्रह्मशक्ति में रहने वालीं उस भवानी स्वरुपा कुण्डलिनी का अवश्य आश्रय प्राप्त हो जाती है ॥१४ - १५॥
जिस कुण्डलिनी के सम्बन्ध रुप से पुरुष दो महीने में वज के समान सुपुष्ट शरीर वाला तथा प्रत्येक कार्य के करने में सक्षम हो जाता है । यह कुण्डलिनी शक्ति सर्वदा चैतन्य स्वरुपा है । यहा बल और तेज से वायवी शक्ति है । इस प्रकार चैतन्य मात्र में स्थित होने के कारण वह समस्त ज्ञान प्रदान करती है ॥१६ - १७॥
साधक को ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्ति होती है । इसलिए वायवी ( शक्ति ) ज्ञान का आश्रय लेना चाहिए । कुण्डलिनी का आश्रय लेने वाला महाबली तबा महावक्ता होता है । इस प्रकार वह रात दिन बढ़ता रहता है ॥१८॥
कुण्डलिनी का साधक जरा मृत्यु से विवर्जित रहता है । उसकी निरन्तर आयु की वृद्धि होती रहती है । हे नाथ ! कुण्डलिनी की कृपा बिना प्राप्त किए पुरुष का कुछ भी इष्टा सिद्ध नहीं होता ।
वायवीशक्ति निरुपण --- ब्रह्मा , विष्णु , रुद्र ईश्वरा , सदाशिव उसके बाद परशिव ये सभी वायवी शक्ति के स्वरुप हैं ॥१९ - २०॥